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    रोंगटे खड़े कर देगी यह परंपरा! शादी से पहले यहां आत्माओं को मिलता है न्योता, न बुलाने पर होती है अनहोनी

    बचपन में आपने अपनी नानी-दादी से भूत-प्रेत और आत्माओं के कहानी सुनी होगी. किसी सुनसान जगह पर कोई आत्मा भटकती है. इसके साथ ही कई बार भूत भगाने के लिए हवन-कीर्तन करते हुए भी आपने देखा होगा. लेकिन क्या कभी आत्माओं की पूजा होती देखी है? छत्तीसगढ़ के बस्तर में अबूझमाड़ समेत कुछ ऐसे गांव हैं, जहां आत्माओं का घर होता है, न सिर्फ यहां आत्माओं का घर है. बल्कि, इन गांवों में आत्माओं की पूजा भी की जाती है.

    बस्तर के अबूझमाड़ इलाकों में आदिवासी समुदाय के लोग आत्माओं को घर देते हैं और आत्माओं की पूजा करते हैं. वह आत्माओं को न्योता देते हैं और परिवार की खुशहाली के लिए पूजा करते हैं. अबूझमाड़ के गांवों में आत्माओं को घर देने की परंपरा सालों से चलती आ रही है. इस गांव के लोग पीतर या पितृपक्ष को नहीं मानते. उनका कहना है कि वह अपने पूर्वजों की आत्माओं को आत्माओं के घर में रखकर उनकी पूजा करते हैं. यहां हांडियों में पूर्वजों की आत्माओं को रखा जाता है और उनकी पूजा की जाती है.

    आत्माओं की रोज करते हैं पूजा

    आदिवासी समाज में इसे आना कुड़मा कहा जाता है. आना कुड़मा का मतलब ही आत्मा का घर होता है. छत्तीसगढ़ राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग के पूर्व अध्यक्ष देवलाल दुग्गा ने इन गांव और आत्माओं की पूजा को लेकर जानकारी देते हुए बताया कि आदिवासी समाज के लोगों की मान्यता है कि यहां उनके पूर्वजों की आत्माएं साक्षात रहती हैं, जिनकी रोज पूजा की जाती है.

    आत्माओं को दिया जाता है न्योता

    यही नहीं जब गांव में किसी कोई शादी होती है तो उससे पहले आत्माओं को न्योता दिया जाता है और फिर वह आत्माएं जोड़े को अपना आशीर्वाद देती हैं. इसके साथ ही गांव में नई फसल का इस्तेमाल भी आत्माओं को बिना चढ़ावा दिए नहीं किया जाता. अगर कोई भूलकर भी ऐसा कर लेता है तो गांव में संकट आ जाता है. इसके बाद गलती मानी जाती है और पूजा पाठ किया जाता है.

    हांडी में पितरों का वास

    देवलाल दुग्गा ने बताया कि आदिवासी समाज के लोग ‘आना कुड़मा’ में काफी आस्था रखते हैं. गांव में मंदिर की तरह एक छोटे से कमरे वाला घर होता है, जिसमें एक मिट्टी की हांडी रखी जाती हैं. कहा जाता है कि इसी हांडी में आदिवासी समुदाय के पितरों का वास होता है. इन गांवों के हर घर में एक कमरा पूर्वजों का होता है. आदिवासी गांव में एक गोत्र के लोगों की संख्या ज्यादा होती है. ऐसे में जब किसी की मौत हो जाती है तो उस गोत्र के लोग उनकी आत्माओं को आना कुड़मा में स्थापित करते हैं, जिनकी पूजा की जाती है.

    बुरी आत्माओं से बचाती हैं ये आत्माएं

    कहा जाता है कि ये आत्माएं गांव के लोगों को बुरी आत्माओं से बचाती हैं. देवलाल दुग्गा ने कहा कि आत्मा में ही परमात्मा का वास होता है. आदिवासी समाज के लोग अपने पूर्वजों को ही पूजते हैं. खास मौकों, जैसे- त्यौहार या शादी में इन आत्माओं की पूजा की जाती है और आशीर्वाद मांगा जाता है. लेकिन इन आत्माओं के घर में सिर्फ पुरुष ही जा सकते हैं. यहां महिलाओं या लड़कियों का जाना सख्त मना होता है. शादी की रस्मों की शुरुआत भी आत्माओं को न्योता देने के बाद ही होती है.

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