जिले के दस सरकारी स्कूलों की कायापलट करने में लगे है डॉ. एस. सी. मित्तल
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मिशनसच न्यूज, अलवर। डॉ. एस.सी. मित्तल उन विरले डॉक्टरों में गिने जाते हैं, जिन्होंने न केवल हजारों मरीजों को नया जीवन दिया, बल्कि शिक्षा के क्षेत्र में भी भामाशाह की भूमिका निभाकर समाज को नई दिशा दी। चिकित्सा हो या शिक्षा, डॉ. मित्तल के लिए दोनों ही कार्यक्षेत्र उनके जीवन का ध्येय बन गए हैं। वे अपने माता-पिता के नाम पर स्थापित ट्रस्ट के माध्यम से करीब एक करोड़ रुपये की राशि सरकारी स्कूलों के विकास में खर्च कर चुके हैं।
मौजपुर की धरती ने एक परिवार से दिए तीन डॉक्टर
डॉ. एस.सी. मित्तल का जन्म अलवर जिले के छोटे से गांव मौजपुर में एक सामान्य परिवार में हुआ। खास बात यह है कि ये तीन भाई थे और तीनों ही डॉक्टर बने। इनके पिता नानकचंद मित्तल और माता श्रीमती रेशमा देवी के तीन पुत्रों में सुभाष मित्तल व राजीव मित्तल भी डॉक्टर ही बने। पिछले दिनों राजीव मित्तल का निधन हो गया। वे कहते है कि एक दिन भाई के बीमार होने पर पिताजी अलवर में उसे दिखाने आए थे। जब उन्होंने डॉक्टर को देखा तो उनके मन में आया कि क्यों ना मैं भी अपने बच्चों को डॉक्टर ही बनाऊं। बस उसके बाद ही मेरा भी डॉक्टर बनने का प्रयास शुरू हो गए।
शिक्षा : गांव के सरकारी स्कूल से जयपुर एसएमएस तक
डॉ. मित्तल की शिक्षा की शुरुआत मौजपुर के ही सरकारी स्कूल से हुई, जहाँ उन्होंने आठवीं तक अध्ययन किया। इसके बाद नौवीं कक्षा के लिए वे अपने चाचा जी के साथ जयपुर चले गए और माणक चौक के सरकारी स्कूल में पढ़ाई की। दसवीं कक्षा के लिए पुनः अलवर लौटे और लक्ष्मणगढ़ के सरकारी स्कूल से परीक्षा उत्तीर्ण की। ग्यारहवीं की पढ़ाई यशवंत स्कूल, अलवर से की और बारहवीं में प्रवेश लिया राजर्षि कॉलेज में। शिक्षा के प्रति समर्पण और मेहनत का ही परिणाम था कि प्रथम वर्ष के दौरान ही उन्होंने पीएमटी (प्री-मेडिकल टेस्ट) उत्तीर्ण कर लिया, जिसमें राजस्थान में 19वीं रैंक प्राप्त की। इसके बाद उनका चयन सवाई मानसिंह मेडिकल कॉलेज, जयपुर में हुआ, जहाँ से उन्होंने एमबीबीएस और बाद में एमडी की उपाधि प्राप्त की।
सरकारी सेवा से अंतरराष्ट्रीय अनुभव तक
एमडी के पश्चात वर्ष 1981 में डॉ. मित्तल को सरकारी नौकरी मिली और उन्हें जयपुर जिले के भांडारेज (अब दौसा जिला) में नियुक्त किया गया। वहाँ चार वर्षों तक सेवा देने के बाद उनका स्थानांतरण अलवर के सरकारी अस्पताल में हुआ। इस दौरान 1995 में वे मालाखेड़ा में भी दो वर्ष सेवाएं दे चुके हैं।
उनकी कार्यकुशलता और समर्पण को देखते हुए उन्हें ‘कोलंबो प्लान’ के अंतर्गत इंग्लैंड के लीवरपूल स्कूल ऑफ ट्रॉपिकल मेडिसिन में डेढ़ महीने की विशेष ट्रेनिंग और दिल्ली में एक माह की ट्रेनिंग का अवसर मिला। मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य योजनाओं में उनके कार्य को राज्य स्तर पर सराहा गया।
मित्तल हॉस्पिटल की स्थापना
