चंडीगढ़: पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा है कि हथियारबंद आतंकियों की गिरफ्तारी को भी ‘एनकाउंटर’ माना जाएगा। ऐसे मामलों में पुलिसकर्मियों के परिजनों को भर्ती के दौरान आरक्षण का लाभ मिलेगा। कोर्ट ने कहा कि अगर पुलिसकर्मी आतंकियों को मारने की बजाय उन्हें जीवित पकड़ लेते हैं तो यह उनकी बड़ी उपलब्धि है और इससे सरकार की नीति की भावना और मजबूत होती है। यह आदेश जस्टिस जगमोहन बंसल ने 4 सितंबर को सुनाया। मामला पंजाब के बठिंडा जिले की रहने वाली सोनम कंबोज की याचिका से जुड़ा है।
जानें क्या है मामला
सोनम ने पंजाब पुलिस भर्ती में उस श्रेणी में आवेदन किया था जो उन पुलिसकर्मियों के परिजनों के लिए आरक्षित है, जिन्होंने कम से कम तीन एनकाउंटर में हिस्सा लिया हो। सोनम ने डीआईजी पटियाला रेंज द्वारा जारी प्रमाण पत्र भी प्रस्तुत किया था। हालांकि, डीजीपी की ओर से गठित समिति ने उनकी पात्रता को खारिज कर दिया और कहा कि उनके पिता ने केवल दो एनकाउंटर में हिस्सा लिया है। राज्य सरकार की ओर से दलील दी गई कि जिस एक एफआईआर को तीसरे एनकाउंटर के रूप में दिखाया गया, उसमें कोई गोलीबारी नहीं हुई थी और सिर्फ चार आतंकियों की गिरफ्तारी हुई थी, इसलिए इसे एनकाउंटर नहीं माना जा सकता।
पंजाब सरकार की दलील को किया खारिज
हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की इस दलील को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि 1996 की नीति एक लाभकारी प्रावधान है और इसका उद्देश्य ईमानदार व बहादुर पुलिस अधिकारियों को प्रोत्साहित करना है। ‘आतंकियों से एनकाउंटर’ का अर्थ केवल गोलीबारी और हताहत होना नहीं है। अगर पुलिस ने हथियारों और आपत्तिजनक सामग्री के साथ आतंकियों को गिरफ्तार किया है तो इसे एनकाउंटर माना जाएगा। कोर्ट ने सोनम कंबोज को आरक्षण का लाभ देते हुए पंजाब सरकार को निर्देश दिया कि छह हफ्तों के भीतर उन्हें पुलिस विभाग में नौकरी दी जाए। साथ ही, उनकी नियुक्ति की तिथि को उनकी वास्तविक जॉइनिंग तिथि माना जाएगा।