वृक्षारोपण अभियान या कागजी खानापूर्ति?

Plant a tree around you and save the environment!
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स्कूलों पर लक्ष्य का बोझ, जमीन और देखभाल के अभाव में पौधों की बर्बादी तय

अलवर। मानसून की दस्तक के साथ जहां किसान खेतों में व्यस्त हो जाते हैं, वहीं सरकारी विभाग वृक्षारोपण अभियानों की तैयारियों में जुट जाते हैं। पर्यावरण संरक्षण की दिशा में उठाए जाने वाले इन कदमों के पीछे सरकारी प्रचार की मंशा तो स्पष्ट दिखाई देती है, लेकिन धरातल पर हकीकत कुछ और ही बयां करती है।

हर साल की तरह इस बार भी राज्य सरकार द्वारा वृक्षारोपण अभियान की शुरुआत होते ही स्कूलों सहित तमाम सरकारी संस्थानों को पौधारोपण के लक्ष्य आवंटित कर दिए गए हैं। लेकिन चिंता की बात यह है कि इन लक्ष्यों के साथ न तो भूमि की उपलब्धता की पड़ताल होती है, न ही लगाए गए पौधों की देखरेख और संरक्षण की कोई ठोस व्यवस्था।

गत वर्ष प्रत्येक विद्यालय को 100 पौधे लगाने का लक्ष्य दिया गया था, साथ ही हर छात्र को 5 पौधे लगाने के लिए कहा गया। यदि किसी स्कूल में 300 छात्र हैं, तो 1500 पौधे विद्यार्थियों से और 100 पौधे स्कूल से—कुल 1600 पौधे लगाने का लक्ष्य। जबकि स्कूल परिसर में इतनी जगह ही उपलब्ध नहीं होती, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में जहां पहले से ही मैदान और खेल स्थल सीमित हैं।

विद्यालयों पर अनावश्यक दबाव

वास्तविकता यह है कि इस अभियान का सबसे अधिक बोझ स्कूलों पर ही डाला जाता है। बच्चों के नाम पर पौधे लगवाए जाते हैं, नर्सरियों से खरीद की रसीदें कटती हैं और कागजों में फोटो सहित वृक्षारोपण ‘संपन्न’ हो जाता है। सहयोग के लिए पंचायत या राजस्व विभाग को जोड़ा जाता है, लेकिन वे मौके पर दिखाई नहीं देते। जिम्मेदारी स्कूल स्टाफ और छात्रों पर ही डाल दी जाती है।

मॉनिटरिंग का अभाव
सरकार द्वारा यह सुनिश्चित नहीं किया जाता कि पूर्व में लगाए गए पौधों में से कितने जीवित हैं। यदि किसी अभियान को सफल बनाना है तो जरूरी है कि पहले पिछले वर्षों के वृक्षारोपण की स्थिति का एक विस्तृत सर्वे कराया जाए। यह जानना जरूरी है कि पूर्व में लगाए गए पौधों में से कितने जीवित हैं और उनकी देखभाल किस स्तर पर हो रही है।

क्या समाधान हो सकता है?
विशेषज्ञों और शिक्षकों की मानें तो वृक्षारोपण अभियान को सफल बनाने के लिए वास्तविक ज़मीन की उपलब्धता, पौधों की सुरक्षा व्यवस्था और देखभाल हेतु स्पष्ट जिम्मेदारियों का निर्धारण किया जाना चाहिए। स्कूलों को लक्ष्य देने से पहले यह देखना जरूरी है कि वहां कितनी जगह है और उन पौधों को संभालने के लिए मानव संसाधन की स्थिति क्या है।

निष्कर्षतः, यदि सरकार सच में पर्यावरण को लेकर गंभीर है, तो केवल लक्ष्य और फोटो खिंचवाने से काम नहीं चलेगा। अभियान की निगरानी, दीर्घकालिक देखभाल और जमीनी हकीकत को समझते हुए ही वृक्षारोपण को सार्थक बनाया जा सकता है।

