किशनगढ़बास।
मानसून की आहट के साथ किशनगढ़बास में एक बार फिर जलभराव की समस्या को लेकर लोगों की चिंताएं बढ़ने लगी हैं। हर साल नगर पालिका द्वारा लाखों रुपये खर्च कर नालों की सफाई कराई जाती है, लेकिन बारिश में मुख्य बाजार, हॉस्पिटल और कॉलोनियों में जलभराव की स्थिति जस की तस बनी रहती है। अब सवाल उठने लगा है कि क्या इस बार भी नगर पालिका की कार्रवाई सिर्फ फाइलों तक ही सीमित रहेगी?
मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा द्वारा शुरू किए गए “वंदे गंगा जल संरक्षण जन अभियान” के तहत जिले में टांके, बावड़ी, कुएं, तालाब और जोहड़ों के जीर्णोद्धार का कार्य किया जा रहा है। लेकिन किशनगढ़बास के पारंपरिक जोहड़ और प्राचीन खाई अब तक इस अभियान से अछूते हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि ये संरचनाएं वर्षों से अतिक्रमण की शिकार हैं और जलभराव की मुख्य वजह बनी हुई हैं।
जाम और अतिक्रमण बनी बड़ी समस्या
शहर के तोप सर्किल से तिजारा-अलवर रोड तक फैले क्षेत्र में नालों और सड़कों पर अतिक्रमण के चलते वाहनों की आवाजाही में भारी परेशानी हो रही है। रोडवेज बस स्टैंड, निजी बसें, टेंपो व ठेलों के संचालन से अक्सर जाम की स्थिति बन जाती है।
करीब डेढ़ वर्ष पहले तत्कालीन SDM धीरज कुमार ने बस स्टैंड को मोठूका चौक शिफ्ट करने का प्रस्ताव तैयार किया था, जो आज भी नगर पालिका की फाइलों में धूल खा रहा है। इसी तरह, नालों से अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई भी वर्षों से सिर्फ नोटिस तक ही सीमित है।
जोहड़ की सफाई में हुआ खर्च, लेकिन हालात जस के तस
शहर के बीच स्थित जोहड़ में मुख्य बाजार, गंज रोड, अलवर रोड व खैरथल रोड की कॉलोनियों का गंदा पानी पहुंचता है। दो साल पहले नगर पालिका ने इसके सफाई पर 40-45 लाख रुपये खर्च किए, लेकिन स्थानीय व्यापारियों का आरोप है कि यह महज खाना पूर्ति थी। जोहड़ आज भी गंदगी से भरा और आधा अतिक्रमण में जकड़ा हुआ है।
जनप्रतिनिधियों की चुप्पी, प्रशासन की उदासीनता
व्यापारियों और अभिभाषक संघ के पूर्व अध्यक्ष अमित गौड़ द्वारा जिला प्रशासन को कई बार ज्ञापन दिए जा चुके हैं। SDM और कलेक्टर से प्रतिनिधिमंडल मुलाकात कर चुका है, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है।
क्या इस बार भी फाइलों में ही रह जाएगा समाधान?
स्थानीय नागरिकों की मांग है कि वंदे गंगा जल अभियान को सिर्फ औपचारिकता नहीं, बल्कि जमीनी स्तर पर क्रियान्वयन किया जाए और जलभराव से स्थायी निजात दिलाई जाए। यदि समय रहते अतिक्रमण नहीं हटाया गया और जोहड़ की सफाई नहीं हुई, तो एक बार फिर मानसून में किशनगढ़बास डूबने को मजबूर होगा।