More

    कानपुर की टैनरियों में मंदी का गहरा असर, हफ्ते में सिर्फ 3–4 दिन ही हो रहा काम, बाकी दिनों में मशीनें बंद

    कानपुर: लेदर सिटी कानपुर के लेदर हब जाजमऊ में ज्यादातर टैनरियों के बाहर सन्नाटे का माहौल है। कोरोना से कारोबार को लगे झटके से उबरने की कोशिशों के बीच अमेरिकी टैरिफ ने कानपुर के चमड़ा कारोबार को झकझोर दिया है। कानपुर और आगरा से हर साल अमेरिका को करीब 500 करोड़ रुपये का एक्सपोर्ट होता था। चमड़ा सुखाने के काम में लगे एक मजदूर नंदलाल ने बताया कि पहले महीने में 25-28 दिन काम मिलता था। अब 20 दिन से ज्यादा काम नहीं मिलता। बड़ा परिवार चलाने की दिक्कत है। कानपुर में चमड़े का बड़ा कारोबार है। यहां 400 टैनरियां है। कानपुर और उन्नाव में बीते कुछ साल में कई नई फुटवियर यूनिटें खुली हैं। जानकार बताते हैं कि 2014-15 तक प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से यहां 10 लाख लोगों को रोजगार मिलता था। लेकिन जीएसटी और कोविड की वजह से यह संख्या घटकर 2-3 लाख तक रह गई है। बिहार और झारखंड से आने वाले हजारों मजदूर जाने के बाद नहीं लौटे

    कम हो गया प्रॉफिट
    जाजमऊ चुंगी पर अपने ऑफिस में बैठे नदीम खान ने कहा कि नोटबंदी, जीएसटी और कोविड से चमड़े का काम 40% तक कम हो गया। जॉब वर्क तो खत्म ही हो गया। बिजनेस में प्रॉफिट कम हो गया है। मुनाफा नहीं है तो नया इन्वेस्टमेंट नहीं होता। अब देसी केमिकल के बजाय आयातित केमिकल लोग ज्यादा इस्तेमाल कर रहे हैं। साहिब लारी के अनुसार, पहले चीन हमसे फुटवियर के लिए कच्चा माल लेता था, लेकिन अब वह भी नहीं बचा। यहां बैठे पूर्व विधायक सुहेल अंसारी ने कहा कि अपहोल्स्ट्री का काम भी ठप हो चुका है। अमेरिका का टैरिफ झटका लग चुका है।

    बड़ी कंपनियों का काम ठप
    जाजमऊ में चमड़ा सुखाने और रंगने का काम करने वाले नौशाद के अनुसार, पिछले 3 साल से बिजली का बिल नहीं चुका पाए हैं। हम लोग बड़ी टैनरियों से चमड़ा लेकर उसे सुखाते और रंगते हैं। पिछले कुछ महीनो में काम घटकर आधा रह गया है। बरसात में चमड़े का काम कुछ मंदा रहता है। ऊपर से बड़ी टैनरियों में हफ्ते में 3 से 4 दिन ही काम हो रहा है। बड़ी कंपनियो के लोग कहते हैं कि फिनिश्ड प्रॉडक्ट बिक ही नहीं रहा है, तो नया माल क्या बनवाएं। पहले बड़ी कंपनियों में कर्मचारी ओवरटाइम तक करते थे। कुछ टैनरियों में मजूदर कम कर दिए गए हैं। एक मजदूर लालता प्रसाद के अनुसार, 1980 से यहां काम कर रहे हैं। लेकिन अब हालात बहुत खराब हैं। महीने में 20-22 दिन काम मिलना बड़ी बात है। मजदूरी से सब्जी तक के पैसे निकालना बड़ा मुश्किल है।

    देसी बाजार में बढ़ानी होगी खपत
    काउंसिल फॉर लेदर एक्सपोर्ट के पूर्व रीजनल चेयरमैन जावेद इकबाल के मुताबिक भारत में प्रति व्यक्ति जूते का इस्तेमाल 1.8 है। देश में बिकने वाले सस्ते जूते चीन से आ रहे हैं। भारत सरकार का एक कार्यक्रम है, जिसमें जूते का उपभोग बढ़ाकर प्रति व्यक्ति 2 तक पहुंचाना है। ऐसा हुआ तो देश में ही हर साल आबादी के लिहाज से 280 करोड़ जूतो की आवश्यकता होगी। ये निर्यात से मिले झटके की भरपाई का एक विकल्प हो सकता है।

    Latest news

    Related news

    LEAVE A REPLY

    Please enter your comment!
    Please enter your name here