🌱  टिप्पणी: वृक्षारोपण की जड़ें ज़मीन से जुड़ें, कागज़ से नहीं

✍🏻 मिशन सच संपादकीय टीम

हर साल जैसे ही मानसून की फुहारें धरती पर गिरती हैं, सरकारें हरियाली के संकल्प के साथ “वृक्षारोपण अभियान” की घोषणा करती हैं। योजनाएं बनती हैं, लक्ष्य तय होते हैं, रसीदें कटती हैं और फोटो खिंचते हैं। लेकिन अफ़सोस, इन पौधों की नियति उन सरकारी फाइलों जैसी ही होती है — लगाई जाती हैं, गिनी जाती हैं, फिर भुला दी जाती हैं।

वृक्षारोपण का जोश तब तक ही रहता है, जब तक कैमरे ऑन रहते हैं।
सरकारी आदेशों में पर्यावरण संरक्षण की संवेदनशील भाषा होती है, लेकिन जमीनी अमल में यह सब एक खानापूर्ति बन कर रह जाता है। खासतौर पर जब स्कूलों पर बिना तैयारी, बिना संसाधन, पेड़ लगाने का ‘लक्ष्य’ लाद दिया जाता है।

क्या कोई पूछेगा कि गांव के एक छोटे से स्कूल में 1600 पौधे लगाने के बाद उनकी देखभाल कौन करेगा?
क्या सरकार यह भी सुनिश्चित करती है कि पिछले साल लगाए गए पेड़ों में कितने जीवित हैं?

सच्चाई यह है कि पेड़ लगाने से पहले सोचने की ज़रूरत है — जगह कहां है? पानी कौन देगा? देखभाल कौन करेगा?
बिना इन सवालों के जवाब के पेड़ लगाना, असल में प्रकृति से एक और धोखा है। और यह धोखा सिर्फ पर्यावरण के साथ नहीं, बच्चों और शिक्षकों के साथ भी किया जाता है, जिन्हें संसाधनों के बिना जिम्मेदारियों से लाद दिया जाता है।

अब समय आ गया है कि वृक्षारोपण को एक ‘वार्षिक कर्मकांड’ नहीं, बल्कि एक सतत जागरूकता और दीर्घकालिक योजना के रूप में देखा जाए।
पेड़ केवल लगाना नहीं, उन्हें जिंदा रखना ही असली लक्ष्य होना चाहिए।

सरकारों को चाहिए कि लक्ष्य थोपने से पहले जमीन की वास्तविकता देखें, पूर्व के पौधारोपण का मूल्यांकन करें और स्कूलों को सहयोग देने वाली टीमों की जिम्मेदारी तय करें। तभी जाकर हर पौधा वृक्ष बनेगा और हर अभियान अर्थपूर्ण होगा।

वरना…
हर साल हरियाली के नाम पर हज़ारों पौधे तो लगते रहेंगे, लेकिन पनपेंगे नहीं — और हम फिर अगले मानसून में वही रसीदें, वही फोटो और वही खोखले वादे दोहराते रहेंगे।

2 COMMENTS

  1. समसामयिक मुद्दों पर आपका यह लेख निश्चित रूप से सरकार का ध्यान इस महत्वपूर्ण विषय पर आकर्षित करेगा मेरा सुझाव यह है की सरकारी स्तर पर जगह चिन्हित की जाए पंचायत ग्राम स्तर पर शहर स्तर पर और उन पर मियावाकी पद्धति
    से वृक्ष लगाए जाएं इसके अतिरिक्त हर घर के आगे एक पेड़ लगाना जरूरी किया जाए

    • आपका सुझाव अच्छा है , सरकार को भी चाहिए कि इस पर अच्छी नीति बनाकर काम करे । तभी इस तरह के अभियान को सफलता मिलती है।

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