नई दिल्ली। भारत और अमेरिका के बीच हुई ट्रेड डील के सकारात्मक संकेत मिल रहे हैं। इस बीच ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इंस्टीट्यूट का दावा है कि अमेरिका ने भारत पर जो 50 प्रतिशत टैरिफ लगाया है उसे घटाकर 10-15 प्रतिशत किया जा सकता है। गौरतलब है कि अमेरिका के ट्रेड रिप्रेजेंटेटिव ऑफिस के अधिकारियों ने नई दिल्ली में अमेरिका के मुख्य वार्ताकर ब्रेंडन लिंच के नेतृत्व में भारत के साथ टे्रड डील पर चर्चा की। भारत के वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने कहा कि चर्चाएं सकारात्मक रहीं और दोनों पक्षों ने पारस्परिक रूप से लाभकारी व्यापार समझौते के शीघ्र निष्कर्ष के लिए प्रयास तेज करने का फैसला लिया है। यह बातचीत उस दौर के बाद आगे बढऩे के संकेत मानी जा रही है जब अमेरिका ने भारत पर 27 अगस्त से 25 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ लगा दिए थे।
यह कदम भारत द्वारा रूसी तेल खरीदने के कारण उठाया गया था जिसके चलते अमेरिका ने व्यापार वार्ता रोक दी थी। फिलहाल भारत पर ट्रंप ने कुल 50 प्रतिशत टैरिफ लगाया है। ट्रेड डील पर दोनों देशों के बीच बातचीत जारी है, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जन्मदिन पर शुभकामनाएं दी हैं। कुछ दिनों पहले वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने कहा था कि दोनों देशों के बीच नवंबर 2025 तक ट्रेड डील का पहला चरण फाइनल हो जाएगा।
भारत सबसे बड़ा डेटा सप्लायर
ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इंस्टीट्यूट का कहना है कि दोनों देशों के बीच डील इसीलिए हो रही है ताकि टैरिफ 50 प्रतिशत से घटकर 10-15 प्रतिशत या शायद और कम हो जाए। दरअसल, दुनिया के सबसे बड़े डेटा जेनरेटर देश चीन और भारत हैं। भारत अमेरिका के लिए सबसे बड़ा डेटा सप्लायर है, उनका जितना भी डिवेलपमेंट है जैसे कि सॉफ्टवेयर और आर्टिफिशियल, वो सब इंडिया से है और काफी महत्वपूर्ण है। इसलिए वो चाहते हैं कि भारत डेटा फ्लो पर कभी भी कोई प्रतिबंध, टैक्स ना लगाए। उनकी सबसे बड़ी उम्मीद है कि भारत फ्री फ्लो ऑफ डेटा रखे। आरबीआई का नियम है कि फाइनेंस डेटा देश के सर्वर में ही रखा जाए, लेकिन अमेरिका ऐसा नहीं चाहता। इसलिए भारत को अपने हित में देखना चाहिए और दोनों पक्षों की सहमति से इसका एक हल देखना पड़ेगा। फ्री फ्लो ऑफ डेटा से भारत का डिवेलपमेंट नहीं हो सकेगा।
मेक इन इंडिया पर कोई असर नहीं
ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इंस्टीट्यूट का कहना है कि भारत-यूएसए ट्रेड डील से मेक इन इंडिया और वोकल फॉर लोकल पर कोई असर नहीं पड़ेगा। असर होगा तो सिर्फ पॉजिटिव ही होगा क्योंकि यूएस इंडस्ट्रियल पावर नहीं है। अमेरिका एग्रीकल्चर पावर है या इंडस्ट्री में बहुत हाई-टेक चीजें बनाता है- जैसे बोइंग। लेकिन सामान्य प्रोडक्ट्स जैसे टैक्सटाइल्स, लेदर, केमिकल्स में यूएस कहीं नहीं है। इसलिए हमारे मेक इन इंडिया को चाइना के इंपोर्ट से खतरा है, यूएस के साथ होने वाली डील से बिल्कुल भी नहीं। वहीं आम उपभोक्ता पर डील का कोई असर नहीं होगा। सरकार ने रेड लाइन (एग्रीकल्चर और डेयरी) तय की हैं और अभी तक मेंटेन की है और आगे भी रखेगी। अमेरिका इंडस्ट्रियल पावर है नहीं तो कोई असर आम ग्राहकों पर नहीं होगा।