राजस्थान सरकार ने खैरथल तिजारा जिले का नाम बदलकर भर्तृहरि नगर कर दिया है। इस फैसले से तिजारा और भिवाड़ी में खुशी है, जबकि खैरथल में नाराजगी और राजनीतिक चर्चाएं तेज हो गई हैं।
मिशनसच न्यूज, मुकेश सोनी-किशनगढ़ बास —
जिस दिन पूरा जिला प्रशासन और शहर जिला स्थापना दिवस के साथ आजादी के अमृत महोत्सव का जश्न मना रहा था, उसी दिन आई एक खबर ने खैरथल की खुशी को मायूसी में बदल दिया। राज्य सरकार ने खैरथल तिजारा जिले का नाम बदलकर भर्तृहरि नगर करने का निर्णय लिया, जिससे खैरथल के लोगों में निराशा और भविष्य को लेकर चर्चाओं का दौर शुरू हो गया।
पहले भी आया था संकट
अशोक गहलोत सरकार के कार्यकाल में बने खैरथल तिजारा जिले पर पहली बार संकट तब आया जब विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर भाजपा सत्ता में आई। उस समय जिले को समाप्त करने की अटकलें लगने लगीं।
बाद में मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने घोषणा की कि खैरथल तिजारा जिला यथावत रहेगा। इस निर्णय से खैरथल में खुशी की लहर दौड़ गई और लोगों ने मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव की राजनीतिक दूरदर्शिता की सराहना की।
अब नाम बदलने से बदला माहौल
लोगों को यह अंदाज़ा नहीं था कि जिले का अस्तित्व तो बचेगा, लेकिन उसका नाम ही बदल दिया जाएगा। भर्तृहरि नगर नाम की घोषणा के बाद खैरथल में निराशा है, जबकि तिजारा में खुशी का माहौल है।
तिजारा के लोग लंबे समय से चाहते थे कि तिजारा-भिवाड़ी को जिला मुख्यालय बनाया जाए। इसके लिए कई आंदोलनों का आयोजन भी हुआ। उनकी खुशी का एक कारण यह भी है कि भर्तृहरि का संबंध तिजारा से रहा है— यहां उन्होंने साधना की थी और एक प्रसिद्ध गुमटी भी है।
किशनगढ़बास की निरपेक्षता और पुराना दर्द
जिले के नाम बदलने से किशनगढ़बास के लोगों को न तो विशेष खुशी है और न ही दुख। इसका कारण यह है कि खैरथल जिले की स्थापना के समय से ही वे उपेक्षित महसूस कर रहे थे, क्योंकि उन्हें जिला मुख्यालय नहीं बनाया गया।
कभी किशनगढ़बास उपखंड का प्रशासनिक क्षेत्र भिवाड़ी तक फैला हुआ था। यहां ग्राम पंचायत स्तर पर एडीजे कोर्ट और मुंसिफ कोर्ट मौजूद थे।
जब खैरथल जिला बना और जिला स्तरीय कार्यक्रम किशनगढ़बास से हटकर खैरथल में होने लगे, तब से यह असंतोष और गहरा गया।
राजनीतिक चर्चाओं का दौर
नाम बदलने के निर्णय के बाद पूरे क्षेत्र में राजनीतिक चर्चाएं तेज हो गई हैं। समर्थकों का कहना है कि नया नाम ऐतिहासिक महत्व रखता है, जबकि विरोधियों का मानना है कि इससे खैरथल की पहचान कमजोर होगी।
अब देखना यह होगा कि यह बदलाव आने वाले समय में क्षेत्र की राजनीति, विकास और जनभावनाओं को किस दिशा में ले जाएगा।