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    माता सती के रक्त से प्रकट हुई तुलजा भवानी और माता चामुंडा, दिन में 3 बार बदलती हैं रूप

    देवास: पहाड़ों की टेकरी पर विराजित बड़ी माता तुलजा भवानी और छोटी माता चामुंडा भवानी के दरबार में पूरे वर्ष श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. खास कर नवरात्रि पर रोजाना लाखों भक्त माता के दर्शन करने पहुंचते हैं. यहां नवरात्र के पूरे 9 दिनों तक दिन भर माता की विशेष पूजा अर्चना चलती रहती है. अष्टमी और नवमी के मौके पर देवास रियासत के राजपरिवार द्वारा शाही हवन किया जाता है. 22 सितंबर आज से शुरू हो रहे शारदीय नवरात्रि के महापर्व पर तड़के से ही भक्तों के आने का सिलसिला शुरु हो गया है.

    आस्था का केंद्र है मां चामुंडा धाम

    माता चामुंडा व माता तुलजा भवानी आस्था का प्रमुख केंद्र है. यहां दूर दराज से भक्त माता के दर्शन के लिए पहुंचते हैं. देवास को मां चामुंडा व तुलजा भवानी की नगरी भी कहकर पुकारा जाता है. यहां चामुंडा माता के अलावा बजरंग, भेरू, कालिका, गणेश, अष्ट भुजा, खो-खो, अन्नपूर्णा माता सहित अन्य मंदिर भी मौजूद हैं. देवास का इतिहास माता टेकरी से जुड़ा हुआ है, बताया जाता है कि यहां पर कई साधकों ने तपस्या कर अपनी साधना को उच्च शिखर पर पहुंचाया है. जानकारों का ऐसा दावा है कि माता सती के रक्त की 2 बूंद से तुलजा भवानी और चामुंडा देवी प्रकट हुई थीं.

    ऋषि-मुनियों ने यहां सालों तक की तपस्या

    गुरु गोरखनाथ, राजा विक्रमादित्य के भाई राजा भर्तहरि व सद्गुरु योगेंद्र शीलनाथ महाराज की यह तपोभूमि रही है. जहां पर कई वर्षों तक इन साधकों ने माता के चरणों में घोर तपस्या की है. यहां स्थित माता टेकरी पर हर वर्ष नवरात्रि में 9 दिन का उत्सव मनाया जाता है. इसके साथ शहर में माता के बड़े-बड़े पंडाल लगते हैं, जो आकर्षण का केंद्र होते हैं. जगह जगह पर श्रद्धालुओं के लिए भंडारे आयोजित किये जाते हैं. यह क्रम पूरे 9 दिन तक चलता है.

    पूरे साल भक्तों का लगा रहता है तांता

    यूं तो साल के 12 महीने माता टेकरी पर श्रद्धालु मां चामुंडा दर्शन के लिए पहुंचते है. दूर दराज से भक्त अपनी मनोकामना लेकर मंदिर पहुंचते हैं और मां भक्तों की मनोकामना पूरी करती हैं. नाथ सम्प्रदाय के लोग यहां सुबह शाम माता की आरती कर पूजा करते हैं. सुबह 6 बजे बड़ी माता की आरती व 7 बजे छोटी माता की आरती की जाती है. यही क्रम शाम को भी दोहराया जाता है.

    मंदिर छोड़कर जा रहीं थी माताएं

    मान्यताओं के अनुसार, यहां देवी मां के दोनों स्वरूप अपनी जागृत अवस्था में हैं. इन दोनों स्वरूपों को छोटी मां और बड़ी मां के नाम से जाना जाता है. बड़ी मां को तुलजा भवानी और छोटी मां को चामुण्डा देवी का स्वरूप माना गया है. उसके अलावा भी यहां पर 9 देवियों का वास है. पुजारी मुकेश नाथ बताते हैं कि "बड़ी और छोटी मां के मध्य बहन का रिश्ता है. एक बार दोनों में किसी बात को लेकर अनबन हो गई थी, जिससे क्षुब्ध होकर दोनों माताएं अपना स्थान छोड़कर जाने लगी. बड़ी मां पाताल में समाने लगीं और छोटी माँ अपने स्थान से उठ खड़ी हुई और टेकरी छोड़कर जाने लगीं थी."

    अन्य देवताओं के मनाने पर रुकी मां

    "उस समय हनुमान जी और भेरू बाबा ने माताओं के क्रोध को शांत कर रुकने की विनती की. इस समय तक बड़ी माँ का आधा धड़ पाताल में समा चुका था, वे वैसी ही स्थिति में टेकरी में रुक गईं. वहीं छोटी माता टेकरी से नीचे उतर रही थीं. वे मार्ग अवरुद्ध होने से और भी कुपित हो गईं और जिस अवस्था में नीचे उतर रही थीं, उसी अवस्था में टेकरी पर रुक गईं. इस तरह आज भी माताएं अपने उन्हीं स्वरूपों में विराजमान हैं."

    उल्टा साथिया बनाकर लोग मांगते हैं मन्नत

    देवास के लोगों का मानना है कि "माताओं की ये मूर्तियां स्वयंभू हैं और जागृत स्वरूप में हैं. यहां जो भी भक्त सच्चे मन से मन्नत मांगता है, उसकी हमेशा मन्नत पूरी होती है. मान्यता है कि जिन महिलाओं के संतान नहीं होते हैं. अगर वे लगातार 5 दिनों तक माता को पान का बीड़ा खिलाए तो संतान सुख की प्राप्त होती है. साथ ही यहां उल्टा स्वास्तिक बनाकर मन्नत मांगने की प्रथा है. जब मन्नत पूरी पर लोग परिवार के साथ मंदिर पहुंचते हैं और सीधा स्वास्तिक बनाते हैं.

     

     

      मां दिन में 3 बार बदलती हैं स्वरूप

      पुजारी मुकेश नाथ के अनुसार यहां हर नवरात्रि में अष्टमी और नवमी को हवन यज्ञ का आयोजन होता है, जिसमें दोनों राजवंश के लोग उपस्थित होते हैं. मंदिर को लेकर किवदंतियां है कि माता दिन में तीन रूप बदलती हैं. सुबह को बाल अवस्था, दोपहर को युवावस्था व रात होते हुए मां को वृद्धावस्था रूप देखा जा सकता है.

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