मुंबई: ‘दिल मद्रासी’ मूल रूप से तमिल फिल्म ‘मध्रासी’ का हिंदी वर्जन है। इसे एआर मुरगदास ने डायरेक्ट किया है और यह हल्की-फुल्की एक्शन-थ्रिलर के रूप में सामने आई है।
कहानी
रघुराम (शिवकार्तिकेयन) एक दुर्लभ मेडिकल कंडीशन और भ्रम विकार से जूझ रहा है। उसका अतीत दुखभरा है, लेकिन मालती (रुक्मिणी वसंत) उसके जीवन में थोड़ी खुशी और उम्मीद लेकर आती है। एनआईए अधिकारी प्रेम (बीजू मेनन) और उनकी टीम एक उत्तर भारतीय गिरोह को हथियार तस्करी में शामिल होने से रोकने की कोशिश कर रहे हैं। रघुराम और प्रेम की मुलाकात तब होती है जब दोनों असफलताओं से गुजर रहे होते हैं। रघुराम का आत्महत्या का प्रयास और प्रेम का मिशन। इस मुठभेड़ से कहानी में ट्विस्ट और थोड़ी ड्रामा आती है, लेकिन पूरी तरह प्रभावशाली नहीं।
अभिनय
शिवकार्तिकेयन ने रघुराम के किरदार को सहज और भावुक अंदाज में निभाया है। रुक्मिणी वसंत खूबसूरत और प्यारी लगीं, जो कहानी में ताजगी जोड़ती हैं। विद्युत जामवाल की एक्टिंग और स्टंट्स फिल्म की सबसे बड़ी ताकत हैं। उनके एक्शन सीन रोमांचक हैं और स्क्रीन प्रजेंस जबरदस्त है। हालांकि, बीच में उनका रोल थोड़ी देर के लिए गायब रहता है, लेकिन शुरुआत और अंत में उनकी वापसी फिल्म में उत्साह बढ़ाती है। बाकी सहायक कलाकार औसत हैं।
एक्शन, संगीत और तकनीकी पहलू
फिल्म के एक्शन सीन ठीक हैं और स्टंट्स में जोश है, लेकिन एक्शन में लॉजिक ढूंढना बेकार है। कहानी कमजोर और ड्रामा ओवर-द-टॉप है। विद्युत जामवाल के एक्शन अकेले फिल्म को नहीं बचा पाते। कैमरा और विजुअल्स मूड के अनुसार ठीक हैं, संगीत हल्का है और कहानी की धीमी गति कुछ जगहों पर कमजोर प्रभाव डालती है।
निर्देशन
एआर मुरगदास अपनी पिछली फिल्मों जैसे 'गजिनी' और 'हॉलीडे' के लिए जाने जाते हैं, जहां उन्होंने एक्शन और इमोशन का अच्छा बैलेंस दिखाया था। लेकिन ‘दिल मद्रासी’ में उनका जादू उतना असरदार नहीं दिखता। शुरुआत में उन्होंने फिल्म को रोचक मोड़ दिया है, लेकिन जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है, पकड़ ढीली पड़ जाती है। एक्शन पर उनका फोकस साफ दिखता है, मगर स्क्रिप्ट और ड्रामा में गहराई की कमी निराश करती है। उनकी पिछली हिंदी फिल्म 'सिकंदर' (सलमान खान स्टारर) बॉक्स ऑफिस पर बड़ी फ्लॉप रही थी।
देखें या नहीं?
‘दिल मद्रासी’ हल्की-फुल्की थ्रिलर-एक्शन फिल्म है। शुरुआत में मजा है और कुछ सीन हिट हैं, खासकर विद्युत जामवाल के शानदार एक्शन सीन। दूसरी हाफ में कहानी कमजोर पड़ती है और कुछ सीन ओवर-द-टॉप लगते हैं। अगर आप हल्का मनोरंजन और थोड़ी लड़ाइयां देखना चाहते हैं, तो यह फिल्म ठीक है। लेकिन अगर गहरी कहानी और यादगार अनुभव चाहते हैं, तो यह फिल्म पूरी तरह संतुष्ट नहीं करेगी।