धैर्य और संतुलन से ही जीवन को बनाया जा सकता है आनंदमय: मुनि विनयकुमार जी आलोक

Inner peace is the basis of true happiness
Inner peace is the basis of true happiness

चंडीगढ़।
“धैर्य रखना साहसी लोगों का लक्षण है। जब हम जीवन में धैर्यपूर्वक कदम बढ़ाते हैं, तभी हमें स्पष्ट दृष्टिकोण और आत्मिक संतुलन प्राप्त होता है।” उक्त विचार मनीषीसंत श्री मुनि विनयकुमार जी आलोक ने सेक्टर-24C स्थित अणुव्रत भवन के तुलसी सभागार में प्रवचन के दौरान व्यक्त किए।

उन्होंने कहा कि जो लोग धैर्य रखते हैं, वे जीवन की उलझनों में भी आत्मविश्लेषण कर सही मार्ग चुन पाते हैं। यदि जीवन में प्रसन्नता चाहिए, तो ध्यान उन चीजों पर केंद्रित करें जो हमारे पास हैं, न कि उन पर जो नहीं हैं। उन्होंने यह भी कहा कि जीवन की गति को थोड़ा कम कर दें, तो आनंद अपने आप मिलने लगेगा।

भौतिकता नहीं, आत्मिक शांति है असली सुख का आधार

मुनिश्री ने भौतिक सुख-सुविधाओं की अंधी दौड़ पर चिंता जताते हुए कहा कि अत्यधिक भौतिकता मनुष्य को तनाव, क्रोध और विकृति की ओर ले जाती है। “जैसे कंप्यूटर में हार्डवेयर के साथ सॉफ्टवेयर भी जरूरी है, वैसे ही शरीर के साथ चिंतन की पवित्रता भी आवश्यक है।”

उन्होंने ज्ञानेंद्रियों की सकारात्मक भूमिका पर प्रकाश डालते हुए कहा:

  • आंखों से सूर्य, चंद्रमा, पेड़-पौधों आदि का सौंदर्य ग्रहण करें।

  • कानों से भजन, कीर्तन और श्लोकों की ऊर्जा लें।

  • नासिका से फूलों की सुगंध और प्राणवायु ग्रहण करें।

  • जीभ से सात्विक आहार ग्रहण करें।

  • शरीर से सेवा और सम्मान का भाव प्रकट करें।

यदि ऐसा किया जाए, तो जीवन आनंदमय ही नहीं बल्कि “परमानंद का धाम” बन सकता है।

बच्चों को तकनीक नहीं, समय और स्नेह चाहिए

मुनि श्री ने बच्चों की परवरिश के संकट पर विशेष चिंता जताई। उन्होंने कहा कि आज के युग में स्मार्टफोन और इंटरनेट के जाल में बच्चे गहरे डूबते जा रहे हैं, जिसका परिणाम कभी-कभी ‘ब्लू व्हेल’ जैसे घातक रूपों में सामने आता है।

उन्होंने कहा कि सरकारें इंटरनेट के सामने लगभग असहाय हैं, ऐसे में समाज को सजग भूमिका निभानी होगी। “बच्चों को अधिक सुविधाएं देना उन्हें मजबूत नहीं बनाता, बल्कि उन्हें समय, स्नेह और सहचर्य देना ही सच्ची परवरिश है।”

“दो और दो पांच का गणित” छोड़ें

अंत में उन्होंने कहा कि जीवन में ‘दो और दो पांच’ जैसे असंभव समीकरणों में उलझकर हम खुद को ही तनाव में डालते हैं। इसलिए यथार्थ को स्वीकार कर, संयम और विवेक से जीवन जिएं—यही जीवन की सफलता और आनंद का मार्ग है।

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