More
    Homeराजस्थानअलवरमरीज को ग्राहक समझना बंद करेंगे तो बहुत कुछ बदल जाएगा :डॉ....

    मरीज को ग्राहक समझना बंद करेंगे तो बहुत कुछ बदल जाएगा :डॉ. जी. सी. मित्तल

    भरतपुर से निकलकर कई स्थानों पर मरीजों की सेवा की डॉ. जी. सी. मित्तल

    अलवर। राजस्थान के भरतपुर जिले के भुसावर कस्बे से निकलकर डॉक्टरी सेवा में एक आदर्श स्थापित करने वाले डॉ. जी. सी. मित्तल का जीवन समर्पण, परिश्रम और सेवा भावना की मिसाल है। 1979 में अलवर के सरकारी अस्पताल में नियुक्ति मिलने के बाद उन्होंने न सिर्फ हजारों बच्चों का इलाज किया, बल्कि चिकित्सा क्षेत्र में निष्ठा और सच्चाई की एक उजली परिभाषा भी रची। सरकारी सेवा से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के बाद भी उन्होंने बच्चों की सेवा बंद नहीं की, बल्कि अपने घर पर ही बच्चों का इलाज जारी रखा, जो आज भी निरंतर जारी है।

    शैक्षिक यात्रा: संघर्ष से सफलता तक
    डॉ. मित्तल का प्रारंभिक जीवन अत्यंत सामान्य रहा। प्राथमिक से आठवीं तक की पढ़ाई उन्होंने भुसावर के सरकारी विद्यालय में ही की। इसके बाद उनकी बड़ी बहन उन्हें आगे की शिक्षा के लिए हिंडौन सिटी ले गईं, जहां से उन्होंने कक्षा दसवीं तक शिक्षा प्राप्त की। शिक्षा के प्रति उनके झुकाव और परिवार के सहयोग ने उन्हें जयपुर तक पहुंचाया, जहां उन्होंने महाराजा कॉलेज से पीयूसी (पूर्व-स्नातक) किया।
    यहीं से उनके चिकित्सा क्षेत्र की यात्रा प्रारंभ हुई। जयपुर स्थित सवाई मानसिंह (एसएमएस) मेडिकल कॉलेज में उनका एमबीबीएस में चयन हुआ और यहीं से उन्होंने एमडी की डिग्री भी प्राप्त की। शिक्षा के बाद उन्हें सीधे अलवर के सरकारी अस्पताल में नियुक्ति मिल गई और यहीं से उनका सेवा सफर शुरू हुआ।
    सरकारी सेवा: समर्पण का दूसरा नाम
    करीब दो दशकों तक सरकारी सेवा में रहते हुए डॉ. मित्तल ने अलवर के हजारों बच्चों का इलाज किया। वे बताते हैं, “सरकारी अस्पताल में जितना अच्छा और सस्ता इलाज होता है, वह निजी क्षेत्र में संभव नहीं है। अलवर ही नहीं, आस-पास के जिलों से भी मरीज सरकारी अस्पताल में इलाज के लिए आते थे। हम डॉक्टर कभी समय का हिसाब नहीं करते थे। दिन-रात सेवा ही हमारी प्राथमिकता थी।”
    उनके अनुसार, उस दौर में डॉक्टर और मरीज के बीच भरोसे का गहरा संबंध होता था। मरीज डॉक्टर की बात पर विश्वास करता था, और डॉक्टर भी मरीज को ‘ग्राहक’ नहीं बल्कि ‘परिवार’ की तरह देखता था।

    समय के साथ बदले रिश्ते: डॉक्टर और मरीज के बीच
    डॉ. मित्तल मानते हैं कि वर्तमान समय में डॉक्टर और मरीज के रिश्ते में काफी बदलाव आ गया है। वे कहते हैं, “पहले मरीज डॉक्टर पर आंख मूंदकर विश्वास करता था। आज यह भरोसा कमजोर हुआ है। इसका एक बड़ा कारण मीडिया है। सरकारी अस्पतालों में प्रतिदिन हजारों मरीज इलाज करवाकर स्वस्थ होकर घर लौटते हैं, लेकिन अगर छह महीने में कोई एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना हो जाए, तो मीडिया केवल नकारात्मकता को ही प्रमुखता देता है, जिससे पूरे सिस्टम की छवि धूमिल होती है।”
    वे यह भी जोड़ते हैं कि मीडिया को दोनों पहलुओं को देखना चाहिए — समस्याओं को उजागर करना ज़रूरी है, लेकिन जो सकारात्मक कार्य हो रहे हैं, उन्हें भी सराहना मिलनी चाहिए।

