खंडवा की ऐतिहासिक और धार्मिक धरती पर स्थित महादेवगढ़ शिव मंदिर एक ऐसी विरासत है, जो न सिर्फ आध्यात्मिक श्रद्धा का प्रतीक है, बल्कि मध्यकालीन स्थापत्य कला और संस्कृति की जीवित धरोहर भी है. इस मंदिर की खास बात यह है कि यहां 24 घंटे ”ॐ नमः शिवाय” का अखंड जाप होता है, जो श्रद्धालुओं के लिए अद्भुत आस्था और शांति का केंद्र बन चुका है.
12वीं सदी की धरोहर
खंडवा शहर के इतवारा बाजार क्षेत्र में स्थित यह मंदिर 12वीं शताब्दी का माना जाता है. ऐतिहासिक दृष्टि से यह मंदिर परमार कालीन स्थापत्य शैली में निर्मित है, जो मालवा क्षेत्र में फैली कई प्राचीन संरचनाओं से जुड़ा है. मंदिर की प्राचीनता का प्रमाण खुद मंदिर में मौजूद पत्थरों पर उकेरे गए चित्र, नक्काशी, और शिवलिंग की शैली से मिलता है.
माना जाता है कि यह शिवलिंग स्वयंभू है, यानी यह पृथ्वी से स्वयं प्रकट हुआ था. वर्षों तक यह मंदिर अज्ञात अवस्था में रहा, समय के थपेड़ों ने इसकी पहचान को लगभग मिटा दिया था. कई वर्षों तक यहां भैंसों का तबेला था, और पास बहने वाली नदी को भी अवैध निर्माणों ने बाधित कर दिया था.
मंदिर को पुनर्जीवित करने की कानूनी लड़ाई
जब मंदिर की स्थिति को लेकर स्थानीय लोगों में चिंता बढ़ी, तो इस धरोहर को बचाने के लिए आवाज उठाई गई. सामाजिक कार्यकर्ता मोहम्मद लियाकत पवार ने मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की, जिसमें कहा गया कि मंदिर की भूमि पर अतिक्रमण हो रहा है और एक ऐतिहासिक स्थल खतरे में है. इसके बाद न्यायालय के आदेश पर जिला प्रशासन ने इंदौर पुरातत्व विभाग से मंदिर का सर्वेक्षण करवाया. 13 फरवरी 2015 को तकनीकी सहायक डॉ. जी. पी. पांडे द्वारा सौंपी गई रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया गया कि यह मंदिर 12वीं शताब्दी की संरचना है, और इसे ऐतिहासिक स्मारक के रूप में संरक्षित किया जाना चाहिए.
संरचना और धार्मिक महत्व
वर्तमान में यह मंदिर एक टीन शेड के नीचे स्थित है, लेकिन इसके भीतर आज भी मूल शिवलिंग, खंडित नंदी की मूर्ति, और प्राचीन खंभा मौजूद हैं, जो इसकी गौरवशाली स्थापत्य परंपरा की गवाही देते हैं. पत्थरों की उकेरन और मूर्तियों की शैली यह स्पष्ट करती है कि यह स्थान परमार काल के दौरान एक प्रमुख धार्मिक स्थल रहा होगा.
यहां विशेष बात यह है कि सावन मास में यहां भक्तों का तांता लगा रहता है. स्थानीय श्रद्धालु ही नहीं, दूर-दराज से भी लोग यहां दर्शन और पूजा के लिए पहुंचते हैं. सावन के दौरान 24 घंटे ”ॐ नमः शिवाय” का अखंड जाप होता है, जिससे वातावरण आध्यात्मिक ऊर्जा से भर जाता है.
जनभागीदारी और संरक्षण
मंदिर को पुनर्जीवित करने के लिए स्थानीय लोगों की भागीदारी भी सराहनीय रही है. यह स्थल अब सिर्फ पूजा का स्थान नहीं रहा, बल्कि सांस्कृतिक जागरूकता और विरासत संरक्षण का प्रतीक बन चुका है. मंदिर में नियमित रूप से पूजा-अर्चना होती है और सामाजिक आयोजन भी शुरू हो गए हैं. खंडवा का यह महादेवगढ़ शिव मंदिर एक ऐसी प्राचीन धरोहर है, जो न सिर्फ धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि एक जागरूक समाज और कानूनी प्रक्रिया के बलबूते पुनः अस्तित्व में आया है. इस मंदिर की विशेषता सिर्फ इसका ऐतिहासिक महत्व ही नहीं, बल्कि अखंड मंत्र जाप और स्थानीय श्रद्धा में भी निहित है. यह स्थान हमें यह सिखाता है कि यदि समाज जागरूक हो, तो धरोहरों को बचाया जा सकता है, और इतिहास को फिर से जीवंत किया जा सकता है.