नगर पालिका टेंडरों में धोखाधड़ी उजागर, उपनिदेशक के आदेश के सात दिन बाद भी कार्रवाई अधर में
मिशन सच ब्रेकिंग स्टोरी
मुकेश सोनी, किशनगढ़बास । नगर पालिका खैरथल में फर्जी दस्तावेजों के ज़रिए टेंडर प्राप्त करने वाली फर्म राज कांट्रेक्टर की पोल खुलने के बाद क्षेत्रीय स्थानीय निकाय विभाग जयपुर के उप निदेशक विनोद पुरोहित ने कड़ा रुख अपनाया है। उन्होंने खैरथल अधिशासी अधिकारी मुकेश शर्मा को फर्म के चारों टेंडर निरस्त करने, अमानत राशि जब्त करने और फर्म को ब्लैकलिस्ट करने के निर्देश दिए हैं।
हालांकि, आदेश जारी होने के सात दिन बाद भी अधिशासी अधिकारी ने न तो टेंडर रद्द किए हैं और न ही कोई स्पष्ट कार्रवाई की है। उन्होंने मीडिया से बातचीत में इसे “प्रक्रिया में” बताया, जिससे सवाल उठने लगे हैं कि कहीं अधिकारी स्वयं किसी दबाव या मिलीभगत में तो नहीं हैं?
फर्जी लाइसेंस के आधार पर हासिल किए गए थे टेंडर
उप निदेशक द्वारा 10 जून 2025 को जारी आदेश में कहा गया है कि राज कांट्रेक्टर ने श्रम विभाग का फर्जी पंजीयन प्रस्तुत कर निविदा शर्त संख्या 5 को पूर्ण करने का दावा किया था। जांच में पाया गया कि फर्म का श्रम विभाग का लाइसेंस 31 दिसंबर 2022 को ही समाप्त हो चुका था और इसका नवीनीकरण आवेदन 2 दिसंबर 2024 को किया गया, जो निविदा तिथि के काफी बाद की प्रक्रिया थी।
इस तरह यह स्पष्ट हो गया कि फर्म ने जालसाजी कर फर्जी दस्तावेज प्रस्तुत कर कार्यादेश प्राप्त किए। यह पुष्टि दिनांक 23 मई 2025 के पत्र क्रमांक 4191 तथा 2 जून 2025 के पत्र क्रमांक 862 पर आधारित जांच रिपोर्ट में की गई है।
किशनगढ़बास टेंडरों पर भी अधिकारी अनभिज्ञ?
जब राज कांट्रेक्टर द्वारा किशनगढ़बास नगर पालिका में लिए गए टेंडरों के बारे में अधिशासी अधिकारी से सवाल पूछा गया तो उन्होंने अनभिज्ञता जाहिर की। उन्होंने कहा कि यह जानकारी देखने के बाद ही दी जा सकती है, जबकि स्थानीय सूत्रों के अनुसार फर्म को किशनगढ़बास में कई टेंडर पहले ही दिए जा चुके हैं। यह बयान भी संदेह के घेरे में आता है।
प्रशासनिक सख्ती या लीपापोती?
उप निदेशक ने यह भी स्पष्ट किया है कि शिकायतकर्ता द्वारा प्रस्तुत शिकायत पूर्णतः प्रमाणित पाई गई है और मामले की प्रतिलिपि स्वायत्त शासन विभाग, वित्तीय सलाहकार एवं सतर्कता शाखा तक भेजी गई है।
इसके बावजूद खैरथल अधिशासी अधिकारी की निष्क्रियता और “प्रक्रियाधीन” कहकर आदेश को दबाए रखना, शासन के निर्देशों की अनदेखी के साथ गंभीर प्रशासनिक लापरवाही भी मानी जा रही है।
अब देखने वाली बात यह होगी कि नगर पालिका के अधिकारियों पर जवाबदेही तय होती है या फिर मामला फाइलों में दबा रह जाता है।