    स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के बाद की सेवा
    सरकारी सेवा से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने के बाद अधिकांश लोग विश्राम को प्राथमिकता देते हैं, लेकिन डॉ. मित्तल ने सेवा को विश्राम नहीं बनने दिया। उन्होंने अपने निवास स्थान को ही एक छोटे क्लिनिक का रूप दिया, जहां वे बच्चों का इलाज अब भी करते हैं। कई माता-पिता ऐसे हैं जो स्वयं बचपन में उनके पास इलाज के लिए आए थे और आज अपने बच्चों को लेकर उनके पास आते हैं। यह भरोसे की वह डोर है जिसे उन्होंने दशकों में मेहनत से बुना है।

    मरीजों को सस्ती चिकित्सा सुविधा: चुनौतियाँ और समाधान
    डॉ. मित्तल मानते हैं कि चिकित्सा को आमजन की पहुंच में बनाए रखने के लिए कई व्यवस्थात्मक सुधार आवश्यक हैं। वे कहते हैं, “जो डॉक्टर अपने घर के एक कमरे में छोटे पैमाने पर इलाज करना चाहता है, उस पर भी वही सारे नियम-कायदे लागू होते हैं जो बड़े कॉरपोरेट अस्पतालों पर होते हैं। इससे छोटे अस्पताल चलाना मुश्किल हो जाता है।”
    वे यह भी बताते हैं कि चिकित्सा शिक्षा अब अत्यंत महंगी हो गई है। “हमारे समय में सरकार लगभग मुफ्त शिक्षा देती थी, जिससे डॉक्टर बनने के बाद सेवा में उतरना सहज होता था। लेकिन आज पढ़ाई में लाखों रुपये खर्च हो जाते हैं, जिसे चुकाने के लिए युवा डॉक्टर कभी-कभी सेवा से अधिक मुनाफे को प्राथमिकता देने लगते हैं।”

    परिवार का साथ और अगली पीढ़ी की सेवा भावना
    डॉ. मित्तल की पत्नी सुषमा अग्रवाल एक गृहिणी हैं जिन्होंने हमेशा हर कदम पर उनका साथ दिया। उनकी बेटी राशि गर्ग पैथोलॉजिस्ट हैं और विवाहोपरांत अपने क्षेत्र में कार्यरत हैं। बेटा अंशुल मित्तल डॉक्टर हैं और जयपुर में अपना स्वयं का अस्पताल चला रहे हैं। डॉ. मित्तल की सेवा भावना और ईमानदारी की विरासत अब उनकी अगली पीढ़ी भी गर्व से आगे बढ़ा रही है।

    युवाओं के लिए संदेश: ईमानदारी और सेवा ही असली मिशन
    चिकित्सा जैसे मानवीय पेशे में प्रवेश लेने वाले युवाओं के लिए डॉ. मित्तल का संदेश अत्यंत मार्मिक है:
    “अपने मिशन में ईमानदारी बनाए रखें। मरीज के प्रति पूर्ण निष्ठा रखें। अनावश्यक जांचें, महंगी दवाइयों और लालच में आकर मरीज को आर्थिक या शारीरिक हानि न पहुँचाएं। अगर सेवा भावना से इलाज करेंगे तो समाज भी सम्मान देगा और आत्मा भी संतुष्ट रहेगी।”

    एक आदर्श चिकित्सक की मिसाल
    डॉ. जीसी मित्तल का जीवन इस बात का प्रमाण है कि डॉक्टर केवल एक पेशेवर नहीं, बल्कि समाज का मार्गदर्शक होता है। उनका जीवन उन सभी युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत है जो चिकित्सा को केवल रोजगार नहीं बल्कि सेवा का माध्यम मानते हैं।

    मिशन सच से जुडने के लिए हमारे व्हाट्सप्प ग्रुप को फॉलो करे  https://chat.whatsapp.com/JnnehbNWlHl550TmqTcvGI?mode=r_c

    देखें मिशन सच की अन्य रिपोर्ट                          https://missionsach.com/dr-dilip-sethi-alwar-pediatrician-biography.html

    latest articles

    explore more

    LEAVE A REPLY

    Please enter your comment!
    Please enter your name here