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    जबलपुर AOC म्यूजियम में पिस्टल का खजाना: माचिस की डिब्बी जितनी पिस्टल से करते थे जासूसी

    जबलपुर : मैटेरियल मैनेजमेंट कॉलेज में एओसी म्यूजियम है. इस म्यूजियम में प्रथम विश्व युद्ध के दौरान महिला जासूसों द्वारा इस्तेमाल की गई कुछ ऐसी खास छोटी-छोटी पिस्टल हैं. जिनको अब तक किसी ने नहीं देखा. इन्हें वैनिटी बैग पिस्टल कहा जाता है. इन छोटी-छोटी बंदूक का इस्तेमाल महिला जासूस आपात स्थिति में कर सकती थीं.

    जब फ्रांसीसी सेना ने जासूसी करते हुए एक डच महिला डांसर को पकड़ा, तब उन्हें इन बंदूक का पता लगा. जबलपुर के म्यूजियम में ऐसी कई बंदूके संरक्षित की गई हैं.

    एओसी म्यूजियम

    जबलपुर में भारतीय सेना का एओसी म्यूजियम है. इस म्यूजियम को 1926 में जबलपुर में स्थापित किया गया था. इस संग्रहालय में हजारों बंदूके हैं. यह म्यूजियम पूरी दुनिया में पाए जाने वाले अलग-अलग हथियारों का एक अनोखा कलेक्शन है.

    इसमें शुरुआती खंजर और तलवारों से लेकर आधुनिक मिसाइल तक हर तकनीक से जुड़ा हुआ हथियारों का कलेक्शन है. इसी में कुछ ऐसे ऐतिहासिक हथियार भी हैं, जिनका इस्तेमाल दुनिया की कुछ बड़ी लड़ाइयों में हुआ है.

    प्रथम विश्व युद्ध दुनिया के इतिहास की पहली ऐसी लड़ाई थी. जिसमें पूरी दुनिया किसी न किसी तरफ खड़े होकर लड़ रही थी. इस युद्ध में बड़े पैमाने पर जासूसों का इस्तेमाल भी किया जा रहा था. खास तौर पर महिला जासूस दुश्मन देश में भेजे जा रहे थे. ऐसी ही एक महिला जासूस के पास कई पिस्तौल यानि पिस्टल मिली थी. जो आज भी जबलपुर के इस म्यूजियम में संरक्षित है.

    सेना के अधिकारी विशाल चोपड़ा ने बताया कि "इस म्यूजियम में हमारे पास कुछ ऐतिहासिक वैनिटी बैग पिस्टल हैं. वैनिटी बैग पिस्टल बहुत छोटी होती है. इन्हें आसानी से महिला पर्स में रखा जा सकता है. इनको चलाना बहुत सरल होता है. यह बहुत छोटी और हल्की होती है.

    इनको मुख्य रूप से महिलाओं के लिए डिजाइन किया गया था. ताकि महिलाएं इन्हें अपने पर्स में रखकर ले जा सकें. भारतीय सेना के इस संग्रहालय में एक पिस्टल है. जिसकी लंबाई 10 सेंटीमीटर है और इससे गोली चलाई जा सकती है.

    वहीं एक पिस्तौल और है जिसका वजन मोबाइल फोन से भी कम है. एक बहुत सुंदर सी पिस्टल है. जिसके ऊपर मोती का हुड लगा हुआ है. एक दूसरी पिस्टल है. जिस पर लकड़ी की बहुत सुंदर नक्काशी की गई है."

    माताहारी एक जासूस महिला

    इनमें से कुछ पिस्तौल की कहानी बड़ी रोचक है. यह छोटी-छोटी खूबसूरत बंदूके डच महिला जासूस माताहारी से बरामद हुई थीं. माताहारी का असली नाम मार्गरेट जेला था. उसका जन्म 1876 में नीदरलैंड में हुआ था. वह एक डच महिला थी.

    बेहद खूबसूरत और डांसर थी माताहारी

    वह बहुत खूबसूरत थी. 1917 में पहले विश्व युद्ध के ठीक पहले माताहारी को ब्रिटिश सेना की जासूसी करने के लिए भेजा था. वह खूबसूरत होने के साथ एक बहुत अच्छी डांसर थी और माताहरी उसका स्टेज नाम था. इसलिए अंग्रेज सैन्य अधिकारी उसके प्रभाव में आ जाते थे. उसने कई कई खुफिया जानकारी अंग्रेजों के दुश्मन देश तक पहुंचाई थी.

    जासूसी का पता चलने पर मारी दो गोली

    बाद में इस बात की जानकारी अंग्रेज अधिकारियों को हुई. अंग्रेज अधिकारियों ने जब इसकी पड़ताल की तो यह बात साबित हो गई की माताहरी जासुस थी. जासूसों के साथ बहुत बुरा बर्ताव किया जाता था. माताहरी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. फ्रांसीसी अधिकारियों ने गोली मारकर उसकी हत्या करने की सजा दी, बाद में उसे गोली मार दी गई.

    उस दौरान उसके पास से कुछ ऐसी पिस्टलस मिली थी. जिन्हें उसके पहले किसी ने नहीं देखा था. यह बेहद खूबसूरत छोटी-छोटी पिस्तौल होती थीं, जिन्हें आसानी से महिलाएं अपने पर्स में रख सकती थीं.

    मात्र 86 ग्राम की पिस्टल

    माताहारी के पास मिली ऐसी कई पिस्टल अंग्रेजों ने रख ली थी. जिन्हें बाद में जबलपुर के सेना म्यूजियम में भेज दिया गया. यह छोटी-छोटी बंदूके आज जबलपुर के कॉलेज ऑफ मैटेरियल मैनेजमेंट के संग्रहालय में सुरक्षित रखी हुई है. इनमें से एक पिस्टल 1880 में बनाई गई थी. इसका वजन मात्र 86 ग्राम है. जो एक मोबाइल फोन से भी कम है.

    कई पिस्टल एक बार तो कई 6 राउंड करती है फायर

    इनमें कुछ पिस्टल ऐसी हैं, जिनमें एक बार ही गोली चलती थी, लेकिन कुछ ऑटोमेटिक है. जिनमें एक साथ कई गोलियां चलाई जा सकती हैं, कुछ सिक्स राउंड यानि एक बार में छह गोली चलाई जा सकती हैं. यह सभी पिस्तौल बहुत छोटी है. इन्हें आसानी से छुपा कर कहीं भी ले जाया जा सकता था. हालांकि मेटल डिटेक्टर आने के बाद अब इन्हें ले जाना सरल नहीं है.

     

     

      जबलपुर के म्यूजियम में बंदूकों का इतिहास

      एओसी म्यूजियम में रखी हर बंदूक की एक कहानी है. इसे किसी न किसी महत्वपूर्ण युद्ध में इस्तेमाल किया गया है. इसके बनने के पीछे एक वजह है और हर बंदूक एक मास्टर पीस है. इसमें कला और विज्ञान का इस्तेमाल किया गया है.

      यहां बीते 200 सालों में हथियारों के विकास को देखा जा सकता है. मतलब कभी एक सामान्य पत्थर से शुरू हुए हथियार आज इतनी विध्वंसक हो गए हैं कि पलक झपकते हुए पूरी दुनिया बर्बाद कर सकते हैं.

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