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    CJI गवई ने उठाए न्यायिक नियुक्तियों में सरकारी दखल पर सवाल, नेहरू सरकार के जमाने में हुई थी मनमानी

    दिल्ली: भारत के मुख्य जज बीआर गवई ने जजों की नियुक्ति को लेकर अहम टिप्पणी की है. उन्होंने कहा है कि सरकार ने भारत के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति करते समय दो बार सबसे वरिष्ठ न्यायाधीशों को नजर अंदाज किया, उस समय न्यायाधीशों की नियुक्ति में अंतिम निर्णय सरकार का ही था. मुख्य न्यायाधीश ब्रिटेन के सुप्रीम कोर्ट द्वारा आयोजित एक गोलमेज सम्मेलन में 'न्यायिक वैधता और सार्वजनिक विश्वास बनाए रखना के' विषय पर ये बातें कही हैं.

    जजों की नियुक्ति में किसका होता है फैसला-CJI
    इस गोलमेज सम्मेलन में इंग्लैंड और वेल्स की लेडी चीफ जस्टिस बैरोनेस कैर और यूके के सुप्रीम कोर्ट के जज जॉर्ज लेगट भी शामिल हुए. मुख्य न्यायाधीश ने कहा, 'भारत में, विवाद का एक मुख्य मुद्दा यह रहा है कि न्यायिक नियुक्तियों में प्राथमिकता किसकी है. 1993 तक, सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति में अंतिम निर्णय कार्यपालिका का होता था. इस अवधि के दौरान, भारत के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति में कार्यपालिका ने दो बार जजों के फैसले को अनदेखा किया, जो स्थापित परंपरा के विरुद्ध था.'

    नेहरू सरकार पर CJI ने की खुलकर बात
    CJI पद के लिए जिन दो जजों को दरकिनार किया गया है, वे हैं जस्टिस सैयद जाफर इमाम और जस्टिस हंस राज खन्ना. जस्टिस इमाम को 1964 में शीर्ष पद पर पद नहीं सौंपा जा सका था क्योंकि वे स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से पीड़ित थे और तत्कालीन जवाहरलाल नेहरू सरकार ने जस्टिस पीबी गजेंद्रगढ़कर को यह पद सौंपा था.

    'कमजोर हुई न्यायपालिका की स्वतंत्रता'
    मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम को रद कर दिया था. उन्होंने कहा कि इस अधिनियम ने न्यायिक नियुक्तियों में कार्यपालिका को प्राथमिकता देकर न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कमजोर किया है. 'कॉलेजियम प्रणाली की आलोचना हो सकती है, लेकिन कोई भी समाधान न्यायिक स्वतंत्रता की कीमत पर नहीं आना चाहिए.

    जजों के रिटायरमेंट पर क्या बोले CJI?
    मुख्य न्यायाधीश गवई ने कहा कि किसी न्यायाधीश द्वारा सरकारी पद ग्रहण करना, या त्यागपत्र देकर चुनाव लड़ना नैतिक चिंताएं पैदा करता है. भारत में जजों के लिए एक निश्चित रिटायरमेंट उम्र होती है. यदि कोई जज रिटायरमेंट के तुरंत बाद सरकार के साथ कोई अन्य नियुक्ति लेता है, या चुनाव लड़ने के लिए पीठ से इस्तीफा देता है, तो यह महत्वपूर्ण नैतिक चिंताएं पैदा करता है और सार्वजनिक जांच को आमंत्रित करता है.

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