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    घरेलू बचत के रुझान तय करेंगे भारत की विकास गति, एलारा सिक्योरिटीज ने रिपोर्ट में किया खुलासा

    व्यापार: भारत की दुनिया की सबसे बड़ी और तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में शामिल होने की महत्वाकांक्षा इस बात पर निर्भर करेगी कि देश अपने घरों की बचत को कितनी प्रभावी ढंग से उत्पादक संपत्तियों में लगाता है। यह बात एलारा सिक्योरिटीज की हालिया रिपोर्ट में कही गई है।

    आने वाले वर्षों में बदलाव की संभावना 
    रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में घरेलू बचत की संरचना में बड़ा परिवर्तन हो रहा है। यह बदलाव अनुकूल जनसांख्यिकी, सरकारी सुधार, आर्थिक नीतियां और मजबूत डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर द्वारा समर्थित है। ये सभी कारक आने वाले वर्षों में भारतीय घरों के बचत और निवेश के तरीके में स्पष्ट बदलाव लाने की संभावना रखते हैं।

    अन्य बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में भारत की स्थिति
    रिपोर्ट ने कहा कि भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बनने की महत्वाकांक्षा और दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के लक्ष्य के लिए घरेलू बचत को उत्पादक संपत्तियों की ओर निर्देशित करना आवश्यक है। इसमें कहा गया है कि भारत में घरेलू बचत का रिटर्न, जोखिम और तरलता प्रोफाइल तेजी से बदल रहा है, लेकिन वित्तीय बचत अभी भी अन्य बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में कम है।

    वित्तीय बचत आने वाले वर्षों में तीन गुना बढ़ने की उम्मीद
    ब्रोकरेज का अनुमान है कि भारत की सकल वित्तीय बचत आने वाले वर्षों में तीन गुना से अधिक बढ़ सकती है, और यह देश की जीडीपी का लगभग 11 से 12 प्रतिशत हिस्सा बन सकती है। इसमें यह भी देखा गया कि घरेलू बचत दर, यानी सकल उपलब्ध आय के प्रतिशत के रूप में, कई अन्य देशों की तुलना में अधिक है। यह उच्च बचत दर निवेश के लिए एक महत्वपूर्ण घरेलू पूंजी स्रोत के रूप में काम करती है और आर्थिक विकास को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाती है।

    बचत के स्वरूप में बदलाव
    वर्षों के दौरान, भारत में बचत का स्वरूप पारंपरिक रूपों जैसे बैंक जमा और नकद से बदलकर पूंजी बाजार, निवेश योजनाओं और पेंशन स्कीमों की ओर बढ़ रहा है। रिपोर्ट ने इस बदलाव को उपभोक्ता व्यवहार में बदलाव और डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर के विस्तार से जोड़ा गया है, जिसने वित्तीय निवेश को अधिक सलभ और सुविधाजनक बना दिया है।

    रिपोर्ट में कुछ प्रमुख रुझानों पर भी ध्यान दिया गया
    बैंक डिपॉजिट का हिस्सा वित्त वर्ष 71-80 में 50 प्रतिशत से अधिक था, जो वित्त वर्ष 24 तक घटकर 40 प्रतिशत से कम हो गया, जो बैंकों के लिए चुनौती बन सकता है। नकद होल्डिंग पिछले चार दशकों में लगभग 10% पर स्थिर रही, जो डिजिटल लेन-देन में वृद्धि के बावजूद नकद को मूल्य भंडार के रूप में रखने की प्रवृत्ति को दर्शाता है।

    बचत पूंजी बाजार और पेंशन योजनाओं की ओर बढ़ रही है, क्योंकि ये उच्च रिटर्न, लंबी अवधि की संपत्ति सृजन और कर लाभ प्रदान करते हैं। रिपोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि घरेलू बचत के बदलते स्वरूप पर ध्यान केंद्रित करना भारत की आर्थिक प्रगति के लिए अहम है, और इसे उत्पादक संपत्तियों में सही तरीके से निर्देशित करना ही तय करेगा कि देश अपने विकास और वृद्धि लक्ष्यों को कितनी प्रभावी ढंग से हासिल करता है।

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