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    बिहार चुनाव 2025: नीतीश कुमार के लिए सत्ता वापसी क्यों हो रही है मुश्किल, जानें 4 बड़े कारण

    पटना: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की बाजी एनडीए के हाथ लगेगी या महागठबंधन के हाथ, यह कहना अभी जल्दबाजी होगी। लेकिन बिहार विधानसभा का 2025 चुनाव राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए भी आसान जंग नहीं रह गया है। आइए, जानते हैं कि इस चुनावी जंग में सीएम नीतीश कुमार को किन 4 बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा।

    विधानसभा चुनाव 2025 और नीतीश कुमार
    बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की जंग को ले कर आज की तारीख में बात करें तो यह किसी के लिए भी आसान नहीं रह गया है। विपक्ष एक मजबूत गठबंधन के साथ सामना करने को तैयार है। पर इधर के दिनों में नीतीश कुमार के इर्द-गिर्द सोचें तो कई ऐसे फैक्टर हैं जो नीतीश कुमार के ही खिलाफ जा रहे हैं। समझिए कैसे…

    पहला- ब्यूरोक्रेसी का भ्रष्टाचार
    नीतीश कुमार के विरुद्ध सबसे बड़ा मुद्दा अगर कोई बनता है तो भ्रष्टाचार। यह भ्रष्टाचार ब्लॉक लेवल से उठ कर सचिवालय की गलियों तक का सफर तय करता है। खास कर शिक्षा, राजस्व, पुल और सड़क निर्माण। ऊपर से स्वास्थ विभाग तो भ्रष्टाचार के मामलों में अव्वल ही रहा है। अभी हाल ही में इंजीनियर विनोद कुमार राय जिनके कई ठिकानों से काफी रुपए मिले। न जाने कितने नोट जला दिए गए। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की जांच के बाद आईएएस संजीव हंस पर भ्रष्टाचार के मामले दर्ज किए गए। डीईओ, सीओ, बीडीओ, डीएस स्तर पर तो न जाने कितने मामले दर्ज किए गए। और तो और चपरासी और राजस्व कर्मचारी भी नीतीश के स्वच्छ प्रशासन के अभियान में पलीता लगा रहे हैं। इनमें से कई तो घूस लेते रंगे हाथ पकड़ लिए गए। सुलतानगंज अगुवानी पुल तो भ्रष्टाचार की गवाही कई बार ध्वस्त होकर दे चुका है।

    दूसरा- बढ़ते अपराध का शिकंजा
    साल 2005 और 2010 तक पुलिस प्रशासन की हनक दिखी। नीतीश कुमार का सुशासन दिखा। पर इसके बाद लॉ एंड ऑर्डर तो भी लड़खड़ाने लगा है। स्थिति यह हो गई जिस लालू यादव के खिलाफ जंगल राज का मुद्दा नीतीश कुमार ने बनाया और सत्ता भी हासिल की, आज वही राजद नीतीश कुमार के विरुद्ध अपराध बुलेटिन तक जारी करने लगा। सड़कों पर खुलकर अपराधी गोली चलाते दिखे। बलात्कार के मामले भी सामने आए। पटना की सड़कों पर गोलियों की तड़तड़ाहट कई बार देखने को मिली। ADG ATS पंकज दराद के सामने ही बीच सड़क पर फायरिंह हो गई। गोपाल खेमका समेत कई व्यवसायियों की हत्या भी नीतीश कुमार का कार्यकाल में हुई।

    तीसरा- उम्र और स्वास्थ
    मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अधिक उम्र के भी दायरे में आ गए हैं। यह उम्र अब सक्रिय राजनीति करने की इजाजत नहीं देती। उम्र का असर दिखने लगा है। सभा या विभागीय कार्यक्रम में ऐसा कई बार देखा गया जब मुख्यमंत्री ने कुछ अजीबो गरीब हरकत कर दी। कुछ ही सप्ताह पहले आईएएस सिद्धार्थ के माथे पर ही गमला रख दिया। हाल ही ने नियुक्ति पत्र बांटते वक्त उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी को साइड करने के लिए हल्का सा धक्का भी दे दिया।

    चौथा- NDA में ही कलह
    एक समय था जब नीतीश कुमार के सामने कोई चूं तक नहीं करता था। पर पिछले कैबिनेट की बैठक में जमीन को ले कर उप मुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा और मंत्री अशोक चौधरी उलझ गए। दोनों एक दूसरे को चुनौती देने लगे। जदयू कार्यालय भी इस बात का गवाह रहा है कि राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह और अशोक चौधरी बरबीघा विधानसभा को ले कर उलझ गए थे। अभी लखीसराय जिले में ही उप मुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा और केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह उलझे हुए है। सूर्यगढ़ा के स्थानीय विधायक प्रह्लाद यादव को शक्ति परीक्षण के समय राजद से तोड़ने का काम विजय सिन्हा ने किया था। अब स्थिति यह है कि ललन सिंह साफ कह चुके हैं कि लखीसराय के आतंक को हरगिज टिकट नहीं दिया जाएगा। यह सीट जदयू की है और जदयू ही यहां से चुनाव लड़ेगा। मोकामा विधानसभा का मामला भी पेचीदा हो गया है। अनंत सिंह के चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद एमएलसी नीरज कुमार और ललन सिंह की तरफ से भी प्रतिरोध आ गया है। नतीजा ये हो गया कि अनंत सिंह को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के दरबार में जाना पड़ा।

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