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    विधवा होकर भी नहीं टूटा हौसला, फिल्मों में आकर दुर्गा बनीं मिसाल

    मुंबई: दुर्गा खोटे सिनेमाई दुनिया का एक ऐसा नाम थीं, जिन्होंने सिर्फ अपने अभिनय से ही नहीं, बल्कि अपने मूल्यों से भी अमिट छाप छोड़ी। उन्हें भारतीय सिनेमा की पहली पढ़ी लिखी अभिनेत्री के रूप में जाना जाता था। इसके साथ ही आज के दर्शक उन्हें 1960 की एपिक ड्रामा हिस्टोरिकल फिल्म 'मुगल-ए-आजम' से जानते हैं। इस फिल्म में दुर्गा खोटे ने सलीम की मां जोधा बाई का किरदार निभाया था। मात्र 26 साल की उम्र में विधवा हो जाने के बाद उन्होंने एक अलग पहचान बनाई। आज 22 सितंबर को दुर्गा खोटे की पुण्यतिथि है। इस खास अवसर पर जानिए उनके प्रेरणादायी जीवन के बारे में।

    अमीर और पढ़े-लिखे खानदान में हुआ था जन्म
    दुर्गा खोटे का जन्म 14 जनवरी 1905 को एक ब्राह्मण परिवार में गोवा में हुआ था। बचपन में उनका नाम वीटा लाड था। उनके पिता का नाम  पांडुरंग शामराव लाड और माता का नाम मंजुलाबाई था। उनके पिता उस जमाने के जाने माने वकील थे। बाद में गोवा से उनका परिवार मुंबई (बॉम्बे) शिफ्ट हो गया। वह अमीर खानदान से ताल्लुक रखती थीं। साथ ही जिस समय महिलाओ को पढ़ने नहीं दिया जाता था उस समय उन्होंने मुंबई के कैथेड्रल हाई स्कूल से प्रारंभिक शिक्षा और सेंट जेवियर्स कॉलेज से ग्रेजुएशन किया।

    26 साल में हो गई थीं विधवा
    शिक्षा प्राप्त करने के दौरान कॉलेज में किशोरावस्था में ही, उन्होंने खोटे परिवार में विवाह कर लिया और अपने पति विश्वनाथ खोटे के साथ घर बसा लिया। लेकिन ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था दुर्गा 26 साल की उम्र में ही विधवा हो गईं। उस समय अभिनेत्री के दो छोटे बच्चे बकुल और हरिन थे। पति की मृत्यु के बाद परिस्थितियों ने उन्हें बच्चों की परवरिश और घर चलाने के लिए काम करने पर मजबूर किया।

    फिल्मों में रखा कदम
    दुर्गा खोटे पढ़ी-लिखी थी, इसलिए उन्होंने ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया। इसके बाद दुर्गा खोटे की बहन शालिनी के एक परिचित जे वी एच वाडिया अपनी फिल्म में एक रोल के लिए किसी नए चेहरे की तलाश कर रहे थे, तो उन्होंने अपनी बहन दुर्गा का नाम सुझाया। इसके बाद ऑडिशन में दुर्गा पास हो गईं और उन्होंने पहली बार साल 1931 में मूक फिल्म 'फरेबी जाल' से अपने सिनेमाई करियर की शुरआत की। उनकी पहली फिल्म की एक्टिंग से वी शांताराम बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने अपनी फिल्म 'आयोध्याचा राजा' में तारामती का किरदार उन्हें दे दिया। इस फिल्म के बाद दुर्गा खोटे स्टार बन गई। फिर उन्होंने एक से बढ़कर एक फिल्मों में काम किया। आपको बताते चलें कि ये मराठी सिनेमा की पहली बोलती फिल्म थी। फिल्म मराठी और हिंदी भाषा में बनाई गई थी, उस समय भारत की पहली दो भाषाओं में बनी ये पहली फिल्म थी।

    डायरेक्टर और प्रोड्यूसर के रूप में किया काम
    साल 1936 में रिलीज हुई फिल्म ‘अमर ज्योति’ में दुर्गा खोटे ने समुद्री डाकू सौदामिनी का यादगार किरदार निभाया। यही वह पहली भारतीय फिल्म थी जिसका प्रीमियर वेनिस फिल्म फेस्टिवल में हुआ। इसके बाद उन्होंने साल 1937 में फिल्म ‘साथी’ का निर्माण और निर्देशन किया, और इस तरह वे एक साथ प्रोड्यूसर और डायरेक्टर बनने वाली पहली भारतीय अभिनेत्री बनीं।

    मां के रोल में बनाई अलग पहचान
    दुर्गा खोटे ने कई फिल्मों में काम किया। अभिनेत्री की जिंदगी में एक भूचाल और आया, उनके बड़े बेटे हरिन की 40 की उम्र में मौत हो गई। इस घटना ने एक्ट्रेस को झकझोर कर रख दिया था। इसके बाद उन्होंने कुछ समय के लिए फिल्मों से ब्रेक लिया। ढलती उम्र और चेहरे की झुर्रियों के साथ उन्होंने सिनेमाई पर्दे पर बुजुर्ग बनकर वापसी करने का मन बनाया। 1960 में आई फिल्म 'मुगल-ए-आजम' में सलमी खान की मां जोधा बाई का किरदार निभाया था। इसके बाद उन्होंने 'बॉबी', 'अभिमान' और 'बिदाई' जैसी कई फिल्मों में मां, दादी और आंटी का रोल किया। इसने उन्हें मां की भूमिका में काफी प्रसिद्धि दिलाई।

    दुर्गा खोटे का व्यक्तिगत जीवन
    दुर्गा खोटे काफी रसुकदार फिल्म से थी। दुर्गा खोटे के पोते-पोतियों में उनके पोते रवि, जो एक फिल्म निर्माता हैं। पोती अंजलि खोटे एक अभिनेत्री हैं और पोते देवेन खोटे, जो एक सफल निर्माता हैं और यूटीवी के सह-संस्थापकों में से एक हैं। दुर्गा खोटे के बहनोई, नंदू खोटे एक प्रसिद्ध मंच और मूक फिल्म अभिनेता थे। नंदू के दो बच्चे भी फिल्म उद्योग में अभिनेता बने। उनके बेटे और दुर्गा के भतीजे विजू खोटे, जिन्हें ‘शोले’ फिल्म में कालिया की भूमिका के लिए जाना जाता था। दुर्गा खोटे ने अपने सिनेमाई करियर में 200 से अधिक फिल्मों में काम किया था। 22 सितंबर 1991 को उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया था।

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