चरित्र निर्माण ही सबसे बड़ी ताकत
मिशनसच न्यूज, चंडीगढ़। “सद्विचारों और सत्कर्मों की एकरूपता ही चरित्र है। जो अपनी इच्छाओं को संयमित कर सत्कर्मों का रूप देते हैं, वही सच्चे अर्थों में चरित्रवान कहलाते हैं।” यह प्रेरणादायी विचार मनीषी संत मुनि विनयकुमार आलोक ने सेक्टर-24सी स्थित अणुव्रत भवन के तुलसी सभागार में आयोजित प्रवचन में व्यक्त किए।
मुनिश्री ने कहा कि जीवन में सफलता का आधार मनुष्य का चरित्र है। सेवा, दया, परोपकार, उदारता, त्याग, शिष्टाचार और सद्व्यवहार इसके बाह्य अंग हैं, जबकि सद्भाव, उत्कृष्ट चिंतन, नियमित जीवन और शांत मनोदशा इसके आंतरिक अंग हैं। व्यक्ति के विचार, इच्छाएं और आचरण ही उसके चरित्र का निर्माण करते हैं।
उन्होंने आगे कहा कि साहित्य चरित्र निर्माण का सबसे प्रभावशाली माध्यम है। यह विचारों में दृढ़ता और शक्ति प्रदान करता है तथा आत्म-निर्माण में सहायक होता है। साहित्य के माध्यम से मनुष्य में आंतरिक विशेषताएं जागृत होती हैं और जीवन की सही दिशा का ज्ञान प्राप्त होता है।
मुनिश्री विनयकुमार जी ने कहा कि मनुष्य का एक ऐसा अंतर्यामी मित्र — ईश्वर — उसके भीतर विद्यमान है, जो बुरे विचार आते ही भय, शंका और लज्जा के भाव उत्पन्न कर बुराई से बचने की प्रेरणा देता है, वहीं अच्छे विचार आने पर उल्लास और हर्ष की अनुभूति कराता है।
उन्होंने यह भी कहा कि किसी भी कार्य में सफलता या असफलता का निर्धारण केवल प्रयास से नहीं, बल्कि स्नेह, संवेदना और सहानुभूति से होता है। असंवेदनशीलता और क्रूरता व्यक्ति के मार्ग में बाधा बन जाती है।
अपने प्रवचन के अंत में मुनिश्री ने कहा कि मन की शांति जीवन की सबसे बड़ी आवश्यकता है। जब मन शांत होता है, तभी हम जीवन को सही दृष्टि से देख सकते हैं और नई दिशा खोज सकते हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि व्यक्ति को प्रतिदिन कुछ समय स्वयं के लिए निकालना चाहिए — अपनी इच्छाओं, विश्वासों और भावनाओं पर विचार करना चाहिए। यही आत्मचिंतन मनुष्य को उसकी सच्ची दिशा और उद्देश्य का बोध कराता है।