राजस्थान में 40% ऊंटों की आबादी कम हुई, जानें कैसे कम होते चरागाह और कानून बने उनके दुश्मन

22 जून को विश्व ऊंट दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस दिवस को मनाने का कारण यह है कि ऊंट का संरक्षण हो सके और विलुप्त होने की कगार पर पहुंचने वाली इस प्रजाति को बचाया जा सके. केंद्र और राज्य सरकार की ओर से ऊंट के संरक्षण को लेकर कई योजनाएं लागू की गई है. हालांकि, ये योजनाएं अब केवल कागजों तक ही सीमित नजर आ रही है. रेगिस्तान का जहाज और राजस्थान का राज्य पशु कहलाए जाने वाला ऊंट अब राजस्थान में ही विलुप्त होता नजर आ रहा है.

राजस्थान में ऊंटों की संख्या घट रही है. सरहदी जिले जैसलमेर के ऊंट की नस्ल में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखती है. लेकिन अब यहां पर भी पशुपालक ऊंटों से किनारा करते नजर आ रहे हैं. क्योंकि राज्य और केंद्र सरकार द्वारा ऊंटों के संरक्षण को लेकर कोई सहायता राशि नहीं दी जा रही है. जिसको लेकर ऊंटपालक और पर्यावरण प्रेमी सुमेरसिंह सांवता ने जानकारी देते हुए बताया है कि राजस्थान का राज्य पशु और रेगिस्तान का जहाज कहलाए जाने वाला ऊंट जिसकी ओर राजस्थान सरकार कोई ध्यान नहीं दे रही है.

राज्य में घट रही उंटों की संख्या

ऊंटपालकों को समय पर मुआवजा नहीं मिल रहा है. ऊंटों के लिए निर्धारित किस्त ऊंटपालकों के खाते में नही आ रही है, जिससे ऊंट प्रजाति विलुप्त की कगार पर है. अगर समय रहते राज्य सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया तो आने वाले समय में यह ऊंट कागजों में ही देखने को मिलेंगे. 2012 में राजस्थान में ऊंटों की संख्या 3.26 लाख थी. 2019 की पशुधन गणना के अनुसार राजस्थान में 2.13 लाख ऊंट थे.

2 दशकों में आई 40 प्रतिशत की गिरावट

2019 के बाद से ऊंटों की संख्या में गिरावट जारी है. एक रिपोर्ट के अनुसार, अब यह संख्या लगभग 1.75 लाख रह गई है. पिछले दो दशकों में ऊंटों की संख्या में लगभग 40 प्रतिशत की गिरावट आई है. ऊंटों की घटती संख्या के कई कारण हैं, जिनमें बदलते पर्यावरण, चरागाह की कमी, सड़क हादसों में ऊंटों की मौत, उपयोगिता में कमी, राज्य व केंद्र सरकार द्वारा ऊंट पालकों को लाभ न देना और मानव हस्तक्षेप शामिल हैं.

2024 में राजस्थान का राज्य पशु घोषित हुआ ऊंट

2014 में ऊंट को राजस्थान का राज्य पशु घोषित किया गया था. वहीं, संयुक्त राष्ट्र की ओर से साल 2024 को अंतररार्ष्ट्रीय कैमलिड्स वर्ष घोषित किया गया था. बीकानेर में ऊंट महोत्सव भी मनाया जाता है. बीकानेर में आईसीएआर-राष्ट्रीय ऊंट अनुसंधान केंद्र (ICAR-NRCC) में विभिन्न कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं. सरहद पर रेतीले इलाकों में BSF का सच्चा साथी कहलाया जाने वाला ऊंट सरहद पर चौकसी में भी अपनी अहम भूमिका निभाता है.

लेकिन ऊंट के संरक्षण को लेकर धरातल पर कोई काम नजर नहीं आ रहा है, जिससे अब ऊंटपालक भी ऊंटों से किनारा करते नजर आ रहे हैं एक समय में आन बान और शान के लिए जाना जाने वाला ऊंट जहां दुनिया के 90 से अधिक देशों में पाया जाता है, लेकिन अब वही ऊंट खुद के अस्तित्व को बचाने में लाचार नजर आ रहा है. रेगिस्तान का यह जहाज जहां एक समय में युद्ध हो चाहे प्रेम गाथा हर एक में अपना महत्व रखता था.

राजस्थान में ऊंटों पर मंडरा रहे संकट के बादल

राजस्थान के इतिहास के पन्ने आज भी ऊंट की मिसाल से भरे पड़े हैं, लेकिन अब इसकी उपयोगिता नहीं होने से ऊंटों पर संकट के काले बादल मंडराने लगे हैं. सिर्फ जीविकोपार्जन का ही नहीं, बल्कि ऊंट दैनिक जीवन में बहुत काम आता है. बात करें दुनिया भर में ऊंट की जनसंख्या की तो भारत विश्व में तीसरे स्थान पर है. भारत में सबसे ज्यादा ऊंट राजस्थान में और खासतौर से पश्चिमी राजस्थान में पाए जाते हैं.

सड़कों के बिछते जाल और कम होते रेगिस्तान के चलते ऊंट की संख्या में काफी गिरावट आई है. पिछले कुछ सालों में देश-विदेश में ऊंट की संख्या में काफी गिरावट देखने को मिली है. राजस्थान में राजतंत्र के समय युद्धों में अपनी महत्ता रखने का विषय हो या मूमल महेंद्रा जैसी प्रेम कथा, मातृभूमि की रक्षार्थ शहीद हुए लोक देवताओं से जुड़े प्रसंग हो या शादी ब्याह, खेती-बाड़ी, व्यवसाय हो या पर्यटन हर एक से इस ऊंट का गहरा नाता था.

आधुनिकता के इस युग ने जिंदगी को तेज रफ्तार दी. वोट की जगह अत्याधुनिक साधनों ने ले ली और रेगिस्तान का यह हीरो अब अपना अस्तित्व खोने की कगार पर आ गया है और अपनी मूक जुबान से सियासत के सामने यह सवाल खड़े कर रहा है कि आखिर उसका संरक्षण कौन करेगा? उसको बचाने आगे कौन आएगा? क्या आने वाले समय में सिर्फ वह किताबों में ही मिलेगा?

जैसलमेर में 40 हजार ऊंट

जैसलमेर में ऊंटों की संख्या लगभग चालीस हजार के करीब है. अब धीरे-धीरे ये संख्या घट रही है. जिले की श्री देगराय ओरण में ही पांच हजार के करीब ऊंट है. ऊंट चराने के लिए संरक्षित चारागाह भूमि निरंतर विकास की भेंट चढ़ रही हैं. श्री देगराय ऊष्टं संरक्षण संस्थान जैसलमेर के अध्यक्ष सुमेर सिंह भाटी सावता ने बताया की ऊंटों से आय नहीं होने के कारण युवा वर्ग का अब ऊंटों की तरफ लगाव कम हो रहा है.

उष्ट प्रजनन योजना की जो राशि है वो भी पशुपालकों को नहीं मिल रही है. इसलिए पशुपालकों का भी ऊंटों से लगाव कम हो रहा है. राज्य सरकार की ओर से ऊंट संरक्षण को लेकर जो योजनाएं चलाई जा रही है वो अगर समय पर ऊंट पालकों को लाभ देती रहे तो ऊंटों का संरक्षण हो सकता है. ऊंटनी का दूध स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक है, लेकिन दुध बेचने के लिए सरकार को आगे आकर डेयरी उद्योग को भी बढ़ावा देना चाहिए.

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