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    19 अरब डॉलर का निर्यात खतरे में, ट्रंप की पॉलिसी से कपड़ा-रसायन उद्योग पर संकट

    व्यापार : अमेरिकी टैरिफ से भारत के कपड़ा, हीरा और रसायन क्षेत्र के एमएसएमई पर सबसे अधिक असर पड़ने की संभावना है। क्रिसिल इंटिलिजेंस की एक रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका को होने वाले निर्यात में इन क्षेत्रों का लगभग 45 प्रतिशत हिस्सा है। अमेरिका ने भारत पर कुल 50 प्रतिशत टैरिफ लगाने की घोषणा की है। 

    उच्च टैरिफ दरों से एमएमएमई पर पड़ेगा दबाव

    क्रिसिल इंटिलिजेंस के निदेशक पुशन शर्मा ने कहा कि बढ़ी हुई टैरिफ दरों के चलते उत्पाद कीमतों में हुई बढ़ोतरी का आंशिक वहन करना एमएसएमई  के लिए भारी पड़ेगा। इससे उनकी पहले से ही सीमित मार्जिन पर दबाव बढ़ेगा और प्रतिस्पर्धा बनाए रखना एक बड़ी चुनौती होगी।

    आरएमजी निर्यात पर टैरिफ बढ़कर 61 प्रतिशत हुआ

    शर्मा ने उदाहरण देते हुए कहा कि रेडीमेड गारमेंट्स (RMG) निर्यातक अमेरिकी बाजार में अपनी हिस्सेदारी खो सकते हैं क्योंकि अब वहां टैरिफ बढ़कर 61% हो गया है। इसमें 50% अतिरिक्त एड वैलोरम ड्यूटी शामिल है। इसके मुकाबले बांग्लादेश और वियतनाम के निर्यातकों पर केवल 31% टैरिफ लागू है। उन्होंने चेतावनी दी कि तिरुपुर क्लस्टर, जो भारत के RMG निर्यात का 30% हिस्सा रखता है, गंभीर रूप से प्रभावित होगा क्योंकि इसके करीब 30% निर्यात अमेरिका को जाते हैं।

    किस क्षेत्र की अमेरिकी बाजार में कितनी हिस्सेदारी?

    • रिपोर्ट में कहा गया है कि कपड़ा, रत्न एवं आभूषण और सीफूड उद्योग संयुक्त रूप से अमेरिका को होने वाले निर्यात में 25 प्रतिशत की हिस्सदारी रखता है। इन पर उच्च टैरिफ से सबसे अधिक प्रभाव पड़ने की संभावना है। इन क्षेत्रों में एमएसएमई की हिस्सेदारी 70 प्रतिशत से ज्यादा है।
    • रसायन क्षेत्र में, जहां एमएसएमई की हिस्सेदारी लगभग 40 प्रतिशत है, उच्च टैरिफ से निर्यातकों को भी नुकसान होगा। रासायनिक उद्योग को जापान और दक्षिण कोरिया से भी कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है, जहां टैरिफ कम हैं। 
    • रत्न एवं आभूषण क्षेत्र में सूरत के हीरा पॉलिशर, जो देश के निर्यात में 80 प्रतिशत से अधिक हिस्सेदारी रखते हैं, भी बुरी तरह प्रभावित होंगे। भारत के कुल रत्न और आभूषण निर्यात में हीरे का योगदान आधे से ज्यादा है। अमेरिका इसका प्रमुख उपभोक्ता है, यहां लगभग एक-तिहाई निर्यात होता है। 
    • इसी तरह, सी फूड एमएसएमई को इक्वाडोर से प्रतिस्पर्धा करने में कठिनाई होगी। यहां 15 प्रतिशत से कम टैरिफ लगता है और जो भौगोलिक रूप से अमेरिका के ज्यादा करीब है।
    • गियरबॉक्स और ट्रांसमिशन उपकरण की आपूर्ति करने वाले ऑटो कंपोनेंट एमएसएमई को भी दबाव का सामना करना पड़ सकता है क्योंकि इस क्षेत्र में अमेरिका की लगभग 40 प्रतिशत हिस्सेदारी है। हालांकि अमेरिका को कुल ऑटो कंपोनेंट निर्यात भारत के कुल उत्पादन का 3.5 प्रतिशत ही सीमित है।

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