ईरान और इजराइल के बीच तनाव एक बार फिर बढ़ गया है. रविवार को दोनों देशों ने एक-दूसरे पर ताजा हमले किए, जिसमें कई आम लोग मारे गए और घायल हुए. इस घटना ने पूरे क्षेत्र में बड़े युद्ध की आशंका को और गहरा कर दिया है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि वो चाहते हैं कि दोनों देश आपस में कोई समझौता कर लें, लेकिन कई बार देशों को पहले लड़ना पड़ता है. दूसरी तरफ, ईरान ने कतर और ओमान के जरिए साफ कर दिया कि जब तक इजराइल हमले करता रहेगा, वो किसी सीजफायर की बात नहीं मानेगा.
इस तनाव का भारत पर तुरंत कोई बड़ा आर्थिक असर तो नहीं दिख रहा, लेकिन अगर ये जंग लंबी खींची और इसमें मिडिल ईस्ट के दूसरे देश भी शामिल हो गए तो भारत की अर्थव्यवस्था पर इसका भारी असर पड़ सकता है. एक सीनियर सरकारी अधिकारी ने बताया कि सरकार इस स्थिति पर करीब से नजर रखे हुए है. तेल की कीमतों में उछाल, शिपिंग लागत में बढ़ोतरी, विदेशी पूंजी का बहिर्वाह और रुपये की कीमत में गिरावट जैसे खतरे सामने आ सकते हैं. फिलहाल स्थिति को देखते हुए वित्त मंत्रालय और रेगुलेटर्स पूरी सतर्कता बरत रहे हैं.
लेकिन अगर ये जंग और भड़की और इसमें हूती जैसे संगठन या दूसरे देश भी कूद पड़े तो भारत की अर्थव्यवस्था और कारोबार को कई तरह से नुकसान हो सकता है. आइए, इसे विस्तार से समझते हैं.
तेल की कीमतें आसमान छूने लगेगी
सबसे बड़ा खतरा है तेल की कीमतों में उछाल. भारत अपनी तेल जरूरतों का 85% आयात से पूरा करता है. अगर ईरान-इजराइल जंग की वजह से तेल की कीमतें बढ़ीं, तो इसका सीधा असर भारत की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा. ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) की एक रिपोर्ट कहती है कि सरकार को तेल आपूर्ति के जोखिमों का आकलन करना चाहिए, तेल के नए स्रोत तलाशने चाहिए और रणनीतिक तेल भंडार को सुनिश्चित करना चाहिए.
इराक के उप-प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री फुआद हुसैन ने चेतावनी दी है कि अगर जंग बढ़ी तो तेल की कीमतें 200-300 डॉलर प्रति बैरल तक जा सकती हैं. खासकर अगर होर्मुज जलडमरूमध्य जैसे अहम रास्ते बंद हो गए तो बाजार से रोजाना 50 लाख बैरल तेल गायब हो सकता है. ये तेल ज्यादातर खाड़ी देशों और इराक से आता है. शुक्रवार को ब्रेंट क्रूड की कीमत 7% उछलकर 74.23 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गई. एक समय तो ये 13% से ज्यादा बढ़कर 78.50 डॉलर तक पहुंच गया था, जो जनवरी के बाद सबसे ऊंचा स्तर है.
भारत पर क्या होगा असर?
तेल की कीमतों में उछाल से भारत का आयात बिल बढ़ेगा, जिससे सरकार के पास सामाजिक कल्याण योजनाओं के लिए कम पैसा बचेगा. ईंधन और उर्वरक सब्सिडी का बोझ बढ़ेगा, जिससे चालू खाता घाटा (करेंट अकाउंट डेफिसिट) बढ़ेगा और रुपये की कीमत कमजोर होगी. इससे जीडीपी ग्रोथ को भी चोट पहुंचेगी. EY इंडिया के चीफ पॉलिसी एडवाइजर डीके श्रीवास्तव के मुताबिक, तेल की कीमत में हर 10 डॉलर प्रति बैरल की बढ़ोतरी से भारत की जीडीपी ग्रोथ 0.3% कम हो सकती है और मुद्रास्फीति (CPI) में 0.4% की बढ़ोतरी हो सकती है.
हाल ही में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने मुद्रास्फीति पर काबू पाने के बाद ब्याज दरों में कटौती की थी और इस साल के अंत में और कटौती की उम्मीद थी लेकिन अगर तेल की कीमतें बढ़ीं, तो मुद्रास्फीति फिर से भड़क सकती है. इससे उपभोक्ता मांग कम होगी, लोग कम खर्च करेंगे और कारोबार पर इसका खासा असर पड़ेगा.
