अलवर के प्रसिद्ध बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. दिलीप सेठी की प्रेरणादायक जीवनगाथा – गांव टहला से शुरू होकर सेठी चिल्ड्रन हॉस्पिटल की स्थापना तक का सफर।
मिशनसच न्यूज, अलवर । डॉ. दिलीप सेठी : अलवर शहर में बच्चों के इलाज की चर्चा हो और सेठी चिल्ड्रन हॉस्पिटल की ना हो यह नहीं हो सकता। सरिस्का अभयारण्य की सुरम्य वादियों की तलहटी में स्थित ग्राम टहला में जन्मे डॉ. सेठी आज इस हॉस्पिटल का संचालन कर रहे हैं। ग्रामीण परिवेश से उठकर चिकित्सा के क्षेत्र में जो साधना उन्होंने की, वह एक प्रेरक गाथा है।
शुरुआत एक छोटे गांव से…
डॉ. सेठी का जन्म जगदीश सेठी और श्रीमती कमला सेठी के इकलौते पुत्र के रूप में एक संयुक्त परिवार में हुआ। उनके शिक्षक चाचा द्वारिका प्रसाद सेठी की संगत में उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा टहला तथा उसके आसपास के गांवों – तिलवाड़ा, मल्लाना और गोवर्धनपुरा में प्राप्त की।
बचपन की यादों में बसी हैं बावड़ियों में कूदकर नहाने की शरारतें, छोटे बांधों में तैरने के साहसिक किस्से और पहाड़ियों पर बेर तोड़ते जीवन के सरल किंतु सशक्त पल। इन्हीं अनुभवों ने उनके भीतर कर्मठता, आत्मविश्वास और जीवन संघर्ष से जूझने का जज़्बा भर दिया।
डॉक्टर बनने का सपना
छठी कक्षा में राजकीय माध्यमिक विद्यालय टहला से पढ़ाई जारी रखते हुए उन्होंने आठवीं उत्तीर्ण की और बायोलॉजी विषय लेकर डॉक्टर बनने का सपना सजाया। इसके लिए वे अपने पिता के साथ अलवर आए और यशवंत स्कूल में प्रवेश लिया।
दसवीं द्वितीय श्रेणी से उत्तीर्ण करने के बाद 12वीं पूरी की और राजर्षि महाविद्यालय में प्रवेश लिया। 1972 में पीएमटी में चयनित होकर श्रीनगर, कश्मीर प्रवेश मिला, पर नहीं गए। 1973 में पुनः प्रयास कर एसएमएस मेडिकल कॉलेज, जयपुर में प्रवेश मिला, जहाँ से 1978 में एमबीबीएस और 1982 में पीडियाट्रिक्स में एम.डी. की डिग्री प्राप्त की।
सेवा और समर्पण का पथ
डॉ. सेठी ने 31 दिसंबर 1982 को नीमराणा में मेडिकल ऑफिसर के रूप में राजकीय सेवा आरंभ की। कुछ ही महीनों में भरतपुर और फिर अलवर के राजीव गांधी सामान्य चिकित्सालय में स्थानांतरण हुआ। यहां 1993 तक सेवा देने के बाद उन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर सेठी चिल्ड्रन हॉस्पिटल की स्थापना की।
सिर्फ दो बेड से शुरू हुआ यह अस्पताल आज अलवर का प्रमुख बाल चिकित्सा केंद्र बन चुका है, जिसमें सेवा, समर्पण और सादगी का मेल देखने को मिलता है।
चिकित्सा धर्म की सच्ची मिसाल
डॉ. सेठी ने एक बार एक ऐसा बच्चा उपचार हेतु लाया गया, जिसकी नब्ज और धड़कन नहीं थी। उन्होंने इलेक्ट्रिक शॉक व पंपिंग तकनीक से जीवन लौटाया। चार दिन बाद जब बच्चा होश में आया, तब उसने बताया कि कीटनाशक युक्त पानी से नहाने के कारण उसकी हालत बिगड़ी थी।
यह केस डॉ. सेठी के लिए चमत्कार भी था और चिकित्सा धर्म की गहराई का अनुभव भी।
जीवनचर्या में अनुशासन, मूल में संस्कार
डॉ. सेठी बताते हैं कि ग्रामीण पृष्ठभूमि से आने के कारण अंग्रेजी पढ़ने व समझने में कठिनाई हुई, पर उन्होंने हार नहीं मानी। 16 से 18 घंटे नियमित अध्ययन, सीमित संसाधनों में निरंतर संघर्ष, और केवल दो दिन की बहन की शादी में छुट्टी – यह सब उनकी साधना का प्रमाण है।
आज भी वे सुबह 9 से दोपहर 2:30 और शाम 6 से 8 बजे तक अस्पताल में चिकित्सा कार्य करते हैं। उनके अनुसार यही अनुशासन उन्हें आज भी ऊर्जावान बनाए हुए है।
परिवार – प्रेरणा और समर्थन
डॉ. सेठी की धर्मपत्नी श्रीमती सुधा सेठी एक गृहिणी हैं, जो उनके लिए सही सलाहकार और संबल हैं। उनके पुत्र डॉ. चिराग सेठी ने भी पीडियाट्रिक्स में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की है। उनके दो पौत्र – शुभांग (सातवीं कक्षा, जयपुर) और अथर्व (तीसरी कक्षा, अलवर) उनके सबसे अच्छे मित्र हैं।
संस्कार और प्रेरणा
डॉ. सेठी अपने जीवन की प्रेरणा अपने पिता जगदीश सेठी और मित्र डॉ. स्वर्णकार के पिता रामजीलाल को मानते हैं, जो अक्सर कहते थे –
“काम के पीछे भागना, पैसे के पीछे नहीं। जिस दिन पैसे को लक्ष्य बना लिया, समझ लेना तुमसे नाराज हूँ।”
आज भी यह वाक्य उनको आदर्श की तरह उनके जीवन को दिशा देता है।
सम्मान और सराहना
डॉ. दिलीप सेठी को अब तक आईएमए द्वारा तीन बार सम्मानित किया जा चुका है। वे आज भी सवेरे भ्रमण, व्यायाम और नियमित दिनचर्या के साथ स्वस्थ जीवन और सार्थक सेवा के प्रतीक बने हुए हैं।
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