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    राजस्थान हाईकोर्ट ने भरतपुर के ऐतिहासिक श्रीगोपालजी महाराज मंदिर प्रकरण में पीआईएल पर स्टे ग्रांट किया

    भरतपुर जिले के फतेहपुर सीकरी रोड स्थित ऐतिहासिक श्रीगोपालजी महाराज मंदिर प्रकरण में याचिकाकर्ताओं की ओर से राजस्थान हाईकोर्ट के अधिवक्ता शशांक पंचोली ने प्रभावी पैरवी की

     

    मिशनसच न्यूज़, जयपुर।

    राजस्थान हाईकोर्ट ने भरतपुर जिले के फतेहपुर सीकरी रोड स्थित ऐतिहासिक श्रीगोपालजी महाराज मंदिर की अवैध तोड़फोड़,अतिक्रमण एवं धार्मिक स्वरूप के विरुपण प्रकरण को लेकर दायर जनहित याचिका (PIL) पर ने स्टे ग्रांट किया है।

    इस प्रकरण में याचिकाकर्ताओं की ओर से राजस्थान हाईकोर्ट के अधिवक्ता शशांक पंचोली ने प्रभावी पैरवी की। यह याचिका मंदिर की ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत की रक्षा के उददेश्य से दाखिल की गई है। यह मंदिर परिसर श्रीगोपालजी महाराज, श्रीहनुमानजी एवं श्रीमहादेवजी के विग्रहों के साथ रियासत काल से अस्तित्व में है।

    पीआईएल में अवगत कराया कि मंदिर की भूमि पुराने खसरा संख्या 3015 व 3016 दर्ज थी, जिसे 2004 में बदलकर 1372, 1373 और 1374 कर दिया गया। जनहित याचिका में बताया कि इसी वर्ष जिला कलक्टर भरतपुर ने बिना सूचना के मंदिर की भूमि का एक भाग

    ट्रैफिक पुलिस को कार्यालय के लिए आवंटित कर दिया गया। इसको लेकर न तो मंदिर समिति और न ही देवस्थान विभाग को सूचित किया गया। इस पर स्थानीय नागरिकों और पुजारियों ने देवस्थान विभाग व प्रशासन को कई बार लिखित आपत्तियां दी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई।

    याचिका में कहा गया है कि मंदिर की मुख्य संरचना जिसमें श्रीकृष्ण और राधा जी की मूर्तियां थीं, जिन्हें प्रशासनिक बुलडोज़र कार्रवाई में गिरा दी गईं। केवल श्रीहनुमानजी व श्रीमहादेवजी के छोटे मंदिर ही शेष बचे। यह सब कुछ समुदाय के विरोध और कानूनी प्रावधानों के बावजूद हुआ। पुजारी एवं देवस्थान विभाग को इसकी कोई पूर्व सूचना नहीं दी गई। इस कार्रवाई के तहत पुलिस ने अतिक्रमण से पारंपरिक परिक्रमा पथ बाधित हो गया, जिससे सवामणी, गौठ आदि धार्मिक परम्परा प्रभावित हो रही हैं। याचिका में बताया​ कि यह मंदिर रियासतकाल से वैष्णव सम्प्रदाय से सम्बन्धित है। इसके बावजूद प्रशासन ने जबरन अन्य संप्रदाय की मूर्तियां स्थापित कर दीं, जिससे वैष्णव परंपराएँ बाधित हो रही हैं और धार्मिक भावनाएं आहत हुई हैं। देवस्थान विभाग के अभिलेख और रियासतकालीन दस्तावेज मंदिर की वैधता, धार्मिक परंपराओं और याचिकाकर्ताओं के पूर्वजों की पुजारी भूमिका को प्रमाणित करते हैं। इसके बावजूद प्रशासन की ओर से मंदिर को ढहा दिया गया।

    अब हाईकोर्ट से मंदिर की मूल स्थिति बहाल करने, धार्मिक स्वरूप की रक्षा करने और अतिक्रमण पर रोक लगाने की उम्मीद जताई जा रही है। मामले की अगली सुनवाई की प्रतीक्षा की जा रही है।

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