कॉरपोरेट्स पर क्या असर पड़ेगा ?
तेल की कीमतों में उछाल का असर सिर्फ सरकार पर नहीं, बल्कि कंपनियों पर भी पड़ेगा. आनंद राठी शेयर्स एंड स्टॉक ब्रोकर्स के फंडामेंटल रिसर्च हेड नरेंद्र सोलंकी ने कहा कि अभी ये कहना जल्दबाजी होगी कि असर कितना होगा. अगर कीमतें जल्दी सामान्य हुईं, तो कंपनियों पर ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा लेकिन अगर जंग लंबी खींची और तेल की कीमतें ऊंची रहीं तो कॉरपोरेट्स की कमाई पर भारी दबाव पड़ेगा.
ऑयल मार्केटिंग कंपनियों को सबसे ज्यादा टेंशन
ईरान और इजराइल की जंग बढ़ी तो इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन, BPCL और HPCL जैसी कंपनियों को सबसे ज्यादा नुकसान हो सकता है. तेल की कीमतें बढ़ने से रिफाइनिंग की लागत बढ़ेगी लेकिन ये कंपनियां इस बढ़ी हुई लागत को पूरी तरह ग्राहकों पर नहीं डाल पाएंगी. इससे उनकी कमाई और मुनाफे दोनों पर असर पड़ेगा. दूसरी तरफ, ONGC और ऑयल इंडिया जैसी अपस्ट्रीम कंपनियां, जो घरेलू तेल का उत्पादन करती हैं, को कीमतें बढ़ने से फायदा हो सकता है. लेकिन सरकार ने 2022-24 के बीच रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान तेल की कीमतें बढ़ने पर विंडफॉल टैक्स लगाया था. अगर ऐसा फिर हुआ, तो इन कंपनियों की कमाई पर भी असर पड़ सकता है.
एविएशन सेक्टर
एयरलाइंस के लिए एविएशन टरबाइन फ्यूल (ATF) उनकी कुल लागत का एक तिहाई हिस्सा है. तेल की कीमतें बढ़ने से उनकी लागत बढ़ेगी, जिससे टिकट के दाम बढ़ सकते हैं. लेकिन भारत जैसे कीमत-संवेदनशील बाजार में टिकट महंगे करने से मांग कम हो सकती है, जिससे एयरलाइंस की कमाई पर और दबाव पड़ेगा.
पेंट और केमिकल इंडस्ट्री
एशियन पेंट्स, बर्जर पेंट्स और कंसाई नेरोलैक जैसी कंपनियां सॉल्वेंट्स और रेजिन जैसे कच्चे माल के लिए तेल पर निर्भर हैं. ये माल उनकी कुल लागत का करीब 50% हिस्सा हैं. अगर तेल की कीमतें बढ़ीं तो इन कंपनियों को अपने प्रोडक्ट्स के दाम बढ़ाने पड़ सकते हैं, जिससे मांग कम हो सकती है.
इसी तरह, प्लास्टिक, सिंथेटिक फाइबर, सॉल्वेंट्स और केमिकल्स बनाने के लिए नैफ्था, ईथेन और प्रोपेन जैसे कच्चे माल की जरूरत पड़ती है. पिदिलाइट, SRF, आरती इंडस्ट्रीज और दीपक नाइट्राइट जैसी कंपनियों की लागत बढ़ेगी, जिससे उनके मुनाफे पर असर पड़ेगा.
उर्वरक और ऑटोमोबाइल
नाइट्रोजन-आधारित उर्वरकों जैसे यूरिया और अमोनिया के लिए प्राकृतिक गैस और तेल का इस्तेमाल होता है. तेल की कीमतें बढ़ने से LNG की कीमतें भी बढ़ेंगी, जिससे उर्वरक उत्पादन महंगा होगा. इससे या तो उर्वरक के दाम बढ़ेंगे या सरकार को सब्सिडी का बोझ उठाना पड़ेगा.
ऑटोमोबाइल कंपनियों को भी प्लास्टिक, रबर और कम्पोजिट्स जैसे पेट्रोलियम-आधारित कच्चे माल की बढ़ती कीमतों का सामना करना पड़ेगा. इससे उनकी लागत बढ़ेगी. हालांकि, पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ने से इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) की मांग बढ़ सकती है, जिससे EV निर्माताओं को फायदा हो सकता है.
