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    Homeराजस्थानअलवरभारतीय चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद का अभिन्न अंग – योग

    भारतीय चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद का अभिन्न अंग – योग

    📅 विश्व योग दिवस विशेष लेख श्रृंखला – अंक 3
    🧘‍♂️
    🕉️ करो योग, रहो निरोग

    ✍️ डॉ. पवन सिंह शेखावत
    वरिष्ठ आयुर्वेद चिकित्सा अधिकारी


    🧩 अष्टांग योग – नियम (दूसरी सीढ़ी)

    योग केवल शारीरिक अभ्यास नहीं, बल्कि जीवन की संपूर्ण साधना है। पतंजलि द्वारा प्रतिपादित अष्टांग योग में दूसरी सीढ़ी “नियम” को आत्मिक अनुशासन का मूल माना गया है।

    जहाँ ‘यम’ समाज के प्रति आचरण को दर्शाता है, वहीं ‘नियम’ व्यक्ति के अपने प्रति कर्तव्यों को स्पष्ट करता है।

    🔍 नियम के पांच भेद एवं लाभ:

    1️⃣ शौच (शुद्धि)
    तन, मन, अन्न, वस्त्र व परिवेश की स्वच्छता – बाहरी और भीतरी दोनों स्तरों पर शुद्धता से मन निर्मल होता है।

    2️⃣ संतोष
    जो मिला है, उसी में संतुष्ट रहते हुए कर्म करते जाना – यही मानसिक संतुलन का मूलमंत्र है।

    3️⃣ तप
    संकटों में भी कर्तव्य से पीछे न हटना, जीवन के प्रति अनुशासित और उत्तरदायी रहना ही सच्चा तप है।

    4️⃣ स्वाध्याय
    आत्मनिरीक्षण, आत्मपठ, और अपने विचारों को जांचना-परखना – यह हमें मानसिक रूप से सशक्त करता है।

    5️⃣ ईश्वर-प्रणिधान
    हर परिस्थिति में ईश्वर के प्रति अटूट श्रद्धा – यह विश्वास हमें स्थिरता और शांति प्रदान करता है।


    👉 इन पाँच नियमों का अभ्यास करके योग साधक न केवल अपनी मानसिक एवं आत्मिक उन्नति करता है, बल्कि अष्टांग योग की यात्रा में आगे बढ़ता है।

    🧘‍♀️ “नियमों से जीवन अनुशासित होता है, और अनुशासित जीवन से ही आत्म-साक्षात्कार की राह बनती है।”



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