🌿 विशेष लेख श्रृंखला | विश्व योग दिवस 2025
“Do yoga, stay healthy”
“करो योग, रहो निरोग”
अष्टांग योग की पहली सीढ़ी: यम
✍️ डॉ. पवन सिंह शेखावत
वरिष्ठ आयुर्वेद चिकित्सा अधिकारी, जिला आयुर्वेद चिकित्सालय, अलवर
🧘♂️ अष्टांग योग क्या है?
योग दर्शन में अष्टांग योग वह मार्ग है जिसे हमारे ऋषि-मुनियों ने शरीर, मन और आत्मा की शुद्धि एवं परमात्मा की प्राप्ति के लिए बताया। यह योग के आठ अंगों से मिलकर बना है:
यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि।
इनमें से पहले पाँच (यम से प्रत्याहार तक) को “बहिरंग साधन” और अंतिम तीन (धारणा, ध्यान, समाधि) को “अंतरंग साधन” कहा जाता है।
🔹 आज का विषय: यम — योग की प्रथम सीढ़ी
‘यम’ का अर्थ है – आत्मसंयम।
यह व्यक्ति के नैतिक और सामाजिक जीवन की नींव है। यम का पालन करने से मन पवित्र होता है, आत्मबल बढ़ता है और भीतर स्थिरता आती है।
✅ यम के पाँच भेद और उनका महत्व
1️⃣ अहिंसा – सभी जीवों के प्रति करुणा
मन, वचन और कर्म से किसी को हानि न पहुँचाना अहिंसा है।
स्वयं पर भी हिंसा करना (क्रोध, लोभ, वासनाओं का दमन) मानसिक अशांति का कारण बनता है।
अहिंसा मन को शांत और शुद्ध बनाती है।
2️⃣ सत्य – विचार, वाणी और कर्म में एकता
सत्य केवल ‘झूठ न बोलना’ नहीं है, बल्कि भीतर से भी सचेत और निष्कलंक रहना है।
सत्य वही है जो मन, इंद्रियों और बुद्धि से समान रूप से अनुभव किया गया हो।
3️⃣ अस्तेय – चोरी और लालच का त्याग
दूसरे की वस्तु, धन, या विचारों को चुराना या उस पर अधिकार की भावना रखना ‘अस्तेय’ का उल्लंघन है।
मानसिक शुद्धता के लिए इच्छाओं पर नियंत्रण ज़रूरी है।
4️⃣ ब्रह्मचर्य – इंद्रिय संयम और आध्यात्मिक ध्यान
केवल यौन संयम नहीं, बल्कि मन, वाणी और इंद्रियों का नियंत्रण भी ब्रह्मचर्य है।
इसका उद्देश्य जीवन को एकाग्रता, ऊर्जा और आध्यात्मिकता की ओर ले जाना है।
5️⃣ अपरिग्रह – संग्रह की प्रवृत्ति का त्याग
धन, वस्त्र, विचार, संबंध — किसी भी चीज़ के प्रति आसक्ति न रखना अपरिग्रह है।
इससे मन हल्का, स्वतंत्र और शुद्ध होता है।
🧩 अस्तेय बनाम अपरिग्रह
अस्तेय केवल चुराने से मना करता है, पर दान को स्वीकार करता है।
अपरिग्रह में त्याग की भावना होती है — संग्रह से भी दूरी और स्वेच्छा से त्याग।
🌱 निष्कर्ष
आज की भौतिकतावादी दुनिया में यम की प्रासंगिकता और भी अधिक है। ये न केवल व्यक्ति की आत्मिक उन्नति का मार्ग हैं, बल्कि सामाजिक स्थिरता और नैतिक संतुलन के लिए अनिवार्य आधार भी हैं।
अगले लेख में हम योग की दूसरी सीढ़ी “नियम” पर चर्चा करेंगे।
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