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    बिहार में पीके से घबराया महागठबंधन तो बीजेपी को भी सता रहा डर

    नई दिल्ली। प्रशांत किशोर अब बिहार की राजनीति के सबसे चर्चित चेहरे बन चुके हैं। उनकी पार्टी जन सुराज ने सिर्फ दो साल में ही राज्य की राजनीति में ऐसा असर डाला है कि न सिर्फ महागठबंधन परेशान है, बल्कि बीजेपी भी चिंतित है। प्रशांत की जन सुराज यात्रा ने बिहार के कोने-कोने में पहुंचकर जनता से सीधा संवाद किया और राज्य की पारंपरिक जातिगत राजनीति में नया मोड़ ला दिया। पहले जिन्हें विपक्ष बीजेपी की बी टीम कहकर खारिज करता था, आज वही जनसुराज बीजेपी के परंपरागत वोट बैंक में सेंधमारी कर रही है।
    बिहार की राजनीति में सालों से उपेक्षित महसूस कर रहे ब्राह्मण और भूमिहार समुदाय को पहली बार महसूस हो रहा है कि उनका कोई नेता सीएम पद की दौड़ में दावेदार बनकर उभरा है। भले ही प्रशांत किशोर बार-बार यह कहते हैं कि वह सीएम बनने की महत्वाकांक्षा नहीं रखते, लेकिन उनके समर्थक गांव-गांव में प्रचार कर रहे हैं कि प्रशांत किशोर ही राज्य का भविष्य हैं।
    बीजेपी के लिए यह चिंता की बात है, क्योंकि वह अब तक सवर्णों के समर्थन को सुनिश्चित मानती थी लेकिन जन सुराज की बढ़ती लोकप्रियता ने यह समीकरण बिगाड़ दिया है। महज कुछ फीसदी वोटों का इधर-उधर होना भी सीटों का गणित बदल सकता है और यही कारण है कि बीजेपी के प्रत्याशी बेचैन हैं। प्रशांत ने जातीय समीकरणों को साधने के लिए ब्राह्मण, राजपूत, दलित, कुर्मी फॉर्मूला अपनाया है। इस फॉर्मूले के जरिए जनसुराज ने कई समुदायों को एक मंच पर लाने की कोशिश की है। 
    राजपूत वोटरों को साधने के लिए पूर्व सांसद उदय सिंह (पप्पू) को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया है। दलित समुदाय को जोड़ने के लिए मनोज भारती को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया है। अति पिछड़ा वर्ग 36.01 फीसदी और मुस्लिम समुदाय 17.70फीसदी को भी रणनीति का हिस्सा बनाया है। पार्टी ने मुस्लिम समुदाय के लिए 40 विधानसभा सीटें रिजर्व कर रखी हैं और आर्थिक मदद का वादा भी किया है।
    प्रशांत ने युवा वोटरों को प्रभावित करने के लिए पलायन, रोजगार और शिक्षा जैसे मुद्दों पर फोकस किया है। उन्होंने लोगों से यह नहीं कहा कि किसे वोट देना है, बल्कि उन्हें यह सोचने पर मजबूर किया कि वोट क्यों देना चाहिए। उनकी कंबल पॉलिटिक्स जिसमें गरीबों को ठंड में कंबल और जरूरतमंदों को मदद दी जाती है जमीन पर लोकप्रियता बढ़ाने का एक सशक्त माध्यम बन चुकी है।
    तेजस्वी यादव पर कटाक्ष करने वाले प्रशांत किशोर ने अब बीजेपी और पीएम मोदी को भी निशाने पर लेना शुरू कर दिया है। ‘ऑपरेशन सिंदूर’, भारत-पाक युद्धविराम और हिंदुत्व के मुद्दों पर उनकी सीधी आलोचना ने बीजेपी को असहज कर दिया है। बीजेपी जानती है कि जब कांग्रेस या आरजेडी हिंदुत्व पर हमला करते हैं तो यह उसके लिए फायदेमंद होता है, लेकिन जब प्रशांत वही बात करते हैं, तो जनता उसे गंभीरता से लेती है। यही कारण है कि बीजेपी के लिए प्रशांत का नैरेटिव खतरनाक साबित हो सकता है।
    भारत की राजनीति में यात्राओं की अहमियत को कोई नकार नहीं सकता। चाहे वह लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा हो या राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा। प्रशांत की जन सुराज यात्रा भी इसी श्रेणी में आती है। 2022 से शुरू हुई इस यात्रा ने न सिर्फ लोगों को जागरूक किया, बल्कि बिहार में एक नए विकल्प की जमीन भी तैयार कर दी है। पीके की जनसुराज पार्टी ने बिहार की जातिगत राजनीति को एक नया मोड़ दिया है। वे न केवल सवर्ण वोटरों को आकर्षित कर रहे हैं, बल्कि ओबीसी, दलित और मुस्लिम वर्ग में भी अपनी जगह बना रहे हैं। महागठबंधन के लिए तो खतरे की घंटी है ही, बीजेपी के लिए यह चुनौती कहीं ज्यादा गंभीर और गहरी है।

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