पटना। बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव के बीच प्रशांत किशोर का यह बयान कि हम या 200 सीटें जीतने वाले हैं, या 4-5 पर सिमट जाएंगे। पीके का यह बयान बिहार के गली-गली में गूंज ही रहा है, इस बयान ने नेताओं की नींद भी गायब कर रखी है। बिहार चुनाव से पहले पीके की पॉलिटिक्स ने लालू के लाल तेजस्वी यादव की नींद हराम कर दी है, सिर्फ राजद ही नहीं एनडीए में भी खौफ पैदा कर दिया है। एनडीए नेताओं ने बोलना शुरू कर दिया है कि पीके की राजनीति में इस बार कुछ बड़ा होने वाला है। दो साल पहले जब प्रशांत किशोर ने अपनी 3,000 किलोमीटर की पदयात्रा बिहार में शुरू की थी, तब नेता और लोग सियासी नौटंकी मान रहे थे। लेकिन 2024 में जन सुराज पार्टी का गठन और उसके ठीक बाद विधानसभा के चार सीटों के उपचुनाव में 10 प्रतिशत वोट हासिल कर पीके ने तहलका मचा दिया।
पीके, जो कभी नरेंद्र मोदी की 2014 में जीत और 2015 में बिहार में महागठबंधन जीत के सूत्रधार थे, अब खुद सियासत के मैदान में हैं। उनकी पहली बड़ी कामयाबी थी 2012 के गुजरात विधानसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी की जीत, जहां उन्होंने ‘चाय पे चर्चा’ और ‘3डी रैलियों’ जैसे इनोवेटिव कैंपेन तैयार किए। 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की ऐतिहासिक जीत ने उन्हें सियासी रणनीति का ‘चाणक्य’ बना दिया। लेकिन इसके बाद पीके ने 2015 में नीतीश कुमार की महागठबंधन सरकार की जीत, 2021 में ममता बनर्जी की तृणमूल जीत और डीएमके की तमिलनाडु में वापसी सभी में पीके का दिमाग था।
2024 के बिहार विधानसभा के उपचुनावों में जन सुराज का प्रदर्शन भले ही कमजोर दिख रहा हो, पार्टी की चारों सीटों पर हार हुई। लेकिन पार्टी ने 10 प्रतिशत वोट शेयर हासिल किया, जो एक नए खिलाड़ी के लिए छोटी बात नहीं। पीके ने दावा किया कि उनका असली मुकाबला एनडीए के साथ है न कि राजद के साथ। वहीं राजद और महागठबंधन ने पीके को ‘बीजेपी की बी-टीम’ करार दिया है। मीसा भारती ने इतना तक कह दिया हैं कि ‘पांडे (पीके की जाति) यादवों को गाली देने का धंधा करते हैं’ बिहार चुनाव जिस तरह से प्रशांत किशोर मेहनत कर रहे हैं, उससे सियासत हिल जाए हैरानी नहीं होगी। बताया जा रहा हैं कि आरएसएस का एक वर्ग पीके के सपने को साकार करने में लगा है।