घुमंतू जातियों के लोगों ने बताई आज की स्थिति
मिशनसच न्यूज, अलवर। ब्रिटिश शासन के दौरान बनाए गए उस काले कानून की पीड़ा, जिसने देश की 1000 से अधिक घुमंतू व अर्ध-घुमंतू जनजातियों पर “अपराधी” होने का कलंक थोप दिया था, आज भी इन समुदायों की ज़िंदगी में किसी न किसी रूप में दिखाई देती है। 1952 में भारत सरकार ने इस कानून को खत्म कर उन्हें कानूनी रूप से आज़ादी दिलाई, लेकिन समाज में समान स्वीकृति और सम्मान का सपना अब भी अधूरा है। इस आज़ादी के दिन

को घुमंतू समाज “विमुक्त दिवस” के रूप में मनाता है।
इसी कड़ी में रविवार को अलवर जिले के गाजूका, सुकल, मेडीबास, सपेरा बास और बरदू बंजारा बस्ती से आए 60 से अधिक लोग सरुप विलास में इकट्ठा हुए और विमुक्त दिवस मनाया। इस आयोजन में सपेरा, बंजारा, नट और राजनट समुदाय के लोग शामिल हुए। उन्होंने अपनी परिस्थितियों, संघर्षों और लंबे समय से चली आ रही समस्याओं पर खुलकर बात की।
मूलभूत सुविधाओं से अब भी दूर
कार्यक्रम के दौरान यह तथ्य सामने आया कि अपराधी होने के कलंक से आधिकारिक मुक्ति मिले छह दशक बाद भी ये समुदाय मुख्यधारा के समाज से काफी पीछे हैं। कहीं आज भी सड़क और बिजली का अभाव है, कहीं युवा पढ़-लिख कर भी नौकरी से वंचित हैं और कहीं तो आज तक भूमि के अधिकार भी नहीं मिल सके। लोगों ने कहा कि यह केवल विकास की कमी नहीं, बल्कि अब भी उन पर लगे “कलंक” के असर का नतीजा है, जिसके कारण वे बराबरी का स्थान नहीं पा सके हैं।
नई पीढ़ी में जागरूकता
कार्यक्रम में सबसे उल्लेखनीय पहलू यह रहा कि स्कूली बच्चे भी मंच पर आए और समाज में बराबरी की हिस्सेदारी, शिक्षा और अधिकारों को लेकर बेबाकी से बोले। यह तस्वीर इस ओर इशारा करती है कि अब इन समुदायों में आत्मविश्वास और जागरूकता की नई लहर उठ रही है। आयोजकों ने कहा कि यह ठीक वैसा ही दौर है, जैसा पिछली सदी में पश्चिमी मुल्कों में अश्वेत समाज ने अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर दिखाया था।
अतिथियों ने बढ़ाया हौसला
सभा में मौजूद बी. एल. वर्मा (पूर्व सहायक श्रम आयुक्त), प्रमोद मालिक (पूर्व पत्रकार), रामचरण राग (समाज सुधारक व कवि) और शरद शर्मा (संस्थापक, वर्ल्ड कॉमिक्स इंडिया) ने लोगों की बात सुनी और उन्हें अपने हक़ व अधिकारों की लड़ाई में मजबूती से खड़े रहने का संदेश दिया। वक्ताओं ने कहा कि अब सरकार और समाज दोनों स्तरों पर इन समुदायों के मुद्दों को गंभीरता से उठाने की ज़रूरत है।
कला और संस्कृति का रंग
दिल्ली स्थित संगठन वर्ल्ड कॉमिक्स इंडिया द्वारा आयोजित इस सभा में न केवल समस्याओं पर चर्चा हुई बल्कि संस्कृति का रंग भी बिखरा। कार्यक्रम का समापन सपेरा समुदाय के बीन वादन और नृत्य के साथ हुआ। इसमें सदियों का दर्द और संस्कृति की जीवंतता का अद्भुत मिश्रण दिखाई दिया। कुछ देर के लिए ऐसा लगा मानो संगीत की धुन में सचमुच सभी “विमुक्त” हो गए हों।
पत्रिका “विमुक्त आवाज़” का विमोचन
इस अवसर पर ग्रासरूट्स कॉमिक्स द्वारा घुमंतू समुदाय के मुद्दों पर केंद्रित पत्रिका “विमुक्त आवाज़” का भी विमोचन किया गया। आयोजकों का मानना है कि यह पत्रिका आने वाले समय में इन समुदायों की आवाज़ को समाज और नीति-निर्माताओं तक पहुंचाने का माध्यम बनेगी।
मिशन सच से जुडने के लिए हमारे व्हाट्सप्प ग्रुप को फॉलो करे https://chat.whatsapp.com/JnnehbNWlHl550TmqTcvGI?mode=r_c
इसी तरह की स्टोरी के लिए देखें मिशन सच की अन्य रिपोर्ट https://missionsach.com/dr-dilip-sethi-alwar-pediatrician-biography.html