अलवर. किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को किसानों की मांगों का ज्ञापन भेजकर किसानों के हितों की रक्षा के लिए कृषि उत्पादों के आयात-निर्यात नीति निर्माण का कार्य कृषि विभाग एवं किसान मंत्रालय को सौंपने की मांग की है। ज्ञापन में उन्होंने कहा कि पाम पदार्थों पर घटाए गए आयात शुल्क को 300 प्रतिशत तक बढ़ाना जरूरी है। यह किसी भी स्थिति में 100 प्रतिशत से कम नहीं होना चाहिए।
किसान महापंचायत की ओर से प्रधानमंत्री को भेजे ज्ञापन में राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट ने बताया कि कृषि उत्पादों के आयात-निर्यात एवं उनके आयात शुल्को के संबंध में अंतिम रूप से वित्त मंत्रालय नीति निर्धारित करता है। वह कृषि, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय से औपचारिक परामर्श तो लेता है, लेकिन उसके आधार पर कार्यवाही नहीं करता है, जिससे किसान हितों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। पाम पदार्थ खाद्य वस्तु नहीं होते हुए भी भारत सरकार इसे पाम तेल के नाम से संबोधित करती है। अभी-अभी पाम पदार्थों के आयात शुल्क को घटाकर 10 प्रतिशत तक कर दिया गया, जिससे सरसों, मूंगफली एवं तिल जैसी उपजों पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। विशेषकर सरसों के दामों में गिरावट आएगी। ज्ञापन में बताया कि कच्चे एवं परिशोधित पाम पदार्थ के मध्य के मूल्य को कम करने का बहाना लेकर आयात शुल्क घटाया गया है। जबकि इसका अंतर कम करने के लिए परिशोधित पाम के आयात शुल्क को बढ़ाना भी एक विकल्प था। उन्होंने कृषि उत्पादों के लिए आयात, निर्यात एवं उससे संबंधित नीतियों के निर्धारण का कार्य क्षेत्र कृषि एवं कृषि मंत्रालय को देने की जरूरत बताई। उन्होंने बताया कि भारत में किसान हित और देशहित समानार्थी शब्द हैं।
इसके अलावा ज्ञापन में बताया कि सरसों सत्याग्रह के अंतर्गत देश के आठ राज्यों के एक सौ एक किसानों ने 06 अप्रैल 2023 को जंतर मंतर नई दिल्ली पर दिनभर उपवास किया था। जिसमें पाम पदार्थों पर आयात शुल्क 300 प्रतिशत तक बढ़ाए जाने का आग्रह किया गया था, जो किसी भी स्थिती में 100 प्रतिशत से कम नही होना चाहिए। वर्ष 2017-18 में परिष्कृत एवं अपरिष्कृत पाम पर आयात शुल्क 45 प्रतिशत था, इसके अतिरिक्त परिष्कृत पाम पर 5 प्रतिशत सुरक्षा शुल्क भी था। वर्ष 1990 के पहले आयात शुल्क 85% तक था। वर्ष 2021 में इसे शून्य कर देने से विदेशों से आयातित पाम की मात्रा बढ़ गई । सरसों के तेल के आयात में भी वर्ष 2021-22 से वृद्धि आरम्भ हो गई। ज्ञापन में किसान पंचायत ने बताया कि सरकार की इन नीतियों के कारण असाधारण रूप से एक वर्ष में 1 क्विंटल सरसों पर 3000 रूपए तक की गिरावट आई है। भारत सरकार के अनुसार वर्ष 2021-22 में सरसों के बाजार भाव 7444 रूपये प्रति क्विंटल था, किसानों को एक क्विंटल पर 8000 रूपए तक भी प्राप्त हुए थे। इसके पूर्व के 10 वर्षो में सरसों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी 2410 रुपये मात्र थी। किसानो को उस वर्ष सरसों की उपज 4500 रूपए प्रति क्विंटल पर बेचनी पड़ी थी। उन्होंने बताया कि सरसों के दामों में जिस अनुपात में गिरावट आई, उस अनुपात में सरसों के भाव स्थिर बने रहे । सरसों के दाम गिरने से किसानों को अपनी उपज के दाम कम प्राप्त हुए, वहीं उपभोक्ताओ को तेल के दाम लगभग उतने ही चुकाने पड़े। इससे उत्पादक एवं उपभोक्ताओं को लुटना पड़ा और बिचोलिये धन की फसल काटते रहे।
सरसों के दामों में आई गिरावट
ज्ञापन में बताया गया कि सरकार की इन्हीं नीतियों के कारण वर्ष 2025-26 में सरसों के दाम गिरकर 4800 रुपए प्रति क्विंटल तक रह गए, जो न्यूनतम समर्थन मूल्य 5,950 रुपये से भी कम रहे। सरसों के सबसे बड़े उत्पादक राज्य राजस्थान की सरकार ने सरसों की खरीद 15 फरवरी से आरम्भ नहीं कर लगभग 2 माह बाद शुरू की, जिससे किसानों को 1 क्विंटल सरसों पर 1150 रूपये तक का घाटा उठाना पड़ा। उन्होंने कहा कि पाम पर आयात शुल्क घटने का भी सरसों के उत्पादन पर दुष्प्रभाव पड़ेगा, जो भारत सरकार की तिलहनो में आत्मनिर्भर की नीति पर कुठाराघात है। इसके अलावा किसानों की सुरक्षा के लिए तैयार की गई छत्रक योजना प्रधानमंत्री-अन्नदाता आय संरक्षण अभियान के अंतर्गत 75 प्रतिशत सरसों सहित अन्य तिलहन उपजों को न्यूनतम समर्थन मूल्य की परिधि से बाहर धकेला हुआ है। राज्यों द्वारा 25 प्रतिशत से अधिक 40 प्रतिशत तक यानि 15 फीसदी उपजों की खरीद कागजों की शोभा बढ़ा रही है, धरातल पर यह प्रावधान शून्य के समान है।