जैन नसियाजी स्थित जैन वाटिका में चल रहे श्रीकल्पद्रुम महामंडल विधान के तीसरे दिन श्रद्धालुओं ने उत्साहपूर्वक जिनेन्द्र भक्ति करते हुए अर्घ्य चढ़ाए और पूजा-अर्चना की
मिशनसच न्यूज़, अलवर। जैन नसिया जी स्थित जैन वाटिका में चल रहे श्री कल्पद्रुम महामंडल विधान के तीसरे दिन श्रद्धालुओं ने उत्साहपूर्वक जिनेन्द्र भक्ति करते हुए अर्घ्य चढ़ाए और पूजा-अर्चना की। दिन की शुरुआत कल्पवृक्ष भूमि पूजन के साथ हुई, जिसमें चौबीस तीर्थंकरों के अर्घ्य अर्पित किए गए।
चातुर्मास समिति के मुख्य संयोजक पवन जैन चौधरी ने बताया कि आज विधान में समवशरण से संबंधित झांकी का प्रदर्शन किया गया। इसमें दर्शाया गया कि समवशरण में केवल मनुष्य ही नहीं बल्कि तिर्यंच गति के जीव (पशु), देव, व्यंतर आदि भी भगवान जिनेन्द्र की ध्वनि सुन सकते हैं। इस झांकी को देखकर श्रद्धालु भावविभोर हो उठे।
माता-पिता का सम्मान
आज के कार्यक्रम में एक अनूठा दृश्य देखने को मिला। विधान में बैठे अनेक श्रद्धालुओं के बेटों ने अपने परिवार के साथ आकर माता-पिता का सम्मान किया। बेटों ने पत्नी और बच्चों सहित माता-पिता के चरण धोए, उन्हें माला पहनाकर भेंट दी। इस भावपूर्ण दृश्य से अनेक श्रद्धालुओं की आंखें नम हो गईं। कार्यक्रम का संदेश था कि बच्चों को संस्कारित और धर्ममय जीवन जीने की प्रेरणा मिले। इस अवसर पर उपाध्याय विज्ञानन्द महाराज ससंघ का आशीर्वाद भी प्राप्त हुआ और पूरे आयोजन की सराहना की गई।
उपदेश और प्रवचन
विधान के दौरान उपाध्याय विज्ञानन्द महाराज ने प्रवचन देते हुए कहा कि पाप कर्म करने वाला व्यक्ति कभी भी निर्भय जीवन नहीं जी सकता। उन्होंने कहा कि हम सौभाग्यशाली हैं जो इस प्रकार के धार्मिक आयोजन का हिस्सा बन पा रहे हैं। जीवन का अंत समता भाव से हो, यही प्रयास होना चाहिए ताकि अगला भव सुधर सके। उन्होंने कहा कि मनुष्य जीवन आत्मकल्याण के लिए मिला है। धर्म के माध्यम से कई भवों के पापों की निर्जरा होती है, लेकिन इंसान लोभ, क्रोध, मोह, माया और राग-द्वेष में फंसकर धर्म से दूर हो रहा है। इस कारण आत्मकल्याण संभव नहीं हो पाता। उपाध्याय श्री ने संदेश दिया कि हमें जीवन धर्म के साथ जीना चाहिए और साधु-संगति में समय बिताना चाहिए ताकि अपने सभी पापों से मुक्त हो सकें।