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    मुकेश की आवाज़, लता का सहारा और प्रेम की कहानी — जानिए गुमनाम किस्से

    मुंबई : 'इक दिन बिक जाएगा, माटी के मोल, जग में रह जाएंगे, प्यारे तेरे बोल'। गायक मुकेश की आवाज में यह गाना लोगों को खूब भाया। उन्होंने अपने गानों से देश ही नहीं, विदेशों में भी लोगों के दिलों में अपनी जगह बनाई। उन्होंने 'जीना यहां मरना यहां', 'दुनिया बनाने वाले क्या तेरे मन में समाई', 'दोस्त-दोस्त न रहा', और 'मेरा जूता है जापानी' जैसे मशहूर गाने गाए। भले ही मुकेश इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन वह अपने गानों के जरिए लोगों के दिलों में जिंदा हैं। आज मुकेश की जयंती है। ऐसे में आइए जानते हैं मुकेश से जुड़े कुछ अनसुने किस्से।

    मुकेश को इंजीनियर बनाना चाहते थे पिता

    मुकेश बचपन से ही गायक बनना चाहते थे। उन्होंने मैट्रिक तक ही पढ़ाई की। पढ़ाई के दिनों में वह स्कूल के कार्यक्रमों में गाया करते थे। मुकेश के पिता जोरवर चंद माथुर, मुकेश को सिविल इंजीनियर बनाना चाहते थे। इसलिए उन्होंने मुकेश की नौकरी पीडब्ल्यूडी में लगवा दी। हालांकि मुकेश के मन में गायक बनने का सपना जिंदा रहा। एक दिन उन्होंने अखबार में देखा कि मुंबई में कलाकारों की भर्ती निकली है। इसके बाद वह मुंबई चले गए। मुंबई पहुंचकर मुकेश को पांच साल बाद कामयाबी मिली।

    पहली बार नाकाम होने पर लोगों ने छोड़ा साथ

    मुकेश की बहन की शादी हो रही थी। इसमें गाने बजाने का भी प्रोग्राम हो रहा था। लड़के वालों की जिद पर मुकेश ने समारोह में एल के सहगल के कुछ गाने गाए। इस शादी में फिल्मी दुनिया से भी कुछ लोग आए थे। उन्होंने मुकेश की आवाज सुनी। इसके बाद उन लोगों ने मुकेश कि पिता से कहा कि वह मुकेश को फिल्मों में काम देना चाहते हैं। मुकेश के पिता ने हां कह दी। इसके बाद मुकेश ने पहली बार फिल्म 'निर्दोष (1941)' में गाना गाया और अभिनय किया। यह फिल्म नहीं चली। जिन लोगों ने मुकेश को काम के लिए बुलाया था, उन्होंने भी उनका साथ छोड़ दिया।

    मुश्किलों से रिलीज हुआ पहला गाना

    यह साल 1943 का दौर था। मुकेश ने अपने चचेरे भाई अभिनीत फिल्म 'पहली नजर' में 'दिल जलता है' गाना गाया। फिल्म के निर्देशक मजहर खान इस गाने को रिलीज नहीं करना चाहते। उनका कहना था कि मोतीलाल चुलबुले किरदार करते हैं। ऐसे में उन पर गंभीर गाना नहीं जचेगा। ऐसे में उन्होंने कहा कि अगर फिल्म में मुकेश के गाने को दर्शकों ने पसंद नहीं किया तो एक हफ्ते के बाद फिल्म से इस गाने को निकाल दिया जाएगा। लेकिन मुकेश का गाया गाना लोगों को पसंद आया। इसके बाद मुकेश ने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

    गानों के जरिए हिट कराई फिल्म

    गायक होने के साथ मुकेश एक फिल्म निर्माता भी थे। उस दौर में वह ऐसे गायक थे कि अपने दम पर फिल्में हिट कराने की ताकत रखते थे। साल 1951 में आई फिल्म 'मल्हार' के प्रोड्यूसर खुद मुकेश थे। फिल्म के गानों को उन्होंने गाया। इसमें उनका साथ लता मंगेशकर ने भी दिया। फिल्म में बड़े कलाकार नहीं थे। इसके बावजूद ये फिल्म हिट रही। इस फिल्म के गाने बहुत मशहूर हुए, जिसकी वजह से यह फिल्म हिट रही।

