नई दिल्ली. जाति आधारित जनगणना के बाद बिहार में आरक्षण प्रतिशत बढ़ाया गया था। गुरूवार को पटना हाई कोर्ट ने सीएम नीतीश कुमार सरकार के उस फैसले को असंवैधानिक करार दिया है। बिहार में सरकारी नौकरी और उच्च शैक्षणिक संस्थानों में एडमिशन के लिए 65 प्रतिशत करने वाले बिहार आरक्षण को समानता विरोधी बताकर अदालत ने रद्द कर दिया है।
बता दें कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की महागठबंधन वाली सरकार ने जाति आधारित सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार ईबीसी, ओबीसी, दलित और आदिवासियों का आरक्षण बढ़ाकर 65 प्रतिशत कर दिया था। साथ ही पिछड़े वर्ग लोगों को मिलने वाले 10 प्रतीशत आरक्षण को मिलाकर बिहार में नौकरी और दाखिले का कोटा बढ़ाकर 75 परसेंट पर पहुंच गया था। बिहार में बढ़ते आरक्षण को देखते हुए कई संगठनों ने पटना हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।
हाई कोर्ट ने सुनवाई कर फैसला 11 मार्च 2024 को सुरक्षित रख लिया था, जिसे गुरूवार को सुनाया गया। चीफ जस्टिस के वी चंद्रन की खंडपीठ गौरव कुमार व अन्य याचिकाओं पर लंबी बहस हुई थी। राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता पीके शाही ने कोर्ट को बताया था कि राज्य सरकार ने ये आरक्षण इन वर्गों के पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं होने के कारण दिया था। राज्य सरकार ने ये आरक्षण अनुपातिक आधार पर नहीं दिया था।