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    ‘हिंदी से डर क्यों?’: भाषा विवाद पर बोले पवन कल्याण, कहा- सबको सीखनी चाहिए

    हैदराबाद: आंध्र प्रदेश के उपमुख्यमंत्री पवन कल्याण ने कहा है कि हिंदी का अंधा विरोध उचित नहीं है, खासकर ऐसे दौर में जब भाषा शिक्षा, रोजगार या व्यवसाय में बाधा नहीं रही. उन्होंने चेतावनी दी कि ऐसा विरोध आने वाली पीढ़ियों की प्रगति में बाधा बन सकता है.

    गाचीबावली स्थित GMC बालयोगी स्टेडियम में आयोजित राज्य भाषा विभाग के स्वर्ण जयंती समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए पवन कल्याण ने हिंदी को अपनाने की व्यावहारिक आवश्यकता पर जोर दिया, खासकर विभिन्न क्षेत्रों में इसके बढ़ते प्रभाव को देखते हुए.

    उन्होंने पूछा, "हम दूसरे देशों में जाकर उनकी भाषाएं सीखते हैं. फिर हिंदी को लेकर इतना डर ​​क्यों है?" उन्होंने आगे कहा, "जब हम अंग्रेजी में आराम से बात कर लेते हैं, तो हिंदी में बात करने में हमें झिझक क्यों होती है?"

    हिंदी में डब की जा रही फिल्में
    बता दें कि 'दक्षिण संवादम' विषय पर आयोजित इस कार्यक्रम में राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश और केंद्रीय मंत्री जी किशन रेड्डी सहित कई प्रमुख हस्तियां मौजूद थीं. पवन कल्याण ने बताया कि 31 प्रतिशत दक्षिण भारतीय फिल्में हिंदी में डब की जा रही हैं, जिससे अच्छी-खासी कमाई हो रही है.

    उन्होंने सवाल किया, "क्या आपको व्यवसाय के लिए हिंदी की जरूरत है या नहीं?" उन्होंने आगे कहा कि हिंदी सीखने का मतलब अपनी पहचान खोना नहीं है.

    'हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है'
    उन्होंने कहा, "अब्दुल कलाम तमिल थे फिर भी उन्हें हिंदी से प्यार था. हमें सांस्कृतिक गौरव को भाषाई कठोरता से नहीं जोड़ना चाहिए. चाहे कितनी भी भाषाएं हों, हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है. अगर मातृभाषा मां है, तो हिंदी हमारी दादी जैसी है. दूसरी भाषा को अपनाने का मतलब खुद को खोना नहीं, बल्कि साथ मिलकर आगे बढ़ना है."

    उन्होंने लोगों से भाषा की राजनीति से ऊपर उठकर सोचने और यह सोचने का आग्रह किया कि अगली पीढ़ी को क्या लाभ होगा. उन्होंने कहा, "हिंदी बोलने से इनकार करना भविष्य के अवसरों के द्वार बंद करने जैसा है."

    भारतीय भाषाओं के लिए स्वर्णिम काल
    इस दौरान केंद्रीय मंत्री जे किशन रेड्डी ने कहा कि पीएम मोदी और अमित शाह के नेतृत्व में भारतीय भाषाओं के लिए स्वर्णिम काल चल रहा है.पिछले एक दशक में राष्ट्र विभाग ने हिंदी समेत अन्य भारतीय भाषाओं की सक्रीयता बढ़ाने के लिए अलग-अलग काम किए हैं.

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