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    लोकतंत्र के काले अध्याय के 50 साल पूरे, 21 महीने देखी शासन की क्रूरता

    इंदौर। देश के लोकतंत्र के इतिहास में 25 जून का दिन एक काले अध्याय के रूप में दर्ज है। इस दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आंतरिक स्थिति गड़बड़ होने का हवाला देकर देश में आपातकाल लागू कर दिया था। 50 वर्ष पूर्ण होने पर भी इस काले काल खंड की चर्चा होती रहती है। 25 जून 1975 को लागू हुआ आपातकाल 21 मार्च 1977 तक करीब 21 माह रहा था। इस दौरान लोगों ने शासन का क्रूर चेहरा देखा था, जिसमें जनता नहीं शासन और उसके आका सर्वशक्तिमान बन बैठे थे। लोक पीछ छूट गया था और तंत्र सर्वोपरि हो गया था।

    आज तक क्यों होती है चर्चा?

    आपातकाल को अब पांच दशक से भी अधिक हो गए हैं। पीएम नरेंद्र मोदी नीत मौजूदा केंद्र सरकार ने एक अधिसूचना जारी कर 25 जून को ''संविधान हत्या दिवस'' घोषित कर दिया है। यह आपातकाल के दौरान शासन की ज्यादतियों की पुनः याद दिलाने और सबक लेने के लिए मनाया जाता है। इसके साथ ही केंद्र सरकार ने ऐसे कानूनी प्रावधान किए हैं, जिनके कारण देश में इस तरह से लोकतंत्र का कभी हनन नहीं हो सकेगा। आपातकाल के दौरान हुई ज्यादतियों का खौफ आज भी मीसाबंदियो में है।

    इंदौर में सेंसर होती थी खबरें, सड़कें रहती थी वीरान

    इंदौर में भी आपातकाल का खासा असर था। सड़कें जल्दी वीरान हो जाया करती थीं। सरकारी महकमे के पास अधिक शक्तियां थी और वे अपनी मनमानी पर उतारू थे। समाचार पत्रों में हर खबर पर सेंसर की कैंची चलती थी। तरह-तरह की आचार संहिता थी, जिसका पालन करना होता था। सिनेमागृह के रात्रिकालीन शो बंद हो गए थे। कानून का रुख सख्त हो गया था। देखा जाए तो आपातकाल नागरिक स्वतंत्रता का हनन करने वाला था। उस दौर की कड़वी यादें आज भी ताजा हैं। आपातकाल लागू होते ही इंदौर से कई लोगों खासकर विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया था। मीसा कानून के तहत गिरफ्तारियों का यह सिलसिला कई माह तक जारी रहा।

    19 महीने जेल में रहे अनेक लोग

    इंदौर के अहिल्यापुरा निवासी ओमप्रकाश वर्मा भी अपने चार और साथियों के साथ मीसा में गिरफ्तार हुए थे। वर्मा और उनके मित्र करीब 19 माह जेल में बंद रहे थे। ओमप्रकाश वर्मा आपातकाल की बात करने पर उसे दौर में खो जाते हैं। वर्मा ने कहा कि बात 11 अगस्त 1975 की थी, मेरे घर पुलिस का वाहन आया और उसमें मुझे बैठा कर ले गया। मेरे चार और साथी गणेश अग्रवाल, रमेश मनवानी, अजय राठौर और अरविंद जैन को भी घर से गिरफ्तार किया गया। हमने पूछा कि हमारा जुर्म क्या है? तो हमसे कहा गया कि आप आंदोलन कर रेल की पटरियां उखाड़ रहे थे, जबकि वास्तविकता यह थी कि हम सभी साथी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े थे और संघ की गतिविधियों में सक्रिय रहते थे, इस वजह से हमें गिरफ्तार किया गया था।

    गिरफ्तारी के वक्त वर्मा 18 साल के थे

    ओमप्रकाश वर्मा की उम्र उस वक्त मात्र 18 वर्ष थी। इंदौर में गिरफ्तार हुए लोगों में सबसे कम उम्र के वर्मा ही थे। आठ दिन तक सभी साथियों को विभिन्न थानों में पूछताछ के लिए ले जाया जाता था और कार्यकर्ताओं के नाम पूछे जाते थे, ताकि उन्हें भी गिरफ्तार किया जा सके। जेल में बिताए 18-19 माह को वर्मा जीवन के सबसे बुरे दिन बताते हैं। जेल में रहने के बाद वर्मा और उनके साथी सभी एकसाथ रिहा हुए थे। आपातकाल हटने के बाद मार्च 1977 में चुनाव हुए और हमने जनता पार्टी का कार्य किया। जनता पार्टी की विजय हुई। अब उस दौर को स्मरण करते ही आज भी भय लगता है। आपातकाल कांग्रेस के माथे पर एक स्थाई कलंक लगा गया है और लोकतंत्र के प्रहरियों को सजग कर गया कि देश में लोकतंत्र ही चलेगा, तानाशाही नहीं।
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