सरकारी सेवा से संतोषजनक अनुभवों के बावजूद डॉ. मित्तल का मन स्वतंत्र चिकित्सा सेवा में अधिक रमणीय लगने लगा। वर्ष 1985 में उन्होंने सरकारी सेवा से त्यागपत्र दिया और चिकित्सा क्षेत्र में निजी रूप से कदम रखा। शुरुआत साझेदारी में अपेक्स हॉस्पिटल से की, लेकिन बाद में 30 नवंबर 1998 को सुभाष नगर, अलवर में ‘मित्तल हॉस्पिटल’ की स्थापना की।
यह अस्पताल आज न केवल शहर, बल्कि आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों के लिए भी एक भरोसेमंद केंद्र बन चुका है। गंभीर से गंभीर मरीज भी यहाँ उचित इलाज के साथ विश्वास लेकर लौटते हैं। अस्पताल की नींव में सेवा, ईमानदारी और मरीजों के प्रति आत्मीयता का भाव शामिल है।
शिक्षा सेवा: भामाशाह की भूमिका
डॉ. मित्तल शिक्षा को केवल किताबों तक सीमित नहीं मानते, बल्कि इसे समाज को जागरूक और समृद्ध बनाने का माध्यम समझते हैं। उन्होंने अलवर शहर सहित लक्ष्मणगढ़ व रामगढ़ के दस सरकारी स्कूलों को गोद लेकर वहाँ आधारभूत संरचना, छात्र सहायता और संसाधनों की पूर्ति में लगे हैं।
अब तक वे अपने ट्रस्ट ‘नानकचंद-रेशमदेवी फाउंडेशन’ के माध्यम से करीब एक करोड़ रुपये की राशि स्कूलों में खर्च कर चुके हैं। इसके लिए उन्हें पाँच बार ‘राज्य स्तरीय शिक्षा भूषण सम्मान’ और तीन बार ‘शिक्षा श्री पुरस्कार’ भी मिल चुका है। यह सम्मान केवल पुरस्कार नहीं, बल्कि उनके सेवा भाव की सार्वजनिक स्वीकृति है। दो बार स्वच्छता दूत पुरस्कार भी मिल चुका है।
मरीज व डॉक्टर के विश्वास की जीत
चिकित्सा सेवा के अपने लंबे अनुभव में डॉ. मित्तल ने अनगिनत जिंदगियों को नया जीवन दिया है। वे बताते हैं कि हाल ही में एक महिला को परिजन बेहोशी की हालत में लाए, जिसका कहीं बी.पी. नहीं मिल रहा था। कई अस्पतालों में दिखाने के बाद भी स्थिति जस की तस थी। जब सभी रिपोर्ट सामान्य आई, तो उनके अनुभव ने कहा—संभवतः इसे सांप या कीड़े ने काटा हो। उन्होंने तुरंत उस दिशा में इलाज शुरू किया। अगले ही दिन महिला को होश आने लगा और कुछ ही दिनों में वह पूर्णतः स्वस्थ होकर घर लौट गई। बाद में महिला ने भी बताया कि संभवतः उसे कीड़े ने काट लिया था। इलाज से पहले परिजनों ने स्पष्ट कह दिया था कि हमें आप पर भरोसा है, हम अब कहीं नहीं जा सकते । इसलिए आपको ही इसका इलाज करना है।
परिवार: साथ और सहारा
डॉ. मित्तल की पत्नी अल्का मित्तल न केवल अस्पताल प्रबंधन में उनका सहयोग करती हैं, बल्कि सामाजिक कार्यों में भी सक्रिय हैं। उनकी बेटी आरुषि मित्तल, बीटेक के बाद हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से मास्टर्स कर चुकी हैं और वर्तमान में एक एनजीओ के माध्यम से राजस्थान में इक्कीसवीं सदी के योग्य अध्यापक तैयार करने के अभियान से जुड़ी हुई हैं।
युवाओं के लिए संदेश
डॉ. मित्तल का मानना है कि एक डॉक्टर को हमेशा मानवीय दृष्टिकोण के साथ कार्य करना चाहिए। मरीज को केवल ‘केस’ नहीं, एक इंसान समझकर देखना चाहिए। वे कहते हैं:
“विश्वास से ही इलाज होता है और समाज भी विश्वास पर ही चलता है।”
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