रत्नाकर मुनि बने समाज की प्रेरणा
मिशनसच न्यूज, जयपुर। राजनांदगांव के प्रतिष्ठित व्यवसायी रतनलाल गोलछा का जीवन सांसारिक गणना से आत्मिक यात्रा की ओर बढ़ा — जब उन्होंने 5 अक्टूबर 2025 को जयपुर स्थित नवकार भवन, तिलक नगर में हुक्मगच्छाधिपति आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराज म.सा. के सान्निध्य में जैन भगवती दीक्षा ग्रहण की।
व्यापार की सफलताओं से भरे तिहत्तर वर्षों के पश्चात यह कदम उनके लिए वैराग्य और मोक्ष की दिशा में एक गहन आध्यात्मिक परिवर्तन साबित हुआ।
दीक्षा के साथ ही वे श्री रत्नाकर मुनि बन गए। दीक्षा के क्षण में उपस्थित श्रद्धालुओं के लिए यह दृश्य किसी आत्म-जागरण के पर्व से कम नहीं था।रत्नाकर मुनि के पुत्र नवीन, अमित और सुमित गोलछा — जो अरिहंत कंप्यूटर फर्म का संचालन करते हैं — ने पिता के इस महान त्याग को भावभीने हृदय से स्वीकार किया।
इस दिव्य निर्णय में श्री साधुमार्गी शांत क्रांति जैन श्रावक संघ जयपुर की गहरी श्रद्धा और सहयोग रहा। जयपुर संघ के महामंत्री नवीन जी लोढ़ा की धर्म सहायिका श्रीमती कविता जी लोढ़ा के सांसारिक चाचा होने के नाते, यह प्रसंग पूरे संघ और जैन समाज के लिए प्रेरणास्पद बन गया।
दीक्षा के कुछ ही दिनों बाद, 16 अक्टूबर 2025 को, रत्नाकर मुनि ने संथारा (सल्लेखना) व्रत धारण करते हुए शांतिपूर्वक देह का त्याग किया और आत्मा को मोक्ष की दिशा में समर्पित किया।
आचार्य श्री विजयराज म.सा. ने प्रवचनों में कहा —
“रत्नाकर मुनि का यह निर्णय केवल संयम का नहीं, बल्कि आत्मज्ञान के सर्वोच्च बिंदु तक पहुँचने का साहस है। जब देह की गणना समाप्त होती है, तब आत्मा मोक्ष के महाशून्य में विलीन होती है।”
रत्नाकर मुनि की संथारा साधना ने यह सिद्ध कर दिया कि संसार की ऊँचाइयाँ जब आत्मा की गहराइयों में विलीन होती हैं, तभी सच्चा मोक्ष संभव है।
उनकी यह कथा आने वाली पीढ़ियों के लिए संयम, वैराग्य और आत्मजागरण का दीप बनकर सदैव प्रेरणा देती रहेगी।
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