    शास्त्रीय गायन में किया कमाल

    लोगों की धारणा थी कि मुकेश शास्त्रीय गीत नहीं गा सकते हैं। मुकेश को एक बार शास्त्रीय गाना गाने का मौका मिला। इस गाने को रिकॉर्ड करने के लिए वह मर्सिडीज से स्टूडियो आए। यह देखकर स्टूडियो में पहले से मौजूद शास्त्रीय गायकों ने कल्याणजी-आनंदजी से पूछा कि हम जैसे शास्त्रीय गायक बसों से चलते हैं, तो मुकेश जी मर्सिडीज से कैसे चलते हैं? इसके बाद मुकेश ने 'चंदन सा बदन, चंचल चितवन' गाना रिकॉर्ड कर लिया। इसके बाद कल्याणजी-आनंदजी ने बताया कि जब बिना ट्रेनिंग के ही मुकेश शास्त्रीय गाना गा सकते हैं, तो वह मर्जिडीज से ही चलेंगे।

    चेहरे के मोहताज नहीं मुकेश

    50 के दशक में मुकेश काफी मशहूर थे। यह धारणा थी कि उनकी आवाज सिर्फ राज कपूर पर फिट बैठती थी। मुकेश इस धारणा को तोड़ना चाहते थे। उन्हें दिलीप कुमार की फिल्म 'मधुमति' में गाने का मौका मिला। फिल्म के निर्देशक बिमल रॉय ने मुकेश की आवाज को दिलीप कुमार पर आजमाया। इस फिल्म के गाने काफी मशहूर हुए। ऐसे में मुकेश ने यह साबित कर दिया कि उनकी आवाज किसी के चेहरे की मोहताज नहीं है। इस फिल्म के गानों को सलिल चौधरी ने लिखा था। आखिरी वक्त तक दिलीप कुमार ने मुकेश की आवाज में गाए गए अपनी फिल्म के गानों की तारीफ करते रहे।

    लता मंगेशकर का करियर बनाने में मदद की

    लता मंगेशकर मुकेश को अपना भाई मानती थीं। वह रक्षाबंधन पर उन्हें राखी बांधती थीं। लता जब भी अपने संघर्ष के दिनों को याद करतीं तो वह मुकेश को भी याद करतीं। मुकेश ने ही लता मंगेशकर को अपना करियर बनाने में मदद की। उस दौर में लता को लोग पतली आवाज की वजह से पसंद नहीं करते थे। उन्हें कई जगहों से नकारा जा चुका था। हालांकि मुकेश को लता की आवाज अच्छी लगी। उन्होंने लता को नौशाद से मिलवाया। उन्हीं के कहने पर फिल्म 'अंदाज' में लता को छह गाने गाने का मौका मिला। यहां से लता के करियर को रफ्तार मिली। 

    मुकेश ने भाग कर की शादी

    मुंबई में मुकेश को एक गुजराती व्यापारी की लड़की सरला से प्रेम हो गया। सरला के पिता इस शादी के लिए तैयार नहीं थे। मुकेश के पिता भी इस शादी के लिए राजी नहीं थे। ऐसे में मुकेश ने सरला से भागकर शादी करने का फैसला किया। मुकेश ने सरला से एक मंदिर में अपने चचेरे भाई मोतीलाल की मौजूदगी में शादी की।

    छिपकर सीखते थे गाना

    मुकेश का जन्म 22 जुलाई 1923 को दिल्ली में हुआ था। उनका परिवार काफी बड़ा था। उनके 10 भाई-बहन थे। मुकेश छठे नंबर पर थे। बचपन में मुकेश के मन में गायक बनने का सपना पल रहा था। मुकेश की बड़ी बहन को गाने का शौक था। उन्हें सिखाने के लिए गुरु आते थे। मुकेश उस गुरु से छिपकर गाना सीखते थे और फिल्मी गाने गाया करते थे। इस तरह से उनके अंदर का गायक जागा।

    मुकेश का निधन

    मुकेश ने फिल्म 'सत्यम शिवम सुंदरम' के लिए कुछ गाने रिकॉर्ड किए थे। इसके बाद वह एक कॉन्सर्ट में हिस्सा लेने के लिए अमेरिका गए। 27 अगस्त 1976 को मुकेश की तबीयत बिगड़ गई। आनन फानन में उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया लेकिन डॉक्टर्स ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। डॉक्टरों ने बताया कि उनकी मौत हार्ट अटैक की वजह से हुई। महज 53 साल की उम्र में उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया।

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