इंदिरा खुराना व राजेश रवि की पुस्तक कोलंबिया में अधिकारियों को भेट की
स्थान – बगोता, कोलंबिया |
स्वराज विमर्श यात्रा 5 जून 2025 को कोलंबिया की राजधानी बगोता पहुँची। इस अवसर पर जल संरक्षण एवं शांति स्थापना के लिए समर्पित प्रख्यात जल विशेषज्ञ राजेन्द्र सिंह ने कहा कि जब कोई राष्ट्र या समाज अपने अतीत की भूलों को स्वीकार कर लेता है, तब शांति की यात्रा आरंभ होती है। उन्होंने कोलंबिया के राष्ट्रपति द्वारा अपने कैबिनेट सहित क्षमा याचना को एक ऐतिहासिक सत्य स्वीकृति करार दिया और कहा कि सत्य की स्वीकृति से ही अहिंसा का मार्ग खुलता है, जिससे हिंसा स्वतः समाप्त होने लगती है।
5 जून को दोपहर 3 बजे कोलंबिया के मानव अधिकार आयोग मुख्यालय में राजेन्द्र सिंह की सरकारी अधिकारियों के साथ महत्वपूर्ण बैठक हुई। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि जल केवल मानवाधिकार नहीं, बल्कि प्रकृति प्रदत्त जीवनाधिकार है। जल सबका है, लेकिन इसकी आपूर्ति न होना कई लोगों को न केवल उनके जीवन और आजीविका से वंचित करता है, बल्कि आत्मसम्मान भी छीन लेता है। अतः यह संयुक्त राष्ट्र, प्रत्येक सरकार और राज्य की जिम्मेदारी बनती है कि वह प्रत्येक नागरिक के लिए सुरक्षित और सुलभ पेयजल सुनिश्चित करे।
इस बैठक में जब कोलंबिया की वरिष्ठ निर्देशिका ने चंबल क्षेत्र में उनके कार्य की शुरुआत पर सवाल किया, तो राजेन्द्र सिंह ने बताया कि वर्ष 1992 में चंबल के बुजुर्ग स्वयं उन्हें बुलाने आए थे। वहां की महिलाओं के सहयोग से जल संरक्षण का कार्य शुरू किया गया, जिसका प्रभाव इतना गहरा हुआ कि महिलाओं ने अपने पतियों को बंदूक छोड़कर खेती का रास्ता अपनाने के लिए प्रेरित किया। यह परिवर्तन प्रचार के बिना, पूर्णतः शांति और आत्मीयता से वर्ष 2022 तक चलता रहा। जब बागियों पर दर्ज मुकदमे समाप्त हुए, तो उन्होंने स्वयं स्वीकार किया कि पानी ने उन्हें हिंसा से खेती की ओर मोड़ा।
राजेन्द्र सिंह ने इस बदलाव को राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त बताते हुए कहा कि यही इसकी सफलता का आधार रहा। उन्होंने चंबल की परिवर्तन यात्रा को दस्तावेजीकृत करने वाली दो पुस्तकें—डॉ. इंदिरा खुराना की पुस्तक और वरिष्ठ पत्रकार राजेश रवि द्वारा लिखित पुस्तक कोलंबिया अधिकारियों को भेंट कीं और सुझाव दिया कि इनका आधुनिक अनुवाद कर वैश्विक संदर्भ में उपयोग किया जा सकता है।
उसी रात धर्म और आस्था के विविध प्रतिनिधियों के साथ संवाद हुआ, जिसमें तय किया गया कि 6 जून की सुबह 6 बजे कोलंबिया सरकार के शांति मंत्रालय में एक अंतरधार्मिक बैठक आयोजित की जाएगी। इस बैठक में हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, बौद्ध धर्म के प्रतिनिधियों सहित सभी प्रमुख धार्मिक परंपराओं के लोगों ने भाग लिया। राजेन्द्र सिंह ने धर्म की मूल आत्मा को प्रकृति करार देते हुए कहा कि पंचमहाभूत—जल, वायु, अग्नि, पृथ्वी और आकाश—सभी धर्मों का आधार रहे हैं। उन्होंने कहा कि जब कोई धर्म सत्ता से जुड़ जाता है, तब वह अपनी मूल संवेदना खो देता है और प्रतिस्पर्धा में पड़ जाता है। यह धर्म की नहीं, सत्ता की लड़ाई होती है, जिससे समाज विभाजित होता है और प्रकृति की उपेक्षा होती है।
उन्होंने स्पष्ट किया कि यदि हम हिंसा को रोकना चाहते हैं, तो हमें सत्य की ओर लौटना होगा—और वह सत्य है प्रकृति। प्रकृति को जीवनदायिनी मानते हुए उसके सिद्धांतों का पालन ही सच्चा धर्म है। जब तक हम पंचमहाभूतों का सम्मान नहीं करते, तब तक हम हिंसा से मुक्त नहीं हो सकते।
6 जून की इस बैठक के दौरान किसी भी धार्मिक प्रतिनिधि ने इस विचार का विरोध नहीं किया। सभी ने अपने धर्मों की विशेषताओं को साझा किया, लेकिन राजेन्द्र सिंह का प्रकृति-केन्द्रित धर्म का दृष्टिकोण चर्चा का केंद्र बना रहा।
7 जून की सुबह उन्होंने कोलंबिया की जल जीवनरेखा समझे जाने वाले पहाड़ी क्षेत्र का भ्रमण किया। एरीना और सलीना के साथ बगोता के उन जंगलों, ग्लेशियरों और पर्वतीय जल स्रोतों का अवलोकन किया गया, जहाँ से लगभग 80 प्रतिशत जल आपूर्ति वर्षा जल से होती है। इसे विश्व का एक दुर्लभ और सुंदर जल तंत्र बताया गया। इसके बाद मारलोन बिकेरा के साथ देर रात तक कोलंबिया के सामाजिक और जलविषयों पर गहन चर्चा हुई।
इस तीन दिवसीय यात्रा में जल के माध्यम से शांति की स्थापना पर केंद्रित कई आयोजन हुए। भारत से इंद्रशेखर सिंह, जर्मनी से एड्रियाना, स्पेन से हेलेना, फ्रांस से एलिना, मोरक्को से सई, टमेरा से सबीने, कोलंबिया के ‘कम्युनिटी द पाज’ जैसे संगठनों के साथ-साथ अपार्टडो के 15 शांतिप्रिय गांवों ने सहभागिता की। ये सभी समुदाय बिना हथियारों और सत्ता के जीवन जी रहे हैं। राष्ट्रपति द्वारा इनसे क्षमा मांगना इस बात का प्रतीक है कि जब कोई समाज सत्य को स्वीकारता है, तभी वह स्थायी शांति की दिशा में अग्रसर होता है।