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    राज ठाकरे की गैरहाज़िरी ने बढ़ाए सियासी सवाल, बारिश के बीच शिवतीर्थ पर गरजे उद्धव ठाकरे, कार्यकर्ताओं में दिखा जोश

    मुंबई: मुंबई में बीएमसी चुनावों से पहले दशहरा रैली को शिवसेना के दोनों खेमों के लिए शक्ति प्रदर्शन माना गया था, उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली शिवसेना यूबीटी की रैली में मनसे चीफ राज ठाकरे के शामिल होने की खूब चर्चा हुई लेकिन शिवाजी पार्क में शिवसैनिकों के लिए अकेले उद्धव ठाकरे की शिवगर्जना हुई लेकिन राज ठाकरे ने अपने आवास शिवतीर्थ पर ही दशहरे या विजयादशर्मी का पर्व मनाया। उन्होंने पत्नी के साथ शस्त्र पूजा भी की। सोशल मीडिया शिंदे और उद्धव समर्थकों के बीच जंग छिड़ी हुई कि किसकी रैली सफल रही? इसके साथ ही कुछ तस्वीरें वायरल हो रही हैं। जिनमें उद्धव ठाकरे बारिश के बीच शिवसैनिकों को संबोधित कर रहे हैं।

    क्याें नहीं राज ठाकरे?
    विजयदशमी के मौके पर हुई दशहरा रैली को शिवसेना के बड़े कार्यक्रमों में गिना जाता है। इस बात की खूब चर्चा हुई थी। कि दशहरा रैली में दोनों भाई न सिर्फ साथ आ सकते हैं बल्कि शिवसेना यूबीटी और मनसे के गठबंधन का ऐलान भी हो सकता है लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। राज ठाकरे ने शिवतीर्थ पर ही विजयदशमी का पर्व मनाया। राज ठाकरे के दशहर रैली का हिस्सा नहीं बनने के पीछे सबसे बड़ी वजह है कि उन्हें शिवसेना यूबीटी की तरफ से कोई सार्वजनिक निमंत्रण नहीं मिला था। वह खुद एक राजनीतिक दल के मुखिया हैं। ऐसे में वह कैसे दशहरा रैली में शिरकत करते। 2005 में दोनों भाईयों के अलग होने के बाद इस साल वे वर्ली में एक गैर राजनीतिक मंच पर एक साथ आए थे। शिवाजी पार्क में दशहरा रैली का आयोजन 1966 से लगातार हो रहा है। कुछ पार्टी नेताओं का मत था कि अगर दशहरा रैली में दोनों भाई साथ होते तो आगामी चुनावों के लिए अच्छा मैसेज होता, क्योंकि यह रैली शिवसेना की पहचान, अस्तित्व और संस्थापक बाल ठाकरे से जुड़ी है।

    'सिर्फ पतंगबाजी और कुछ नहीं'
    महाराष्ट्र के राजनीतिक विश्लेषक दयानंद नेने कहते हैं कि यह सिर्फ मीडिया हाइप थी कि राज ठाकरे आएंगे? नेने कहते हैं कि दोनों दलों के बीच गठबंधन को लेकर बहुत ज्यादा हाइप क्रिएट कर दी गई है। उनका कहना है कि दोनों दलों के बीच गठबंधन को लेकर राज ठाकरे ने अभी तक सीधे तौर पर कुछ नहीं कहा है। जो भी प्रतिक्रियाएं हुई हैं। वे यूबीटी की तरफ से हुई है। नेने कहते हैं महाराष्ट्र के दूसरे हिस्सों काे छोड़ दीजिए। अगर मुंबई की बात करें तो यहां पर दोनों पार्टियों का ज्यादा प्रभाव एक ही क्षेत्र में है। वह माहिम से वर्ली का एरिया है। इसके अलावा भांडुप का इलाका है। ऐसे में जब कौन से पार्टी किसे और कैसे और कितना शेयर देगी। जब तक यह तय नहीं होगा तब तक गठबंधन की बातें पतंगबाजी ही हैं। गौरतलब हो कि उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली शिवसेना के पास 20 विधायक हैं। इनमें ज्यादातर मुंबई से जीते हैं। ऐसे में जब सुप्रीम कोर्ट ने कहा दिया है कि 31 जनवरी, 2026 तक चुनाव होने चाहिए तब देखना होगा दोनों दल गठबंधन के मुद्दे पर कब तक चुप रहेंगे।

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