चंडीगढ़। गुरुग्राम के डीएलएफ फेज-5 में अरावली क्षेत्र में 40 एकड़ भूमि पर लगभग 2000 पेड़ों की कटाई को लेकर लिए गए संज्ञान पर सुनवाई के दौरान डीएलएफ ने अपने ऊपर लगे आरोपों को नकारा। मामले की सुनवाई के दौरान डीएलएफ की ओर से पेश वकीलों ने अवकाशकालीन पीठ को बताया कि इस परियोजना के लिए सभी आवश्यक मंजूरी वर्ष 1995 में ही प्राप्त कर ली गई थीं डीएलएफ की ओर से कंपनी को बताया गया कि यह जमीन 1995 से पहले ही अधिग्रहित कर ली थी और उसी समय से वैध लाइसेंस उनके पास है। उन्होंने अदालत में कहा यह कोई रातों-रात शुरू हुई योजना नहीं है।
'हमने सभी नियमों का पालन किया'
यह जमीन तीन दशक पहले ही ग्रुप हाउसिंग और प्लाटेड कालोनी के लिए लाइसेंस प्राप्त कर चुकी थी। इस पर यह कहना कि हम अचानक जंगल में आ बसे हैं, तथ्यात्मक रूप से गलत है। डीएलएफ ने स्पष्ट किया कि यह जमीन वन भूमि नहीं है और न ही इसमें किसी वन क्षेत्र पर आवासीय निर्माण किया गया है। चंडीगढ़ या गुरुग्राम जैसे शहरों में निजी भूमि पर पेड़ काटने के लिए भी अनुमति लेनी होती है, और हमने सभी नियमों के तहत प्रक्रिया का पालन किया है।
इसी मामले में नगर निगम गुरुग्राम की ओर से भी हलफनामा दाखिल किया गया, जिसमें कहा गया कि डीएलएफ को हरियाणा टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग से आवश्यक अनुमति मिल चुकी है। निगम के आयुक्त प्रदीप दहिया की ओर से कोर्ट में कहा निगम एक जिम्मेदार वैधानिक संस्था है, जो पर्यावरण संरक्षण, सतत शहरी विकास और अरावली पर्वत श्रृंखला की नाजुक पारिस्थितिकी को लेकर सजग है। निगम हरियाणा के हरित आवरण को संरक्षित रखने हेतु वृक्षारोपण, ग्रीन एरिया रख-रखाव और जनजागरूकता जैसे अनेक प्रयास करता रहा है।
पर्यावरण कार्यकर्ताओं का मंत्री के घर के बाहर प्रदर्शन
सुनवाई के दौरान एक स्थानीय पर्यावरण कार्यकर्ता ने भी पक्षकार बनने के लिए एक अर्जी दायर की। उन्होंने कोर्ट को बताया कि वह स्वयं मंत्री के आवास के बाहर प्रदर्शन का नेतृत्व कर चुके हैं, और उन्होंने रात के समय पेड़ों की कटाई को रोकने की मांग की थी।
जिससे वन्यजीवों के आवास नष्ट न हों। यह मामला तब सामने आया जब हाई कोर्ट ने एक समाचार रिपोर्ट “डीएलएफ प्रोजेक्ट ने अरावली में मचाया बवाल, पर्यावरण कार्यकर्ताओं का मंत्री के घर के बाहर प्रदर्शन ” पर स्वत संज्ञान लिया। रिपोर्ट में स्थानीय निवासियों और पर्यावरण प्रेमियों की चिंता जताई गई थी, जिन्होंने परियोजना को अरावली की पारिस्थितिकी के लिए विनाशकारी बताते हुए विरोध प्रदर्शन किए थे और संबंधित अधिकारियों को शिकायत सौंपी थीं। हाई कोर्ट ने अपने संज्ञान नोट में खासतौर से पर्यावरण संतुलन और प्रदूषण से जुड़े मुद्दों पर चिंता जताई थी। अब इस मामले की अगली सुनवाई तीन जुलाई को होगी।