व्यापार पर भी संकट
ईरान और इजराइल के साथ भारत का व्यापार भी इस जंग से प्रभावित हो सकता है. वित्त वर्ष 2025 में भारत ने ईरान को 1.24 बिलियन डॉलर का निर्यात किया और 441.9 मिलियन डॉलर का आयात किया. इजराइल के साथ व्यापार और भी बड़ा है, जिसमें 2.15 बिलियन डॉलर का निर्यात और 1.61 बिलियन डॉलर का आयात शामिल है.
शिपिंग और बीमा लागत में उछाल
जंग बढ़ने से शिपिंग और बीमा लागत बढ़ सकती है. फेडरेशन ऑफ फ्रेट फॉरवर्डर्स एसोसिएशंस इन इंडिया (FFFAI) के चेयरमैन दुष्यंत मुलानी ने बताया कि केप ऑफ गुड होप जैसे वैकल्पिक रास्तों से शिपिंग में देरी होगी और लागत बढ़ेगी. समुद्री और हवाई माल ढुलाई की लागत भी बढ़ सकती है.
पिछले साल अक्टूबर 2023 में इजराइल-गाजा तनाव बढ़ने के बाद ग्लोबल शिपिंग कंपनियों ने पश्चिम एशिया के रास्तों से बचना शुरू कर दिया था. ईरान समर्थित हूती विद्रोहियों के हमलों ने लाल सागर के रास्ते व्यापार को लगभग ठप कर दिया था. इससे कई कंपनियों को केप ऑफ गुड होप के रास्ते व्यापार करना पड़ा. अगर जंग और बढ़ी, तो होर्मुज जलडमरूमध्य और लाल सागर जैसे अहम रास्ते प्रभावित होंगे.
फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गनाइजेशंस (FIEO) के प्रेसिडेंट एस सी राल्हन ने कहा कि ये जंग वैश्विक व्यापार को और नुकसान पहुंचाएगी. यूरोप और रूस जैसे देशों में भारत का निर्यात प्रभावित होगा. माल ढुलाई और बीमा लागत बढ़ने से भारत का निर्यात 15-20% तक महंगा हो सकता है.
मिडिल ईस्ट में व्यापार पर असर
जंग का असर भारत के मिडिल ईस्ट और उत्तरी अफ्रीका (MENA) क्षेत्र के देशों के साथ व्यापार पर भी पड़ेगा. UAE, कतर, सऊदी अरब, मिस्र और बहरीन जैसे देश भारतीय फार्मा प्रोडक्ट्स के बड़े खरीदार हैं. अगर जंग बढ़ी, तो इन देशों में भारत का फार्मा निर्यात प्रभावित होगा.
पिछले साल हमास के इजराइल पर हमले के बाद होम टेक्सटाइल और फर्निशिंग्स के भारतीय निर्यातकों को ऑर्डर टलने और मुनाफा घटने की चिंता सताने लगी थी. इजराइल भले ही छोटा बाजार है, लेकिन वहां कॉटन टेक्सटाइल्स की मांग ज्यादा है, जिससे भारतीय निर्यातकों को 10-15% ज्यादा मुनाफा मिलता है.
इजराइल से भारत को रफ डायमंड्स की आपूर्ति भी प्रभावित हो सकती है. हालांकि, भारत कट और पॉलिश्ड डायमंड्स की आपूर्ति उन देशों को कर सकता है, जो पहले इजराइल पर निर्भर थे.
इन भारतीय कंपनियों पर खतरा
इजराइल में कारोबार करने वाली भारतीय कंपनियों को भी इस जंग का खामियाजा भुगतना पड़ सकता है. सन फार्मा, टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS), विप्रो, अदानी, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, लार्सन एंड टुब्रो, भारत फोर्ज और इन्फोसिस जैसी कंपनियों की इजराइल में मौजूदगी है. अगर जंग लंबी खींची, तो इन कंपनियों के कारोबार में रुकावट आ सकती है.
2023 में इजराइल-हमास तनाव शुरू होने पर विशेषज्ञों ने कहा था कि TCS और विप्रो जैसी कंपनियां अपने कारोबार को भारत में शिफ्ट कर सकती हैं. इजराइल में मौजूद ग्लोबल टेक्नोलॉजी कंपनियां भी अपने ऑपरेशंस को भारत या दूसरी जगहों पर ले जा सकती हैं.