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    Homeहर घर में गूंजनी चाहिए बेटियों की किलकारी

    हर घर में गूंजनी चाहिए बेटियों की किलकारी

    किलकारी के लिए मिटाना होगा लिंगानुपात का असंतुलन,

    चिंतन – निलेश कांठेड़,भीलवाड़ा , राजस्थान 

    शारदीय नवरात्र की आराधना पूरे देश में चल रही है। शक्ति स्वरूपा मां दुर्गा के मंदिरों और शक्तिपीठों पर भक्तों का तांता लगा है। हर कोई माता रानी का आशीर्वाद पाने की कामना कर रहा है। जगह-जगह कन्या पूजन हो रहा है, भजन-कीर्तन और दुर्गा सप्तशती के पाठ हो रहे हैं। भावनाएं एक ही हैं—माता रानी कृपा करें और घर-परिवार सुख-समृद्धि से भरे।

    निलेश कांठेड़
    निलेश कांठेड़

    लेकिन सवाल यह है कि जिन देवियों की प्रतिमाओं को हम श्रद्धा से पूजते हैं, उनकी प्रतिकृति रूप में घर की बेटियों के प्रति हमारी सोच कब बदलेगी? नारी केवल मंदिर की मूर्तियों तक सीमित नहीं है; वह घर में मां, बहन, बेटी, पत्नी, बहू, सास और भाभी के रूप में हमारे जीवन को संवार रही है। इसके बावजूद समाज में उसे बराबरी का सम्मान क्यों नहीं मिलता? क्यों आज भी नारी घर से बाहर निकलते समय सुरक्षा की चिंता में रहती है?

    आज का सबसे बड़ा प्रश्न यही है कि जब हमारे घरों में बेटियां ही नहीं होंगी, तो देवी मां हमारी पूजा और भक्ति से प्रसन्न कैसे होंगी? कन्या भ्रूण हत्या का जघन्य पाप कर समाज देवी मां की आराधना का अधिकार खो देता है। परिवार में बेटी के जन्म को रोककर हम स्वयं ही अपने आंगन में देवी के आगमन का मार्ग बंद कर देते हैं।

    विडंबना यह है कि लोग अपने बेटों के लिए योग्य वधु की तलाश करते हैं, लेकिन अपने घर में बेटी नहीं चाहते। यही दोहरी सोच लिंगानुपात के असंतुलन का कारण बनी है। आज कई जाति-धर्मों, खासकर उच्च वर्गों में बेटियों की संख्या तेजी से घट रही है। नतीजा यह हो रहा है कि विवाह योग्य युवकों के लिए बहु नहीं मिल रही और कुछ जगहों पर दलालों के माध्यम से पैसों के बदले गरीब परिवारों से लड़कियां खरीदे जाने जैसी अमानवीय स्थितियां जन्म ले रही हैं।

    आधुनिक सोच के नाम पर परिवार सीमित रखने की प्रवृत्ति और उसमें भी पुत्र को ही प्राथमिकता देने की मानसिकता बेटियों के अस्तित्व पर संकट खड़ा कर रही है। हम यह भूल जाते हैं कि जब बेटियां नहीं होंगी तो न तो बेटों के लिए जीवनसंगिनी मिलेगी और न ही नवरात्र में कन्या पूजन का शुभ अवसर पूरा हो पाएगा।

    नवरात्र की पूजा तभी सार्थक होगी जब हम संकल्प लें कि हर घर के आंगन में बेटियों की किलकारी गूंजेगी। संतान के नाम पर केवल एक पुत्र होने पर ही परिवार पूर्ण मानने की मानसिकता बदलनी होगी। कन्या भ्रूण हत्या न तो स्वयं करेंगे, न किसी को करने देंगे। जो लोग यह पाप करते हैं, उन्हें देवी की पूजा का अधिकार नहीं होना चाहिए।

    बेटियां ही सच्चे अर्थों में देवी मां की प्रतिकृति हैं। अगर हम अपने आंगन को उनकी उपस्थिति से महकाएंगे, तो माता रानी की कृपा अपने आप बरसने लगेगी।

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