पढ़िए डॉ. करण सिंह यादव की प्रेरणादायक जीवन यात्रा, जिन्होंने चिकित्सा और राजनीति दोनों क्षेत्रों में उत्कृष्ट योगदान दिया। पूर्व सांसद और सवाईमानसिंह अस्पताल के अधीक्षक रहे डॉ. यादव आज भी चिकित्सा को ही सबसे बड़ा धर्म मानते हैं।
मिशनसच न्यूज अलवर । दो बार अलवर से सांसद और दो बार बहरोड़ से विधायक रहने के बाद भी डॉ. करण सिंह यादव को आज भी सपने मेडिकल के ही आते हैं। वे मानते हैं कि अब मन में राजनीति की बातें कम ही आती हैं। राजस्थान के नामी हार्ट सर्जन और सवाईमानसिंह अस्पताल जयपुर के अधीक्षक रहे डाॅ. यादव का मानना है कि पूरा सिस्टम ईश्वर प्रदत्त है। डॉक्टर हो या कोई और वह केवल आदेश को सुनता है और आगे का काम करता है। इसी संदर्भ में वे युवाओं को भी कहते हैं कि असफलता से डरो मत, मेहनत करो, परिणाम ऊपर वाला अच्छे देगा।
कहा जाता है कि किसी भी व्यक्ति का जीवन जब चिकित्सकीय सेवा और सार्वजनिक जीवन के दो विशाल दायित्वों को एक साथ निभाता है, तब वह साधारण नहीं रह जाता – वह प्रेरणा बन जाता है। डॉ. करण सिंह यादव का जीवन भी एक ऐसी ही प्रेरणादायक यात्रा है, जिसमें उन्होंने चिकित्सा के क्षेत्र में देश को श्रेष्ठतम सेवाएँ दीं और साथ ही राजनीति में आकर जनसेवा के नए प्रतिमान भी गढ़े।
शुरुआती जीवन और शिक्षा
डॉ. करण सिंह यादव का जन्म 1 फरवरी 1945 को राजस्थान के बीकानेर जिले के उदयरामसर गांव में हुआ। उनके पिता संपत सिंह और माता शरबती देवी एक सामान्य ग्रामीण परिवेश से थे, लेकिन उन्होंने अपने बेटे के उज्ज्वल भविष्य के लिए जो सपना देखा, उसे करण सिंह ने संकल्प में बदल दिया। प्रारंभिक शिक्षा माउंट आबू में हुई और फिर बीकानेर के विभिन्न स्कूलों और कॉलेजों में शिक्षा जारी रही।
उन्हें बचपन से ही ताऊजी डॉक्टर कहने लगे थे। उस समय प्रथम वर्ष की पढ़ाई के बाद मेडिकल में प्रवेश मिल जाता था, परंतु उनकी उम्र केवल 17 वर्ष थी – इस कारण एक वर्ष इंतजार करना पड़ा। यह प्रतीक्षा निरर्थक नहीं रही। वर्ष 1967 में उन्होंने बीकानेर के सरदार पटेल मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस और बाद में वहीं से सर्जरी में एमएस की डिग्री प्राप्त की। चिकित्सा के क्षेत्र में यह उनकी यात्रा की पहली सीढ़ी थी।
चिकित्सा सेवा की यात्रा
1970 में नीमका थाना में सरकारी नौकरी से चिकित्सा सेवा की शुरुआत की। कुछ समय बाद स्थानांतरण अलवर हुआ और फिर 1973 में सवाई मानसिंह अस्पताल (एसएमएस), जयपुर में ट्यूटर के पद पर नियुक्त हुए। इसके पश्चात उन्होंने बेंगलुरु के क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज से एम.सी.एच. किया और फिर जयपुर लौट आए।
कॉमनवेल्थ फेलोशिप के अंतर्गत वे साउथहैंपटन, इंग्लैंड गए और वहाँ दो वर्षों तक विशेष प्रशिक्षण प्राप्त किया। अपने अनुभव और विशेषज्ञता के बल पर वे 1995 में एसएमएस अस्पताल, जयपुर के अधीक्षक बने। वे राजस्थान के उन गिने-चुने कार्डियक सर्जनों में से रहे हैं जिनके हाथों में जीवन की डोर हजारों बार सुरक्षित रही। उनके अनुसार, “डॉक्टर सिर्फ माध्यम होता है, असली संचालन ऊपर वाले का होता है।”
