भीतर के खोखलेपन के प्रति रहें सजग: मुनि श्री विनयकुमारजी आलोक

— अणुव्रत भवन में मनीषी संत के सान्निध्य में आयोजित हुई विशेष कार्यशाला

चंडीगढ़:
सेक्टर-24 स्थित अणुव्रत भवन के तुलसी सभागार में आज प्रातः 11 बजे मनीषी संत मुनिश्री विनयकुमारजी आलोक के सान्निध्य में एक विशेष कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में आत्मबोध, अहिंसा और मनोवैज्ञानिक संतुलन जैसे विषयों पर मुनिश्री ने गहन दृष्टिकोण प्रस्तुत किया।

मुनिश्री ने अपने प्रवचन में कहा कि “भीतर का खोखलापन एक अदृश्य दीमक की तरह है, जो हमारी सोच, निर्णय और संवेदनाओं को चुपचाप चाटता जा रहा है। हम बाहरी साधनों में इतने खो जाते हैं कि आत्मिक शक्ति क्षीण होती जाती है।”

“सच्चा किला भीतर है”

मुनिश्री ने एक कथा के माध्यम से आत्म-रक्षा का संदेश देते हुए कहा कि

“एक साधु से जब पूछा गया कि यदि उन पर हमला हो जाए तो वे क्या करेंगे? उन्होंने कहा—‘मैं अपने सुरक्षित किले में चला जाऊंगा।’ जब लोगों ने पूछा कि वह किला कहाँ है, तो साधु ने मुस्कराकर कहा—‘यह मेरे हृदय की शांति है, मेरा आत्मबल ही मेरा किला है।’”

उनकी यह बात आज के दौर में आत्मरक्षा और आंतरिक मजबूती का अनूठा सन्देश बनकर सामने आई।

हिंसा के बढ़ते प्रभाव पर जताई चिंता

उन्होंने वर्तमान समय में बढ़ती आक्रामकता, गाली-गलौज की भाषा, और मीडिया व नेताओं द्वारा फैलाए जा रहे गुस्से के प्रति भी चिंता जताई। मुनिश्री ने कहा,

“हमारे चारों ओर हिंसा ठूसी जा रही है। यह क्रोध हमारे भीतर प्रेम, सह-अस्तित्व और संवेदना की जड़ें काट रहा है।”

उन्होंने चेताया कि जैसे वृक्ष की जड़ कटने का असर तुरंत नहीं दिखता, वैसे ही भीतर उपजी हिंसा धीरे-धीरे चेतना को नष्ट करती जाती है।

अनदेखी की प्रवृत्ति पर भी किया चिंतन

मुनिश्री ने बताया कि अक्सर हम जिन बातों से असहमत होते हैं, उन्हें नकारते हैं या अनदेखा कर देते हैं, लेकिन यही बातें हमारे जीवन में सबसे गहरे प्रभाव छोड़ती हैं। उन्होंने सभी से आत्मनिरीक्षण कर अपने “भीतर के किले” को मजबूत करने का आह्वान किया।

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