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    अमृतसर ही नहीं ग्वालियर में भी है स्वर्ण मंदिर, दीवारों से छत तक जड़ा है 100 करोड़ का सोना

    ग्वालियर: आपने अमृतसर के स्वर्ण मंदिर के बारे में तो खूब सुना होगा, लेकिन क्या आप जानते हैं कि मध्य प्रदेश में भी एक गोल्डन टेम्पल है, जो 300 साल पुराना है. इस मंदिर के निर्माण में 100 करोड़ रुपये से ज़्यादा कीमत के सोने का इस्तेमाल किया गया है.

    मध्य प्रदेश के ग्वालियर में स्थित है स्वर्ण मंदिर जो वास्तविकता में अपने नाम की तरह ही सोने से बना है. मंदिर की बेदी हो दीवारें या छत हर जगह सोने की कारीगरी नज़र आती है. सोने के साथ साथ इस मंदिर में कांच की कलाकारी और बारीक चित्रकारी भी देखने लायक है. ये एक जैन मंदिर है जिसका निर्माण जैन अनुयायियों ने सन 1761 में कराया था. हालांकि इसे ग्वालियर की ऐतिहासिक विरासत का एक छुपा हुआ नगीना कहा जा सकता है. आज भी यह मंदिर उसी सूरत में है. हर दिन श्रद्धालु यहाँ पूजा-अर्चना और सैलानी इसकी खूबसूरती देखने पहुचते हैं.

     मंदिर में खंभों और दीवारों पर एक खास किस्म का काँच लगा है, इसे बेल्जियम ग्लास बोलते हैं. ये छोटे-छोटे काँच एक साथ डिज़ाइन में खंभों पर लगाए गए हैं. इसकी खासियत ये है कि अगर आप पास खड़े होकर देखते हैं तो सभी कांच मिलकर भी आपका एक अक्स बनाते हैं लेकिन अगर आप थोड़ा सा दूर हो जायें तो इसके हर काँच में अलग-अलग अक्स नज़र आता है. ये काँच चारों कोनों पर सपाट लेकिन बीच में उभरा हुआ है जो इसकी ख़ूबसूरती को बढ़ाता है.

    पत्थरों पर सोने की कलाकारी

    इस मंदिर में काँच ही नहीं बल्कि शुद्ध सोने का भी काम हर जगह दिखता है. हर तरफ़ दीवारों, छत और शमोषण में सोने की बारीक कारीगरी है. समोषण वह बेदी है जहाँ भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा विराजमान है. इस बेदी पर पहले मार्बल लगा हुआ है, इसके बाद उस मार्बल के पत्थर पर सोने से फूल, पत्ती, बेल और बूटे बनाये गए हैं. साथ ही सोने से कई डिज़ाइन भी बनाये गए हैं. कहा जाए तो ये पूरी बेदी सोने से बनी है.

    45 वर्ष में पूरा हुआ था मंदिर का निर्माण

    जैन स्वर्ण मंदिर समिति के अध्यक्ष प्रवीण गंगवाल बताते हैं, "इस मंदिर का निर्माण संवत् 1761 में शुरू हुआ था और इसको पूरा होने में 45 वर्ष लगे थे. इसके बाद 1861 में यहाँ मूलनायक पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा स्थापित हुई. इस मंदिर में भगवान का समवशरण भी अपने आप में अनोखा और देखने लायक है जो अति सुंदर और सोने से बना है."

    दिन में तीन बार स्वरूप बदलती है भगवान की प्रतिमा

    इस मंदिर में विराजमान 1008 पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा भी अपने आप में बेहद अनूठी है. समिति के अध्यक्ष बताते हैं कि, यह मूर्ति दिन में तीन बार अपना स्वरूप बदलती है. सुबह इसका स्वरूप एक बालक के समान होता है, दोपहर में एक मध्यम आयु की प्रतिमा दिखती है. शाम को भगवान में एक बुजुर्ग की छवि दिखाई देती है. जो भी यहाँ अपनी मनोकामना लेकर आता है वह पूरी होती है.

    अनमोल कलाकारी का ऐतिहासिक नमूना है यह मंदिर

    इस मंदिर के परिसर में अलग-अलग तरह की कारीगरी की गई है. इसी वजह से इसे बनाने में बरसों लग गए. मंदिर की कलाकृतियों को सहजने के लिए भी राजस्थान से कलाकार आते हैं. जिनका परिवार कई पीढ़ियों से इस मंदिर की सेवा में लगा है. मंदिर को देखने पर समझ आता है कि इतने बड़े स्तर पर इतनी बारीक कलाकारी और चित्रकारी उस दौर में कैसे की गई होगी. हर चित्रकारी में अनमोल रत्न लगाए गए हैं, सोने से बेलबूटे बनाए गए हैं. बीच में प्राकृतिक रंगों से चित्रकारी और ग्लास भी लगाये गए हैं. इसके अलावा इस मंदिर का ड्रेनेज सिस्टम भी अनूठा है. बरसात में कितना भी पानी आ जाए लेकिन मंदिर के चौक में पानी कहाँ से आता है और कहाँ चला जाता है किसी को पता नहीं चलता.

    अस्सी किलो सोने से सजा है मंदिर

    मंदिर समिति के अध्यक्ष की मानें तो इस मंदिर के निर्माण में दो मन यानी 80 किलो से ज़्यादा सोने का इस्तेमाल किया गया है. जो इस मंदिर की दीवारों, बेदी और छतों पर अलग-अलग स्थानों पर दिखाई देता है. छत और दीवारों पर की गई कलाकृतियाँ में भी सोने का इस्तेमाल किया गया है. इनके साथ ही दीवारों पर 5 विशेष चित्र सोने से बनाए गए हैं. ये सभी चित्र अलग-अलग जैन तीर्थांकरों की कथा दर्शाते हैं. मंदिर मे लगे सोने की कीमत वर्तमान में लगभग 100 करोड़ रुपये से भी अधिक हो चुकी है.

    क्यों हुआ होगा इतने सोने का इस्तेमाल ?

    अब सवाल आता है कि आज से तीन सौ साल पहले इतना भव्य मंदिर और उसमें अस्सी किलो सोना लगाने के पीछे क्या उद्देश्य रहा होगा. यह सवाल जब हमने समिति के अध्यक्ष से पूछा तो उन्होंने कहा, उस दौर में दानदाता बहुत होते थे. राजा महाराजाओं की तरह इस मंदिर के उस समय ट्रस्टी भी धनधान्य से संपन्न थे. उनमें दान करने की भावना थी. उनके इस विचार ने यह मंदिर निर्मित कराया.

    भव्यता देखते रह जाते हैं विदेशी पर्यटक

    इतनी भव्यता के बावजूद यह मंदिर आज भी छिपा हुआ है क्योंकि ज्यादातर लोगों को इसके बारे में आज भी पता नहीं है. हालांकि हर महीने कुछ टूर ऑपरेटर्स यहाँ विदेशी पर्यटकों को ग्वालियर के इस स्वर्ण मंदिर जरूर लाते हैं. जो इस मंदिर की भव्यता और सोने को देख कर दंग रह जाते हैं.

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