पाकिस्तान को एफएटीएफ की चौथी बार ग्रे-लिस्ट में डालने की तैयारी

नई दिल्ली। भारत में हुए पहलगाम आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान की मुश्किलें एक बार फिर बढ़ सकती हैं। अंतरराष्ट्रीय संस्था एफएटीएफ (फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स) पाकिस्तान को चौथी बार ग्रे लिस्ट में डालने की तैयारी कर रही है। मनीकंट्रोल के मुताबिक जून के आखिर या जुलाई की शुरुआत में एफएटीएफ पाकिस्तान पर रिपोर्ट जारी कर उसे ग्रे लिस्ट में डाल सकता है। इससे पाकिस्तान पर कई तरह के आर्थिक पाबंदियां लग सकती हैं। हाल ही में फ्रांस में हुई एफएटीएफ की बैठक में भारत ने पहलगाम हमले, पाकिस्तान की आतंकवाद को फंडिंग और सरकारी समर्थन का मुद्दा उठाया है। पहलगाम में हुए आतंकी हमले में 26 लोगों की मौत हो गई थी। एफएटीएफ ने इसकी निंदा करते हुए कहा था ऐसे हमले बिना फंडिंग के संभव नहीं है।
 एफएटीएफ यानी फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स एक अंतरराष्ट्रीय संस्था है, जो मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवाद को फंडिंग देने वाली गतिविधियों पर नजर रखती है। ग्रे लिस्ट में उन देशों को डाला जाता है, जो आतंकवाद की फंडिंग या मनी लॉन्ड्रिंग रोकने में पूरी तरह नाकाम रहते हैं। ऐसे देशों की निगरानी होती है, और उन्हें विदेशी फंडिंग मिलना मुश्किल हो जाता है।

टेरर फंडिंग को रोकने में नाकाम
भारत ने दावा किया है कि पाकिस्तान आतंकवादी संगठनों, जैसे लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद, को फंडिंग रोकने में नाकाम रहा है। पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने एफएटीएफ पर पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में डालने का दवाब बना रहा है। एफएटीएफ ने 2022 में पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट से हटाया था, लेकिन भारत का कहना है कि पाकिस्तान ने उस वक्त किए गए कानूनी सुधारों और आतंकवाद विरोधी उपायों को लागू करने में ढिलाई बरती है। भारत ने एफएटीएफ को बताया कि पाकिस्तान ने आतंकी संगठनों के लीडर्स के खिलाफ ठोस जांच और सजा सुनिश्चित करने में कमी दिखाई है। पाकिस्तान का मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवाद फंडिंग रोकने का ढांचा अभी भी कमजोर है।

पाकिस्तान की बढ़ेगी मुश्किलें
 ग्रे लिस्ट में आने से पाकिस्तान की इकोनॉमी पर बुरा असर पड़ेगा। विदेशी निवेश और आईएमएफ, वल्र्ड बैंक जैसी संस्थाओं से कर्ज मिलना मुश्किल हो सकता है। इससे पाकिस्तान की पहले से कमजोर अर्थव्यवस्था और दबाव में आ सकती है। ग्रे लिस्ट में आने के बाद पाकिस्तान की आर्थिक छवि खराब होगी। विदेशी निवेशक और अंतरराष्ट्रीय बैंक पाकिस्तान को पैसा देने से कतराएंगे, जिससे देश में डॉलर और निवेश की भारी कमी होगी। आईएमएफ, वल्र्ड बैंक जैसी संस्थाएं कर्ज देने के लिए सख्त शर्तें लगा देती हैं या कर्ज देने से मना भी कर सकती हैं। विदेशी पूंजी न आने से पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था और कमजोर हो जाती है। फॉरेक्स रिजर्व की किल्लत से महंगाई बढ़ेगी और आम जनता पर बोझ बढ़ेगा। एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट में आने के बाद पाकिस्तान की हर बड़ी फाइनेंशियल डील, लेन-देन और बैंकिंग गतिविधियों पर सख्त नजर रखी जाएगी। कई बार लेन-देन में देरी या रोक भी लगाई जा सकती है।

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