More
    Homeराज्यमध्यप्रदेशBMHRC के चिकित्सकों की बड़ी सफलता, डुअल चेंबर पेसमेकर से बची बच्ची...

    BMHRC के चिकित्सकों की बड़ी सफलता, डुअल चेंबर पेसमेकर से बची बच्ची की जिंदगी

    भोपाल। भोपाल मेमोरियल अस्पताल एवं अनुसंधान केंद्र (बीएमएचआरसी) के कार्डियोलॉजी विभाग ने एक दुर्लभ और चुनौतीपूर्ण चिकित्सा उपलब्धि हासिल की है। यहां 13 वर्ष की गैस पीड़ित आश्रित बालिका को इमरजेंसी में डुअल चेंबर पेसमेकर लगाकर उसकी जान बचाई गई। अब बालिका की हालत बेहतर है और उसे अस्पताल से छुट्टी दे दी गई है। यह प्रक्रिया सहायक प्रोफेसर डॉ. अमन चतुर्वेदी और उनकी टीम द्वारा सफलतापूर्वक की गई।

    तीन वर्ष की आयु में दिल में था छेद

    बीएमएचआरसी के कार्डियोलॉजी विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. अमन चतुर्वेदी ने बताया कि यह मरीज जन्म से ही हृदय रोग से पीड़ित थी। तीन वर्ष की आयु में उसके दिल में छेद (congenital heart defect) का ऑपरेशन किया गया था। ऑपरेशन के बाद उसे हार्ट ब्लॉक हो गया यानी हृदय की धड़कन असामान्य रूप से धीमी हो गई। इसके कारण उसे चक्कर आना, आंखों के सामने अंधेरा छा जाना जैसी परेशानियां होने लगीं।हार्ट ब्लॉक की स्थिति में, बचपन में ही उसे एपिकार्डियल पेसिंग (epicardial pacing) डिवाइस लगाई गई। इस प्रक्रिया में पेसमेकर के तार हृदय की बाहरी सतह पर लगाए जाते हैं, जो आमतौर पर छोटे बच्चों में अपनाई जाती है, क्योंकि उनके हृदय का आकार छोटा होता है। इस डिवाइस की आयु लगभग 10 वर्ष होती है। डिवाइस की अवधि पूरी होने के बाद हाल ही में मरीज को फिर से वही लक्षण होने लगे। बीएमएचआरसी में जांच के बाद यह स्पष्ट हुआ कि अब उसे एक स्थायी और अधिक उन्नत पेसमेकर की आवश्यकता है। आपातकालीन स्थिति में टीम ने सफलतापूर्वक डुअल चेंबर पेसमेकर प्रत्यारोपित किया। इस जीवनरक्षक प्रक्रिया को अंजाम देने वाली टीम में कार्डियोलॉजी विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. कपिलकांत त्रिपाठी, डॉ. नुपुर गोयल, मेडिकल ऑफिसर डॉ. अनुराग ठाकुर एवं अन्य सदस्य शामिल थे।

    क्या होता है डुअल चेंबर पेसमेकर? 

    पेसमेकर एक छोटा उपकरण होता है, जो दिल की धड़कन को नियंत्रित करता है। यह दिल को सही गति से धड़कने में मदद करता है। सिंगल चेंबर पेसमेकर हार्ट के सिर्फ एक चेंबर को इलैक्ट्रिक सिग्नल देता है, जबकि डुअल चेंबर पेसमेकर दिल के दो भागों-ऊपरी (एट्रियम) और निचले (वेन्ट्रिकल) चेंबरों को दोनों को सिग्नल भेजता है, जिससे दिल की धड़कन और भी प्राकृतिक तरीके से चलती है। बच्ची के मामले में डुअल चेंबर पेसमेकर इसलिए लगाया गया क्योंकि उसकी स्थिति अधिक जटिल थी और बेहतर तालमेल के लिए दोनों चेंबर तक एकसाथ सिग्नल देना ज़रूरी था।

    बच्चों या किशोरों में पेसमेकर लगाना बहुत मुश्किल 

    बीएमएचआरसी के चिकित्सकों का कहना है कि आमतौर पर पेसमेकर अधेड़ उम्र या बुज़ुर्गों को लगाए जाते हैं, लेकिन बच्चों में पेसमेकर लगाने के बहुत कम मामले सामने आते हैं। बच्चों या किशारों में ऐसा करना मुश्किल भी होता है क्योंकि बच्चों का दिल छोटा होता है, जिसमें उपकरण फिट करना कठिन होता है। साथ ही समय के साथ बच्चे का शरीर विकसित होता है, ऐसे में उपकरण का लंबी अवधि तक काम करना तकनीकी चुनौती बन जाता है। यही नहीं, पेसमेकर के तारों की लंबाई, फिटिंग और शरीर के भीतर उनकी स्थिति को भविष्य के हिसाब से बहुत सावधानी से तय करना होता है। बीएमएचआरसी की कार्डियोलॉजी टीम ने सभी सावधानी बरतते हुए मरीज को सुरक्षित रखा। 

    latest articles

    explore more

    LEAVE A REPLY

    Please enter your comment!
    Please enter your name here