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    Homeधर्म-समाजइस महा कवच के पाठ से बुरी शक्तियां रहेंगी दूर, हर टोटकों...

    इस महा कवच के पाठ से बुरी शक्तियां रहेंगी दूर, हर टोटकों का काट, असली पूजा यही

    पितृ पक्ष के बाद शारदीय नवरात्रि के दिन शुरू हो जाते हैं. आदिशक्ति देवी दुर्गा स्वर्ग लोक से पृथ्वी लोक पर आकर अपने भक्तों का कल्याण करती हैं. नवरात्रि के दिन शुरू होने में कुछ दिन शेष रह गए हैं. 22 सितंबर सोमवार से शारदीय नवरात्रों की शुरुआत हो जाएगी, जिनमें घट स्थापना के बाद नौ दिनों तक देवी दुर्गा के अलग-अलग रूपों की पूजा अर्चना, आराधना और दुर्गा सप्तशती का पाठ किया जाएगा. दुर्गा सप्तशती धार्मिक ग्रंथ है जिसमें देवी कवच समेत अनेक चमत्कारी स्तोत्र का वर्णन किया गया है. नवरात्रि के दिनों में दुर्गा सप्तशती का पाठ करना विशेष फलदाई होता है.

    कुल इतने श्लोक
    हरिद्वार के विद्वान धर्माचार्य पंडित श्रीधर शास्त्री बताते हैं कि साल में चार बार नवरात्रि का आगमन होता है. नवरात्रि के दिनों में दुर्गा सप्तशती का पाठ करने पर संपूर्ण से अधिक फल की प्राप्ति होने की धार्मिक मान्यता है. दुर्गा सप्तशती का पाठ करने के लिए सबसे पहले शक्तिशाली ‘देवी कवच’ का पाठ किया जाता है. देवी कवच में कुल 56 श्लोक हैं.

    अदृश्य सुरक्षा घेरा

    देवी कवच का पाठ करने से भक्त के चारों ओर शक्ति का एक अदृश्य कवच बन जाता है, जिससे बुरी शक्तियां और नकारात्मक ऊर्जा देवी की भक्ति में बाधा नहीं बनती हैं. दुर्गा सप्तशती का पाठ पूर्ण करने के लिए देवी कवच का सबसे पहले पाठ किया जाता है जिसमें देवी के 9 रूपों की का वर्णन किया गया है. इसके पाठ करने से सभी दुर्गा सप्तशती के सभी स्तोत्र और मंत्र का संपूर्ण से अधिक लाभ मिलता है.
    ॥अथ श्री देव्याः कवचम्॥

    ॐ अस्य श्रीचण्डीकवचस्य ब्रह्मा ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, चामुण्डा देवता, अङ्गन्यासोक्तमातरो बीजम्, दिग्बन्धदेवतास्तत्त्वम्, श्रीजगदम्बाप्रीत्यर्थे सप्तशतीपाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः।
    ॐ नमश्‍चण्डिकायै॥

    मार्कण्डेय उवाच
    यद्‌गुह्यं परमं लोके सर्वरक्षाकरं नृणाम्।
    यन्न कस्यचिदाख्यातं तन्मे ब्रूहि पितामह॥१॥

    ब्रह्मोवाच
    अस्ति गुह्यतमं विप्र सर्वभूतोपकारकम्।
    देव्यास्तु कवचं पुण्यं तच्छृणुष्व महामुने॥२॥
    प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
    तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ॥३॥
    __________________________ ॥४-५५॥

    लभते परमं रुपं शिवेन सह मोदते॥ॐ॥५६॥
    इति देव्याः कवचं सम्पूर्णम्।

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