कृषि विश्वविद्यालय जोधपुर में सात दिवसीय प्रशिक्षण शिविर का समापन, 1000 से अधिक युवाओं ने लिया प्रशिक्षण
जोधपुर। पश्चिमी राजस्थान में वैज्ञानिक तरीके से बकरी पालन को बढ़ावा देने और परंपरागत कुटीर उद्योगों को पुनर्जीवन देने की दिशा में एक सार्थक पहल करते हुए कृषि विश्वविद्यालय जोधपुर में सात दिवसीय प्रशिक्षण शिविर का समापन हुआ। इस अवसर पर कुलगुरु डॉ. अरुण कुमार ने कहा कि कम खर्चे, कम जोखिम और स्थायी आय देने वाला बकरी पालन अब युवाओं के लिए एंटरप्रेन्योरशिप का एक नया द्वार बनता जा रहा है।
डॉ. अरुण कुमार ने कहा कि “बकरी पालन के साथ-साथ उससे जुड़े परंपरागत कुटीर उद्योगों, जैसे कि कालीन बुनाई, चमड़े व ऊन के उत्पाद तैयार करने वाले उद्योगों को पुनः जीवंत करने की आवश्यकता है। इससे ग्रामीण युवाओं को रोजगार मिलेगा और देशी उत्पादों को बढ़ावा मिलेगा।” उन्होंने जानकारी दी कि विश्वविद्यालय स्तर पर कालीन बुनकरों के लिए विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम भी जल्द शुरू किए जाएंगे।
बकरी का दूध बढ़ाएगा इम्यूनिटी: डीजीएम एपीडा
समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित एपीडा (APEDA) के डीजीएम मान प्रकाश विजय ने बकरी के दूध की महत्ता पर बल देते हुए कहा कि बेहतर इम्यूनिटी के लिए इसे जन-जीवन में पुनः शामिल किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि “कोरोना काल में बकरी के दूध की मांग में अप्रत्याशित बढ़ोतरी हुई थी। ऐसे में इसके प्रचार-प्रसार और बाजार विकास पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।” उन्होंने बताया कि एपीडा किसानों को फसल और पशु उत्पादों के निर्यात के लिए सहयोग प्रदान करता है, जिससे आय में उल्लेखनीय वृद्धि हो सकती है।
एक वर्ष में 1000 से अधिक युवाओं ने लिया प्रशिक्षण
प्रशिक्षण केंद्र के प्रभारी डॉ. प्रदीप पगारिया ने बताया कि जून 2024 से जून 2025 के बीच एक वर्ष में 1000 से अधिक युवाओं ने वैज्ञानिक तरीके से बकरी पालन का प्रशिक्षण लिया है। इनमें बड़ी संख्या में उच्च शिक्षित युवा और किसान शामिल हैं। प्रशिक्षण के बाद कई युवा अब स्वावलंबन की राह पर चल पड़े हैं और व्यवसाय की शुरुआत कर चुके हैं।
समापन अवसर पर डीन डॉ. जे.आर. वर्मा ने बकरी के बालों से बने ऊनी उत्पादों को पुनः चलन में लाने की आवश्यकता बताई। कार्यक्रम के दौरान एपीडा के प्रतिनिधि श्री प्रत्युष ने भी अपने विचार रखे। अंत में प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले युवाओं को सर्टिफिकेट व प्रशिक्षण पुस्तिका का वितरण किया गया।
यह प्रशिक्षण शिविर न केवल पशुपालन को व्यवसायिक रूप देने की दिशा में प्रयास है, बल्कि परंपरागत हस्तशिल्प व ग्रामीण रोजगार को पुनर्जीवित करने की ओर एक मजबूत कदम भी है।