अहमदाबाद: गुजरात में 27 साल से चल रहे हत्या मामले में एक निचली अदालत का फैसला रद्द कर दिया है। हाईकोर्ट ने राजकोट जिले की एक महिला को निचली अदालत द्वारा सुनाई गई उम्रकैद की सजा को रद्द करते हुआ कहा कि इस केस की कार्यवाही जल्दबाज़ी में पूरी की गई। हाईकोर्ट ने कहा कि न्यायिक प्रक्रिया का सही पालन नहीं हुआ। हाईकोर्ट ने धोराजी की सत्र अदालत को आदेश दिया है कि वह छह महीने के भीतर इस मामले की नई सुनवाई पूरी करे।
यह मामला वर्ष 1996 का है, जब धोराजी कस्बे में अरुणा उर्फ अनीता देवमुरारी पर पड़ोसी के सात वर्षीय बेटे की हत्या का आरोप लगा था। कानूनी प्रक्रिया पूरी करने में ही दो साल लग गए और आरोप तय करने में अदालत को पूरे 14 साल लग गए। इसके बाद भी मुकदमे की सुनवाई और फैसला आने में 13 साल और लग गए। आखिरकार जून 2025 में निचली अदालत ने देवमुरारी को उम्रकैद की सजा सुना दी। अदालत ने अपने आदेश में स्पष्ट कहा कि ट्रायल कोर्ट ने पुराने मामलों को जल्द निपटाने के उद्देश्य से शॉर्टकट अपनाया और सत्र न्यायालय की तय प्रक्रिया का पालन किए बिना जल्दबाज़ी में ट्रायल पूरा कर दिया।
हाईकोर्ट में अपील की
बता दें कि देवमुरारी को 1998 में हाईकोर्ट से जमानत मिली थी, जिसके बाद से वह फरार थीं। 2024 में लंबित मामलों को निपटाने के लिए हाईकोर्ट के निर्देश पर ट्रायल फिर से शुरू हुआ। पुलिस आरोपी को अदालत में पेश नहीं कर सकी और मुकदमा उनकी गैरहाज़िरी में चला। पति के बयान और 16 गवाहों की गवाही के आधार पर अदालत ने उन्हें दोषी ठहराया और उम्रकैद की सजा सुना दी। सजा सुनाए जाने के कुछ घंटों बाद ही पुलिस ने वडोदरा से उसे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। इसके बाद उन्होंने हाईकोर्ट में अपील की कि उन्हें अपना पक्ष रखने का अवसर ही नहीं दिया गया। अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया कि आरोपी इतने वर्षों से फरार थी, इसलिए अदालत का फैसला उचित है।
धारा 313 की प्रक्रिया का पालन नहीं किया
हाईकोर्ट के जस्टिस इलेश वोरा और जस्टिस पी.एम. रावल ने माना कि ट्रायल कोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 313 की प्रक्रिया का पालन नहीं किया। इस प्रावधान के तहत, गवाहों की जिरह पूरी होने के बाद आरोपी को अपना पक्ष रखने का अवसर दिया जाना अनिवार्य है। हाईकोर्ट ने पुलिस की भूमिका पर भी सवाल उठाए। अदालत ने कहा कि पुलिस इतने वर्षों तक आरोपी को गिरफ्तार नहीं कर सकी, लेकिन जैसे ही सजा सुनाई गई, कुछ ही घंटों में उसे ढूंढ निकाला गया। अब धोराजी की सत्र अदालत को छह महीने के भीतर नए सिरे से मुकदमे की सुनवाई करनी होगी।