‘जगन्नाथ के भात को जगत पसारे हाथ’, दुनिया के सबसे बड़े रसोईघर में तैयार किया जाता है महाप्रसाद

हर वर्ष आषाढ़ माह की शुक्‍ल पक्ष की द्वितीया में भगवान जगन्नाथ स्वामी की यात्रा ओडिशा के पुरी में धूम धाम से निकाली जाती है. देश और विदेश से इस भव्य यात्रा में लाखों लोग शामिल होने पहुंचते हैं. इस यात्रा में भगवान जगन्नाथ के रथ के साथ दो और रथ भी शामिल होते हैं. इनमें से एक में भाई बलराम और एक में बहन सुभ्रदा विराजमान होती हैं. इस वर्ष यह यात्रा 27 जून से होने जा रही है और यह दशमी तिथि यानी 5 जुलाई को समाप्त होगी. आइए जानते हैं
ऐसा कहा जाता है कि, इस रथ यात्रा में शामिल होने मात्र से ही पापों से मुक्ति मिलती है और रथ को खींचने वाले लोगों को कई यज्ञों के बराबर फल मिलता है. लेकिन यहां मिलने वाला प्रसाद का भी काफी महत्व बताया गया है. इसे यहां ‘महाप्रसाद’ के नाम से जाना जाता है. ऐसा कहा जाता है कि, यह जगन्नाथ स्वामी का मुख्य प्रसाद होता है. आइए जानते हैं इससे जुड़ी प्रमुख बातें.

मिट्टी के बर्तन में बनाया जाता है प्रसाद
आपको बता दें कि, हिन्दू धर्म में मिट्टी को पवित्र माना गया है और पौराणिक काल से इससे बने बर्तनों में खाना बनाया जाता रहा है. ऐसे में प्रभु जगन्नाथ स्वामी का प्रिय प्रसाद भी मिट्टी के बर्तन में ही बनाया जाता है. इसके लिए एक खास प्रक्रिया भी होती है, जिसके अनुसार महाप्रसाद बनाते समय सात बड़े मिट्टी के बर्तनों को एक के ऊपर एक रखा जाता है.

महारसोई में बनता है महा प्रसाद
भगवान जगन्नाथ का महाप्रसाद उड़ीसा के पुरी में तैयार होता है. जिस जगह प्रसादी तैयार की जाती है उसे दुनिया का सबसे बड़ा रसोई घर भी कहा जाता है. क्योंकि यहां करीब 500 रसोइए और करीब 300 सहयोगी मिलकर प्रसादी को तैयार करते हैं. जो 56 भोग से मिलकर बनती है. इसे यहां दर्शन करने के लिए प्रतिदिन आने वाले करीब 2,000 से 2,00,000 के श्रद्धालुओं को वितरित किया जाता है.

सिर्फ पुरी में नहीं यहां भी बनता है महाप्रसाद
जगन्ना स्वामी की मुख्य रथ यात्रा भले ही ओडिशा के पुरी में निकलती है, लेकिन प्रसाद पुरी के अलावा छत्तीसगढ़ में भी बनाया जाता है. हालांकि, पुरी में जहां चावल की खिचड़ी का भोग लगया जाता है, वहीं छत्तीसगढ़ में मालपुआ का भोग लगाया जाता है. जिसके बाद इसे प्रसादी के रूप में यहां कतारों में खड़े श्रद्धालुओं को वितरित किया जाता है.

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