राजनीति में सेवा का प्रवेश
डॉ. यादव की सेवा भावना यहीं नहीं रुकी। वर्ष 1998 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और वरिष्ठ नेता राजेश पायलट ने उन्हें राजनीति में आने का आग्रह किया। उनका मानना था कि राजनीति में अच्छे और ईमानदार लोगों की जरूरत है। डॉ. यादव ने इस आह्वान को स्वीकार किया और बहरोड़ विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और विजयी हुए।
इसके बाद 2003 में अलवर लोकसभा सीट से सांसद बने। राजनीति में सक्रिय भूमिका के चलते उन्हें दो बार बीस सूत्रीय कार्यक्रम का उपाध्यक्ष बनाया गया और कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्रदान किया गया। वर्ष 2017 में जब अलवर में उपचुनाव हुआ, तो वे पुनः सांसद निर्वाचित हुए। जनता का विश्वास और उनका सेवाभाव, दोनों इस सफलता की नींव बने।
पुरस्कार और सम्मान
चिकित्सा के क्षेत्र में उनके योगदान को कई पुरस्कारों से नवाजा गया। कार्डियक सर्जरी में लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड, राजस्थान सरकार के विभिन्न स्वास्थ्य सेवा सम्मान, और चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में योगदान के लिए अनेक प्रशस्तियाँ उनके खाते में दर्ज हैं। परंतु वे इन पुरस्कारों को निजी सफलता नहीं मानते, बल्कि एक चिकित्सक के सामाजिक उत्तरदायित्व की स्वीकारोक्ति समझते हैं।
व्यक्तित्व और विचारधारा
डॉ. यादव आज भी मानते हैं कि उनका वास्तविक स्वप्न चिकित्सा सेवा ही रहा है। वे कहते हैं – “अब राजनीति की बातें कम ही आती हैं, सपने तो आज भी ऑपरेशन थियेटर और मरीजों से जुड़े आते हैं।”
उनका यह दृष्टिकोण उन्हें एक अलग श्रेणी में लाकर खड़ा करता है – वे उन विरले व्यक्तियों में से हैं जिन्होंने दो-दो क्षेत्रों में उत्कृष्टता के झंडे गाड़े हैं।
वे युवाओं को यही संदेश देते हैं कि,
“असफलता से डरना नहीं चाहिए। मेहनत करते रहो, परिणाम ऊपर वाला तय करेगा।”
पारिवारिक जीवन
डॉ. यादव पाँच भाइयों में एक हैं। उनकी पत्नी कांता यादव हमेशा उनके साथ रहती हैं और उनकी सेवा यात्रा में साझेदार भी बनीं। संतान रूप में उन्होंने अपने छोटे भाई के पुत्र गौतम को पुत्रवत स्वीकार किया है, जो आज भी उनके साथ रहता है।
उस पीढ़ी के डॉक्टर जो सेवा को ही धर्म मानते हैं
डॉ. करण सिंह यादव का जीवन एक ऐसा आदर्श प्रस्तुत करता है, जिसमें ज्ञान, सेवा और विनम्रता की त्रिवेणी बहती है। वे चिकित्सक भी हैं, शिक्षक भी, जनसेवक भी और एक चिंतनशील व्यक्ति भी। राजस्थान की मिट्टी ने ऐसे अनेक रत्नों को जन्म दिया है – पर डॉ. यादव जैसे व्यक्तित्व बहुत कम देखने को मिलते हैं। वे सचमुच उस पीढ़ी के प्रतिनिधि हैं, जिनके लिए सेवा ही सबसे बड़ा धर्म है।